Saturday, June 18, 2011

पहली होली


रात्रिभोज का आयोजन किया था उन्होंने, अच्छा रहा, कुछ नए लोगों से परिचय हुआ. कल वे गोल्फ फील्ड में एक छोटी सी पहाड़ी पर बैठे रहे, अँधेरा था, बायीं ओर बड़े-बड़े वृक्ष अर्धवृत्त बना रहे थे, स्पष्ट दिखाई दे रहे थे, ठंडी हवा बह रही थी, महीनों बाद नूना इस तरह के वातावरण में फिर से थी, अपने शहर में कल्पना में उसके साथ होती थी, पर कल वह सचमुच साथ था.
वही कल का समय है, वह ऑफिस में है, कल दोपहर को जब वह घर आया तो कितनी देर  दरवाजा खटखटाता रहा, पर नूना की नींद नहीं खुली, याद नहीं पड़ता पहले कभी ऐसा हुआ हो, इतनी गहरी नींद आयी हो कभी. उसने एक बार रसगुल्ले का नाम लिया तो ढेर सारे ले आया. वे क्लब से वापस आ रहे थे तो उसने मजाक में एक बात कही जो नूना को नागवार गुजरी, सुलह तो रास्ते में ही हो गयी पर घर आकर उसने उसके लिये चाकलेट ड्रिंक बनाया नूना ने चिवरा-मूंगफली तला, भीतर तक भरे-भरे वे दूर-दूर तक घूमने गए.

आज नूना को यहाँ आये पूरा एक महीना हो गया है. कितनी ठंड है आज, धूप भली लग रही है. कल उसने एक साड़ी को फाल लगाई, आज देखा तो पता चला सीधी ओर लगा दी है, फिर से खोल कर लगाई. उन दोनों को एक नामालूम सा डर लग रहा है, कल शाम को शायद उसी कारण से उसे कुछ बेचनी सी भी हो रही थी. रविवार होने के बावजूद