Tuesday, March 26, 2024

गुलाबी आकाश

गुलाबी आकाश 

आज ब्लॉग पर एक भी पोस्ट प्रकाशित नहीं की। पिछले कई वर्षों से ब्लॉगिंग जैसे जीवन का अंग बन गई है। कोई पढ़ता है या नहीं, इसकी परवाह किए बिना अपने दिल की बात कहने का यह एक मंच जो विज्ञान ने साधारण से साधारण व्यक्ति को प्रदान किया है, अतुलनीय है। इसके माध्यम से वह कितने ही लेखक-लेखिकाओं की रचनाओं का आस्वादन घर बैठे कर पाती है। डायरी में बंद शब्दों को एक नया आकाश मिल गया है जैसे। कुछ लोग पढ़ते भी हैं और टिप्पणी भी करते हैं, ऊर्जा का एक आदान-प्रदान जो इंटरनेट पर आजकल होता है, उसकी तुलना इतिहास की किसी भी घटना से नहीं की जा सकती। आज सुबह बड़े भाई ने नेट पर भाभीजी की पीली साड़ी वाली फ़ोटो ढूँढ कर देने को  कहा। कुछ समय उसमें गया। फिर छोटी बहन ने अध्यात्म से जुड़ा एक वीडियो भेजा और देखने का आग्रह किया, देखा, कुछ समझ में आया, कुछ नहीं। एक पहले की लिखी कविता टाइप की। परसों बहनोई जी का जन्मदिन है, उनके लिए कविता लिखनी है। आज सुबह टहलते समय पाँच तत्वों और शरीर के चक्रों के आपसी संबंध पर कितने विचार आ रहे थे। लिखने का समय नहीं निकाला, सो अब कुछ भी स्मरण नहीं है। परमात्मा स्वयं ही भीतर से पढ़ाते हैं, संत ऐसा कहते हैं, कितना सही है यह !


एक दिन और बीत गया। सुबह नींद समय पर खुली, कल रात नींद भी ठीक आयी। सुबह भ्रमण ध्यान किया। कितने सुंदर विचार आते हैं ब्रह्म मुहूर्त में। आकाश भी गुलाबी था। तस्वीरें उतारीं। आर्ट ऑफ़ लिविंग के ऐप के सहयोग से योग साधना की।नन्हे के भेजे तवे पर बने आलू पराँठों का नाश्ता ! एओएल के प्रकाशन विभाग के कोऑर्डिनेटर का फ़ोन आया, एक लेख में कुछ और जोड़ा गया है, अनुवाद पुन: लिखना है। शाम को पापा जी से बात हुई। पोती घर आयी हुई है नन्ही बिटिया के साथ, उसके रोने की आवाज़ उन्हें कभी-कभी आती है। पुत्र घर के काम में हाथ बँटाता है, जब बहू नातिन की देखभाल में लगी होती है, जिसकी पहली लोहड़ी मनाने की तैयारियाँ चल रही हैं। 


आज लोहड़ी है। वे शकरकंदी व कच्ची मूँगफली लाये निकट के बाज़ार से, जहाँ सड़क किनारे मकर संक्रांति पर बिकने वाले सामानों की ढेर सारी दुकानें लगी हुई थीं। सुबह नापा में भी यह पर्व मनाया गया। यहाँ इस दिन तिल और गुड़ से बनी मीठी वस्तुएँ खाने और खिलाने का रिवाज है। पूरे कर्नाटक में संक्रांति का उत्सव बड़े उत्साह से मनाते हैं। कल खिचड़ी का पर्व है। छिलके वाली उड़द दाल जून ने बिग बास्केट से मंगायी है।उनका  पतंग उड़ाने का ख़्वाब अभी पूरा नहीं हुआ है। पतंग नन्हे ने मंगाकर रखी है पर उसकी डोर नहीं मिली निकट के बाज़ार में। अलबत्ता मंदिर की भव्य सजावट देखने का अवसर मिल गया । आज सुबह भ्रमण के समय ‘स्पंद कारिका’ पर व्याख्या सुनी।जिसे आत्म-अनुभव न हुआ हो उसे अध्यात्म में रुचि कैसे सकती है ? वह इसे जाग्रत करे भी तो कैसे ? इसके लिए तो कृपा ही एकमात्र कारण कहा जा सकता है। परमात्मा की कृपा से ही उसके प्रति आस्था का जन्म होता है। 


आर्ट ऑफ़ लिविंग की तरफ़ से कुछ दिनों के लिए ऑन लाइन स्टे फिट कार्यक्रम चलाया जा रहा है। सुबह-सुबह उनके साथ व्यायाम और योगासन करने से शरीर हल्का लग रहा है। अब दो दिन ही शेष हैं। एक सखी ने दुलियाजान में बीहू उत्सव की तस्वीरें फ़ेसबुक पर पोस्ट की हैं। कितनी यादें मन में कौंध गयीं। वहाँ क्लब में बीहू बहुत उत्साह से मनाया जाता है। साज-सज्जा नृत्य-संगीत और पारंपरिक पकवान, सभी की तैयारी पहले से शुरू हो जाती है। पड़ोस वाले घर में दीवार उठनी शुरू हो गई है। आज पड़ोसिन अपनी कक्षा एक में पढ़ने वाली बिटिया को लेकर आयी थी, मकर संक्रांति का प्रसाद देने। तिल के लड्डू, छोटे वाले दो केले, पान, सुपारी, सिंदूर का छोटा सा पैकेट और दस रुपये का नोट। ऐसे ही एक तमिल सखी असम में दिया करती थी। नूतन पांडेय की लिखी हिन्दी किताब में असम की पृष्ठभूमि पर लिखी एक कहानी पढ़ी, यह पुस्तक असम से आते समय मृणाल ज्योति की प्रिंसिपल ने दी थी।टीवी पर वेदान्त की पाँच बोध कथाएँ सुनीं, पहली गधे की, दूसरी दसवाँ कौन, तीसरी शेर के बच्चे की, चौथी राजकुमार की और पाँचवीं राजा जनक की। सभी कहानियाँ बताती हैं कि सत्य क्या है, और लोगों द्वारा उसे क्या समझा जाता है।


Monday, March 11, 2024

पंचदशी

आज भी सरकार और किसानों के मध्य वार्ता चल रही है। पिछले साल जून में तीन नये कृषि क़ानूनों के विरुद्ध शुरू हुआ था यह आंदोलन, जिसमें बाद में किसानों ने दिल्ली की सीमा पर धरना शुरू कर दिया; शायद स्वतंत्रता के बाद से किसानों और सरकार के बीच सबसे बड़ा आंदोलन है। अब पंद्रह जनवरी को फिर से वार्ता होगी। आज उसने स्टॉक मार्केट पर एक पुस्तक पढ़नी शुरू की है। सेविंग तथा इन्वेसमेंट के बारे में पढ़ा। ​​​​इन सब विषयों के बारे में वह पूरी तरह से अनभिज्ञ है। दीदी-जीजा जी का भेजा एक उपहार मिला, पीतल जैसा आभास देता बत्तख़ों का एक जोड़ा है, उनके विवाह की वर्षगाँठ पर। आज बहुत दिनों के बाद एक पुरानी सखी का फ़ोन आया, वे लोग अगले वर्ष सेवा निवृत्ति के बाद बैंगलोर में बसना चाहते हैं। कारण पूछा तो बताया, दिल्ली का मौसम और प्रदूषण, साथ ही यहाँ के लोगों का अक्खड़पन, उसे मन ही मन हँसी भी आयी और कुछ पुरानी बातें याद हो आयीं, जब वे सब असम में रहा करते थे। आज शाम को साइकिल चलाते समय वह शायद सजग नहीं थी, एक छोटी लड़की का एक पहिये वाला स्कूटर सामने आ गया, लड़की घबरा गई, एक तरफ़ झुक गई, महक नाम है उसका, सामने वाली लाइन में रहती है। उसके साथ एक सहेली भी थी, कहने लगी, वे लोग हिंदी हैं, शायद उसका अर्थ था, वे हिन्दी बोलते हैं।उसने देखा है, ग़लत हिन्दी बोलने पर भी हिन्दी भाषी जरा भी नहीं टोकते, बल्कि ख़ुद भी उन्हीं के लहजे में बोलने लगते हैं। कन्नड़ भाषी अपनी भाषा को लेकर बहुत अधिक सजग हैं।मोबाइल पर उसने आज से‘पंचदशी’(पंद्रह) सुनना आरंभ किया है।पंचदशी स्वामी विद्यारण्य की अद्वैत सिद्धांत पर लिखी एक प्रसिद्ध कृति है। इसमें पंद्रह भाग हैं। जो तीन भागों में बाँटे गये हैं। इनमें सत्, चित्  और आनंद की व्याख्या की गई है।किंतु वह जानती है, ध्यान भी गहरा करना होगा यदि अध्यात्म में वांछित प्रगति करनी है। उस अनंत परमात्मा की अनंत शक्तियाँ हैं। जो कहता है उसे जान लिया, वह घोर अंधकार में घिर जाता है। परमात्मा तो बेअंत है, उसे जानने का एक ही अर्थ है, अधिक से अधिक उसके सान्निध्य में रहना, उसमें डूबना और त्याह ध्यान में ही संभव है। 


रात्रि के नौ बजे हैं । कल रात लगभग एक बजे अचानक नींद खुल गई।चेहरे पर पसीना था, शायद कमरा काफ़ी गर्म हो गया था।उठकर खिड़कियाँ व दरवाज़े खोले, कुछ देर बैठने से हवा का एक झोंका जैसे आकर छू गया, रात्रि की निस्तब्धता में कहीं से एक पंछी की आवाज़ सुनायी दी। दोपहर को उस सखी का फ़ोन फिर से आया।वे लोग अब मकान ख़रीदना छोड़कर किराए के मकान में रहने की सोच रहे हैं।उनके लिए घर देखना शुरू किया है। ईश्वर का विधान मानवों की समझ से बाहर है। वह बिछुड़े हुओं को कब कैसे मिलायेगा कोई नहीं जानता।अभी नन्हे और सोनू से बात हुई। सुबह वह उठा तो सिरहाने रखी दवा का नाम बिना पढ़े, आँख की दवा समझ कर डाल ली थी दिन भर परेशान रहा। डाक्टर ने दूसरी दवा दी है, कल तक अवश्य ठीक हो जाएगा। आज पापा जी से बात हुई, वह लाओत्से की एक पुस्तक पढ़ रहे हैं। उन्होंने कहा-उस पुस्तक के अनुसार, यदि कोई ये तीन बातें अपना ले तो सुखी रहेगा। प्रथम है, दिल में सारी कायनात के लिए अनायास ही प्रेम, दूसरी है किसी भी वस्तु या बात में अति पर न जाना और तीसरी कभी भी सबसे आगे रहने का प्रयास न करना। लाओत्से विनम्रता का पाठ ही तो पढ़ा रहे हैं, पीछे रहने में जिसे किसी हीनता का अनुभव न हो, वही समता में रहा सकता है और जो सबसे प्रेम कर सकता है, उसका मन भी डोलता नहीं। 


आज सुबह नींद चार बजे ही खुल गयी थी। कल रात ‘पंचदशी’ सुनकर सोयी थी। सुबह उठते ही एक सूत्र मन में आया; जो जागृत, स्वप्न और सुषुप्ति को देखता है, वह ‘मैं’ हूँ । योग वशिष्ठ में पढ़ा था, वास्तव में ब्रह्म में कुछ हुआ ही नहीं, सब स्वप्नवत् ही है। मन ठहर गया; सुबह-सुबह ही एक कविता लिखी, फिर कुछ देर का मौन, उसके बाद एक रचना उतरी। आर्ट ऑफ़ लिविंग के अनुवाद संयोजक को भेजी कि गुरुजी को पढ़ने के लिए भेजे, उसने कहा नकुल भैया से कहकर भिजवायेगा। गुरुजी का संदेश कल भी आया, आज भी एओएल के ऐप ‘सत्व’ में उनकी ज्ञान सूक्ति के माध्यम से।आज नन्हा, सोनू व बड़े भैया की बिटिया आये थे, जिसने निफ़्ट से पढ़ाई की है। दोपहर को उसके मनपसंद राजमा-चावल बनाये। नन्हे की आँख अभी तक ठीक पूरी तरह से नहीं हुई है। शाम को सब मिलकर पड़ोस में बन रहे आलीशान विशाल मकान को देखने गये, मकानमलिक भी आ गये थे।


जनवरी आधा भी नहीं बीता है, मौसम अभी से गर्म होने लगा है। आज गर्म वस्त्रों को धूप दिखाकर आलमारी में रख दिया, यहाँ उनकी कोई आवश्यकता ही नहीं है। शाम को एक और घर देखने गये, तीन कमरों का मकान अच्छा है मार्च में वे लोग आयेंगे, ऐसा कहा है।आज नन्हे ने एक दोसा तवा भिजवाया, संजीव कपूर की कंपनी का है, ग्रेनाइट का बना हुआ। कल उसका उद्घाटन करेंगे, उसने मन में सोचा ही था कि पहले आलू पराँठा बनायेंगे, ठीक उसी वक्त जून ने भी बिलकुल यही बात कही। विचार यात्रा करते हैं, यह सिद्ध हो गया। 



Tuesday, March 5, 2024

सरसों का साग

सरसों का साग 


आज प्रातः भ्रमण करते समय कुछ देर ‘वॉकिंग मैडिटेशन’ किया। इसमें हर कदम को सजग होकर उठाना है और दोनों हाथ देह से सटाकर रखने हैं, उन्हें हिलाते हुए नहीं चलना है। ऐसा करने से विचार रुक जाते हैं और भीतर मन ठहर जाता है। मैडिकेशन या मैडिटेशन दोनों से एक का चुनाव हर व्यक्ति को करना ही पड़ेगा। शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक रूप से स्वयं को स्वस्थ रखना हो तो ध्यान सर्वोत्तम उपाय है। गुरुजी के बताये कितने ही ध्यान मन को ऊर्जा से भर देते हैं। मन तब मनमानी करने से आनंदित नहीं होता बल्कि अपने लिए स्वयं काम तय करता है। जैसा सुबह तय किया था, उसने दोपहर को एक चित्र बनाया, एक कविता लिखी और एक पोस्ट ब्लॉग पर प्रकाशित की।कितना सही कहा है किसी ने परमात्मा भी उनकी सहायता करते हैं जो अपनी सहायता आप करता है।शाम को वर्षा के कारण बाहर जाना नहीं हुआ।रात को भी हल्की रिमझिम थी, जून को ऐसे मौसम में घर पर रहना ही भाता है, उन्हें लगता है चप्पल भीग जाएगी, कपड़ों पर छींटे पड़ेंगे सो अलग, पर उसके लिए बारिश एक उपहार है और उसके साथ जुड़ी हर बात भी।इसलिए दस-पंद्रह मिनट की छोटी सी वॉक के लिए वह छाता लेकर अकेले ही निकल गई। रात्रि नौ बजे आर्ट ऑफ़ लिविंग की दिव्य कांचीभोटला जी  का इंस्टाग्राम पर कार्यक्रम है। वह ‘ग्लोबल एन्सिएंट नॉलेज सिस्टम’ पर बोलने वाली हैं। उसे ट्रांस्क्राइब करना है। पूरा शब्द ब शब्द नहीं, केवल मुख्य बिंदु लिखने हैं। नौ बजे से आरम्भ होगा।बाद में उसका हिन्दी अनुवाद करना है।दिव्या जी एओएल की रिसर्च विंग श्री श्री इंस्टीट्यूट फॉर एडवांस्ड रिसर्च की डायरेक्टर हैं। जून ने भी पहले कुछ महीनों तक यहाँ कुछ काम शुरू किया था। यहाँ पर ध्यान, योग, आयुर्वेद और विश्व की अन्य ज्ञान प्रणालियों पर अनुसंधान होता है। सुदर्शन क्रिया के लाभों पर अनुसंधान भी हो रहा है। इस सेवा कार्य  से उसकी ख़ुद की जानकारी भी कितनी बढ़ रही है। उसने मन ही मन गुरुजी का धन्यवाद किया। 


आज सुबह आकाश स्वच्छ था, नीला धुला-धुला सा, कुछ तस्वीरें उतारीं, जो नेट पर प्रकाशित करेगी। नीले शुभ्र आकाश को देखकर किसी को भी अपने अनंत स्वरूप का स्मरण आ सकता है। कल उनके विवाह की वर्षगाँठ है। एक बार उसने एक नाटक सुना था, जिसका सार था, अनेक वर्षों साथ रहने पर भी कोई भी दो व्यक्ति पूरी तरह से एक-दूसरे को कहाँ जान पाते हैं; क्योंकि चेतना अनेक रूप बदल सकती है। एक ही व्यक्ति के भीतर अनेक व्यक्ति रहते हैं। एक वैज्ञानिक और संगीतकार एक साथ रह सकते हैं। गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर कितने ही विषयों में सिद्ध थे।जून आजकल ज़्यादा बात नहीं करते। सेवा निवृत्त हुए अभी उन्हें डेढ़ वर्ष हुआ है, कभी-कभी लगता है, वह अभी से बोर हो गये हैं।कोरोना के कारण भी वह बंधन महसूस करते हैं। जबकि उसके मन की उड़ान को देश-काल का कोई बंधन नहीं है। नन्हे ने फ़ोन करके जून के वस्त्रों का  साइज पूछा, शायद उपहार ख़रीदा रहा होगा। उसे इन सब बातों का बहुत ध्यान रहता है। 


आज का विशेष दिन भला-भला बीता।सुबह सभी मित्रों व संबंधियों के शुभकामना फ़ोन आ गये। वे हॉर्लिक्स पी रहे थे कि नन्हा और सोनू भी आ गये। वे केक और उपहार लाए थे। उन दोनों के लिए घड़ी और जून के लिए वस्त्र। अपने साथ रसोइये से विशेष रूप से मँगवाया सरसों का साग भी लाए जो यहाँ नहीं मिलता है और जून को बहुत पसंद है। दोपहर को मक्की की रोटी के साथ बनाया। नाश्ते में मोरिंगा के पराँठे बने, जो मोदी जी की पसंद हैं। सहजन के पत्तों से बनाये जाते हैं, यू ट्यूब पर  विधि देखकर बनाये। आज नया कुछ नहीं लिखा, गूगल की मेहरबानी से एक पुरानी कविता के साथ कुछ पुरानी तस्वीरों को जोड़कर एक वीडियो बनाया। शाम को वे आश्रम गये थे । विशाला कैफ़े में सागर नाम के एक युवक ने उनकी तस्वीर खींच दी। पहले वह जून की तस्वीर उतार रही थी। युवक तथा उसकी मित्र यह देख रहे होंगे। उसकी मित्र ने ही प्रेरित किया होगा संभवत:, तस्वीर अच्छी आयी है, उनकी एक और तस्वीर साथ-साथ ! 


Monday, February 26, 2024

पिरामिड वैली


पिरामिड वैली


नव वर्ष का प्रथम दिन ! सुबह नींद देर से खुली क्योंकि रात को बारह बजे से पटाखों की तेज आवाज़ें आनी आरम्भ हुईं और एक घंटा चलती रहीं। बच्चों व बड़ों के चिल्लाने का शोर भी स्पष्ट आ रहा था। नये वर्ष को तो आना ही है, इतना शोर मचाने का क्या अर्थ है, समझ में नहीं आता। प्रातः भ्रमण के समय आकाश में गोल चंद्रमा के दर्शन हुए, तस्वीर उतारी, वापस आकर छत पर सूरज की। उगते हुए सूरज को देखकर त्राटक करना कितना भला लग रहा था। स्नान करके नाश्ता बनाया और दोपहर के भोजन की तैयारी की, जो वे ‘पिरामिड वैली’ अपने साथ ले जाने वाले थे।जून ने बनारसी चिवड़ा-मटर; और खोये वाला गाजर का हलवा  उन्होंने कल ही बनाया था।  उसने हींग वाले आलू-पूरी और बटर में परवल बनाये। सभी को नाश्ता पसंद आया। बच्चों के साथ उनका एक मित्र भी आया था और सोनू के माँ-पापा भी। वे एक बजे पिरामिड वैली पहुँच गये थे। उनके घर से ज़्यादा दूर नहीं है यह शांत स्थान, जो २८ एकड़ में फैला हुआ है। सुंदर बाग-बगीचों और एक कमल सरोवर से घिरा दुनिया के सबसे बड़े आकार के पिरामिड के लिए प्रसिद्ध है। जो ध्यान के लिए एक संत ब्रह्मर्षि पात्री जी द्वारा बनवाया गया है। वे लोग पहले भी एक बार यहाँ आये थे, और तभी आज के दिन का कार्यक्रम बना था। यहाँ आकर ज्ञात हुआ कि बाहर से लाया भोजन इस परिसर में नहीं खा सकते।एक घंटा हरियाली के सान्निध्य में घूमते हुए बिताया, कुछ देर पिरामिड में जाकर ध्यान किया। किताबों की दुकान से दो किताबें ख़रीदीं, अवेकनिंग कुंडलिनी और द लॉस्ट ईयर्स ऑफ़ जीसस ! रेस्तराँ में चाय पैकर वे घर लौट आये। बाद में छत पर चटाई बिछाकर पिकनिक की तरह पेपर प्लेट्स में दोपहर का भोजन किया। शाम को वे वापस चले गये। जिन मित्रों व संबंधियों से सुबह बात नहीं हुई, उन्हें फ़ोन पर नये साल की शुभकामनाएँ दीं।   


आज सुबह ब्रह्म मुहूर्त में ही आँख खुल गई। छोटी ननद के लिए जन्मदिन की कविता लिखी, मंझले भाई का जन्मदिन भी आज है, उसे भी शुभकामना भरी कविता भेजी। जीसस वाली किताब में पढ़ा, लेह की हिमिस मोनेस्ट्री में कुछ दस्तावेज मिले हैं , जिनके आधार पर कहा गया कि ईसा भारत आये थे।शाम को पापा जी से बात हुई, उत्तर भारत में ठंड बहुत बढ़ गई है, उन्होंने कहा तापमान शून्य हो गया था। दिल्ली में वर्षा हो रही है। यहाँ बैंगलुरु का मौसम सुहावना है, पर कब बदल जाएगा, कहा नहीं जा सकता। 


आज यहाँ भी थोड़ी सी ठंड बढ़ गई है। रात को बारिश होती रही शायद इसी कारण। जून के दांत में दर्द है, कल डेंटिस्ट को दिखाकर नन्हे-सोनू के यहाँ चले जाएँगे। वे दोनों घर से ही काम कर रहे हैं।सुबह एलिजाबेथ क्लेयर की ईसा के भारत में बिताये समय के बारे में किताब आगे पढ़ी, बहुत रोचक है। ​​जीसस की भारत, तिब्बत  व नेपाल की सत्रह वर्षों की यात्रा के पक्के सबूत मिले हैं। उसमें लिखा है कि 13 साल की उम्र से 29 साल की उम्र तक वह पहले पढ़ते रहे फिर उन्होंने पढ़ाया भी ।येरूशलम से भारत तक की उनकी यात्रा का विवरण बौद्ध इतिहासकारों ने दिया है। किसान आंदोलन ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है। कल भी सरकार ने वार्ता के लिए बुलाया है। देश में कोरोना की वैक्सीन लगाने का काम आरम्भ हो रहा है । 


आज दिन भर बदली बनी रही। सुबह साढ़े नौ बजे वे डेंटिस्ट के यहाँ जाने के लिए निकले थे। जून को फ़िलिंग करवानी थी। उसने भी दिखाया, तो क्लीनिंग कर दी, दस मिनट की सफ़ाई के लिए एक हज़ार रुपये लिए। जब वे पहुँचे, ठीक उसी समय नन्हा भी आ गया, उसका मित्र उसे लेकर आया था। उसने अपनी मीटिंग आगे खिसका दी और इसलिए आया कि पापा को कहीं एनेस्थीसिया दे दिया गया तो ड्राइविंग में दिक़्क़त होगी।बच्चे बहुत समझदार और केयरिंग हैं। सुबह सामान्य थी, एक विशेष बात हुई कि छोटी भाभी का जन्मदिन है, सुबह ही याद आया, उसके लिए कविता लिखी उसी समय, जबकि उन्हें निकलना था। यह भी तो सेवा का एक कार्य हुआ न ! परसों बड़ी ननद का जन्मदिन है, कल ही उसके लिए लिखनी है। शाम को रमन महर्षि की बातचीत का एक अंश सुना, प्रेरणादायक था फिर गुरु जी का कराया ध्यान किया। मन शांति का अनुभव कर रहा था। सात तारीख़ को सूट-साड़ी पहनकर वे आश्रम जायें, ऐसा मन में विचार आया है ! उस दिन छत्तीस वर्ष हो जाएँगे उनके विवाह को। नन्हे-सोनू के यहाँ भोजन अच्छा था, दाल-चावल व करेले की सब्ज़ी !   


Tuesday, January 2, 2024

जूलियस सीज़र का कैलेंडर

रात्रि के पौने नौ बजे हैं। वैसे तो चारों ओर शांति है, पर कहीं दूर से किसी के घर कोई मशीन चलने की आवाज़ आ रही है। यहाँ दाँये-बायें, आगे-पीछे कोई न कोई घर बनता ही रहता है, फिर उसमें इंटीरियर का काम शुरू हो जाता है। यह तो अच्छा है कि शाम को छह बजे के बाद शोर नहीं कर सकते, शायद किसी ने विशेष अनुमति ली होगी। मौसम आज ज़्यादा ठंडा नहीं है। बहुत दिनों बाद पंखा चलाया है। रात्रि भ्रमण के समय देखा, आकाश पर चाँद खिला था, कल पूर्णिमा है, आकाश निर्मल था और हवा सुखदायी। उधर उत्तर भारत में कड़ाके की ठंड पड़ रही है, और हो भी क्यों न, दिसंबर का अंतिम सप्ताह है।आज हज़रत यूसुफ़ के बारे में एक वीडियो देखा, मिस्र की पुरानी सभ्यता के बारे में रोचक जानकारी मिलती है। उन्हें कितनी तकलीफ़ें सहनी पड़ीं, पर ईश्वर पर उनका भरोसा अटूट था। परमात्मा सभी के भीतर चेतना और संकल्प शक्ति के रूप में मौजूद है। इच्छा, क्रिया व ज्ञान की शक्तियाँ जो मानव के भीतर हैं, परमात्मा की देन हैं। मन जो भी सोचता है, बुद्धि उसे साकार करके दिखाती है। 


नन्हे ने कहा है नये वर्ष के दिन वे सभी पिकनिक के लिए पिरामिड वैली जाएँगे। आज किसानों की सरकार से हुई बातचीत का क्या नतीजा निकाला, पता नहीं है। ईश्वर करे, नया साल शुरू होने से पहले ही किसान अपना आंदोलन वापस ले लें। आज जून एक पेंटर को लाये थे, बेंत व लकड़ी के फ़र्नीचर पर उसने टचवुड लगाया। लगभग हर साल दिसम्बर में वह ऐसा करवाते हैं, इसीलिए वर्षों बाद भी फ़र्नीचर चमकता रहता है। आज सोसाइटी की तरफ़ से पानी डालने वाला आदमी आया तो धनिये की नन्ही पौध पर तेज बौछार कर उसे छितरा दिया। उसने ग़ुस्से का अभिनय किया ताकि वह आगे ऐसा न करे। नाटक ही करना है तो पूरे जज्बे के साथ करना चाहिए, वरना ज़िंदगी एक ख़्वाब से ज़्यादा तो नहीं ! 


वर्ष का अंतिम दिन ! बाहर बच्चों के खेलने की आवाज़ें आ रही हैं। आज संभवतः देर तक जागकर वे नव वर्ष का स्वागत करेंगे। उन दोनों का तो वही प्रतिदिन का सा कार्यक्रम है। यह समय कुछ लिखने-पढ़ने का है। वर्षों पहले टीवी पर ढेर सारे कार्यक्रम देखते थे, अब इच्छा नहीं होती। उसे याद आया, हज़रत यूसुफ़ की कहानी में देखा था, अब्राहम को जब अपने पुत्र इस्माइल को बलिदान करने को कहा गया तो वह राज़ी हो गये। उन्हें अपना पुत्र वापस मिल गया जब वे उसे छोड़ने को राज़ी थे। जब कोई जगत से चिपका रहता है तो जगत उसे नहीं मिलता। जब त्याग देता है तो वह पीछे-पीछे आता है। ‘तेन त्यक्तेन भुंजीथा’ का यही तत्पर्य है। वे श्वास छोड़ते हैं तो अगली श्वास भीतर भर जाती है। जब रिश्तों पर पकड़ ढीली हो तो वे अपने आप ही क़रीब होने का अहसास करा देते हैं। नन्हे ने बताया, सोनू को दो दिन से सर्दी लगी हुई थी। उसकी माँ को भी आँख में कुछ समस्या का पता चला है, डाक्टर ने आँख का व्यायाम करने को कहा है। वे लोग कल सुबह आयेंगे और सब मिलकर घूमने जाएँगे। आज जून के पुराने अधिकारी का फ़ोन आया, उन्हें कोरोना हो गया था, उनके पुत्र को भी।उन्होंने अपने दो अन्य मित्रों से भी बात की, नये साल में कुछ दिनों तक यह आदान-प्रदान चलता रहेगा। उसने नेट पर पढ़ा, चार हज़ार साल पहले भी नया साल मनाने की प्रथा बेबीलोन में थी। पर उस समय यह वसंत के आगमन पर २१ मार्च को मनाया जाता था। जूलियस सीजर ने ईसा पूर्व पैंतालीसवें वर्ष में पहली बार प्रथम जनवरी को नया वर्ष मनाने की प्रथा की शुरुआत की। 


Thursday, December 28, 2023

टाटा टी सेंटर

अभी-अभी उसने कुछ नये पौधों को पानी पिलाया है। मॉर्निंग ग्लोरी की पौध बहुत अच्छी तरह बढ़ रही है। इसे रोज़ पानी देना होता है। डहेलिया व पिटुनिया के जो पौधे धूप की तरफ़ हैं, वहाँ भी पानी दिया। नन्हे ने कुछ और गमले भेजे हैं, जून शिकायत कर रहे थे कि इतने सारे पौधों को पानी देते-देते वह पहले ही थक जाते हैं। आज पंचायत के दफ़्तर गये थे, वहाँ हिन्दी या अंग्रेज़ी समझने वाला कोई नहीं था, स्थानीय भाषा न जानने पर भी वह परेशान हो रहे थे।  कहने लगे, अपने प्रदेश में रहना कितना अच्छा होता। बाद में वे दोनों धूप में टहलने गये, जिसका रेशमी स्पर्श भीतर तक सहला रहा था, शाम तक वह सामान्य हो गये थे। इंसान का दिल बहुत नाज़ुक होता है, दुनिया की सबसे नाज़ुक वस्तु ! आज सुबह वे सोसाइटी के एक घर से सूखे मेवे ख़रीद कर लाये।उन्हें आश्चर्य हुआ, महिला की तराज़ू ठीक से काम नहीं कर रही थी, बस अंदाज़ से ही उन्होंने सामान तोल दिया था । 


रात्रि के नौ बजे हैं। बायीं तरफ़ के पड़ोस के घर से आवाज़ें आ रही हैं। उनके यहाँ रात का ख़ाना बनना इस समय शुरू होता है। एक दिन देर रात को उसकी नींद खुली, शायद ग्यारह बजे होंगे, सड़क पर कुछ लोग टहलते हुए ज़ोर-ज़ोर से बातें करते जा रहे थे। वह मन ही मन मुस्कुरायी, शायद निशाचर इन्हें ही कहते हैं।आज सुबह वे टहलने गये थे तो रास्ते में जीवन के लक्ष्यों के बारे में बात चल पड़ी । जून ने कहा, वह बिना किसी अधिक परेशानी के सहज जीवन जीना चाहते हैं और आरामदेह मृत्यु भी। यानी जीवन की अंतिम श्वास तक स्वस्थ रहना चाहते हैं। उनके शब्द  थे, जैसे कि चाय पीते-पीते लुढ़क गये !  उसे हँसी आयी, अर्थात आख़िर तक भी चाय नहीं छूटने वाली  ! उसने कहा, वह भी ऐसा ही चाहती है, पर इसके लिए कुछ करना तो पड़ेगा। नियमित व्यायाम, योग, प्राणायाम, सात्विक भोजन, अच्छी पुस्तकें पढ़ना, सेवा को भी स्थान देना होगा। वापस आते-आते सकारात्मकता से मन भर गया था। पौधों की निराई की, स्वाध्याय किया, दिन भर उत्साह बना रहा। आर्ट ऑफ़ लिविंग का अनुवाद कार्य किया, संयोजक ने कहा, एक दिन सभी अनुवादकों की भेंट गुरुजी से करवाने का प्रबंध वह कर रहा है।  


आज क्रिसमस का त्योहार है। उसने नापा के सेल्स ऑफिस में क्रिसमस की सजावट के चित्र उतारे। उनकी लेन में एक घर के सामने टॉय शॉप का पुतला लगा है, जहां बच्चे खिलौने ख़रीद सकते हैं। शहर में उनकी एक से अधिक दुकानें हैं।व्हाट्स एप और फ़ेसबुक पर अनेक संदेशों का आदान-प्रदान किया। नन्हे ने बताया, वे लोग टाटा टी सेंटर में चाय पीने गये, सोनू ने केक बनाये थे, जो वह अनाथ बच्चों के एक आश्रम में उनके लिए ले गई। यू ट्यूब पर ईसामसीह के जीवन पर आधारित एक फ़िल्म देखी, कितने दुख उन्हें दिये गये, उन्होंने सब स्वीकार किया। अद्भुत है उनकी जीवनगाथा, सुंदर हैं उनकी कहानियाँ, जो अपनी बात समझाने के लिए वे लोगों को सुनाते थे !  


आज का दिन विशेष रहा। शनिवार को वैसे भी साप्ताहिक सफ़ाई का दिन होता है, और साप्ताहिक विशेष स्नान का भी। ग्यारह बज गये थे जब सारे काम ख़त्म होने के बाद वह तैयार होकर सीढ़ियों से नीचे उतरी। अचानक देखा, सोनू के माता-पिता बैठे थे, नन्हा और वह किचन में चाय बना रहे थे। उसे आश्चर्य मिश्रित ख़ुशी हुई, कोरोना के बाद पहली बार किसी मेहमान के आने की ख़ुशी। सब ने मिलकर लंच में पुलाव, सब्ज़ी और रायता बनाया, डिनर में पास्ता, सूप व सलाद। 


आज इतवार का दिन भी सबके साथ बिताया। पंचायत के चुनाव की वजह से नैनी सुबह जल्दी आ गयी, उसे वोट देने जाना था। प्रातः भ्रमण के लिए जब वह निकली तब कोहरा छाया था। वातावरण बहुत मोहक लग रहा था। वापस आकर जून के साथ मिलकर दक्षिण भारतीय नाश्ता बनाया। दस बजे तक  नन्हा सभी को लेकर आया, साथ में माली भी था। दोपहर तक नये गमले तैयार करके पौधे लगाये। वह गया तो सभी ने मिलकर भोजन बनाया। कुछ बोर्ड गेम्स भी खेले, शाम को टहलने गये, और दिन कैसे बीत गया, इसका भान ही नहीं हुआ।


Thursday, December 14, 2023

लैवेंडर के बीज

आज ‘विजय दिवस’ मनाया जा रहा है। सन ७१ में आज ही के दिन बांग्ला देश का जन्म हुआ था। पाकिस्तानी सेना ने आत्म समर्पण कर दिया था। प्रधानमंत्री ने विजय चौक पर मशाल जलायी। उन्होंने ‘१९७१’ फ़िल्म देखी, भारत के कुछ सिपाही जो पाकिस्तान में रह जाते हैं, उनके दुखद प्रवास की कहानी। किसान आंदोलन अभी भी जारी है। आज कन्नड़ भाषा के कुछ और शब्द सीखे, बट्टा- वस्त्र, आदिगे- रसोई, चिक्का-छोटा।नये माली से कन्नड़ में बात की, एक वाक्य ही सही, इतवार से काम पर आएगा। नन्हे ने कुछ और गमले मँगवाये हैं, उनके टैरेस गार्डन के लिए।एक मून लाइट लैंप भी भेजा है, उसे चार्ज किया। रंग बदलती है उसकी सतह, बहुत सुंदर लगता है। 


आज पूरे नौ महीने बाद एक घंटे के लिए वे आश्रम गये, जो कोरोना के कारण इतने महीनों से बंद था। लोग बहुत कम थे। गुरुजी का सत्संग अभी एक महीने बाद ही आरम्भ होगा। ब्रिटेन में कोरोना का नया वेरियेंट मिला है, जो तेज़ी से फैलता है। वहाँ फिर से लॉक डाउन लग गया है। भतीजी को उसके जन्मदिन पर छोटी सी कविता भेजी, उसने छोटा सा थैंक्यू लिख कर जवाब दिया। कविता की कद्र कम को ही होती है शायद, कविता कोई क्यों लिखता है, शायद जब कोई खुश होता है तो ख़ुशी बाँटना चाहता है। नाश्ते में आज मूँगदाल के चीले बनाये। उसने सोचा है, शनिवार के दिन कोई न कोई चित्र बनाएगी। इतवार बच्चों के नाम रहता है। सोम से शुक्र हर दिन एक ब्लॉग को समर्पित रहेगा। इस तरह सभी पर बात धीरे-धीरे ही सही आगे बढ़ेगी। सुबह वे दोनों ननदों को याद कर रही थी, कि एक-एक करके उनके फ़ोन आ गये, टेलीपैथी इसी को कहते हैं शायद। सुबह नैनी आयी तो बहुत उदास थी। शायद घर में झगड़ा हुआ था। पीकर आये पति ने उसे चोट पहुँचायी थी। न जाने कितनी महिलाएँ इस तरह अत्याचार सहती हैं, जबकि वह कमाती है, छह घरों में काम करती है। बहुत खुश रहती है और मन लगाकर काम करती है।  


अभी नन्हे से बात हुई, कल इतवार है, वह दोपहर को पास्ता बनाने को कह रहा है। सोनू कुछ हफ़्तों के लिए माँ के घर गई है। आज सुबह सोलर पैनल की सफ़ाई की। नैनी आज पूर्ववत थी, उसे देखकर अच्छा लगा। बातों-बातों में जून ने कहा, वे बोर हो गये हैं। उसने सोचा, जो जगत से बोर हो जाएगा, वह यदि भीतर नहीं मुड़ा तो उसके जीवन में रस नहीं रहेगा। कोरोना ने न जाने कितने लोगों को बोर और उदास कर दिया है। 


नन्हा आया तो उनके भावी नये पड़ोसी बैठे थे। उन्होंने अपने घर के बारे में कई रोचक बातें बतायीं। उनका घर दुमंज़िला होगा, जिसमें स्वीमिंग पूल होगा और छत पर एक से अधिक बगीचे। होम थियेटर तथा एक बड़ा सा मंदिर। उनके सपनों का घर जब तक बन कर तैयार नहीं जाता, उन्हें शोर तथा अन्य असुविधाएं झेलनी पड़ेंगी, इसके लिए वह शुरू से ही क्षमा माँगने आये थे। 


सुबह सवा चार बजे नींद खुली। समय की धारा बहती जा रही है। वह नींद और सपनों में वक्त गुज़ार देते हैं अथवा तो इधर-उधर के कामों में। सुबह टहलते समय भ्रमण-ध्यान किया। शीतल पवन चेहरे को सहला रही थी, आकाश में तारे चमक रहे थे और वातावरण पूर्णतया शांत था। ऐसे में मन स्वतःही एकाग्र हो जाता है। आज उसने लैवेंडर के बीज बोए हैं। शायद एक हफ़्ते में पौध निकल आयें। नन्हे के भेजे हुए गमले आ गये हैं, इतवार को वह मिट्टी लेते हुए आएगा। जून ने कोकोपीट व खाद भी मँगवा दी है।नाश्ते के बाद वे वोटर कार्ड बनवाने पंचायत के दफ्तर गये, पर संबंधित महिला कर्मचारी नहीं मिली। शाम को पिताजी से बात हुई, वे तीन हफ़्तों बाद दिल्ली से घर लौट आये हैं। रास्ते का विवरण बताया, कैसे ढाबे पर रुके, पेट्रोल भरवाया, सब्ज़ियाँ ख़रीदीं। उन्हें मिले उपहारों के बारे में बताया। घर आकर वह बहुत खुश हैं। किसान आंदोलन ख़त्म होने का  नाम ही नहीं ले रहा है। पश्चिम बंगाल में बीजेपी अगले चुनावों की तैयारी में अभी से लग गई है।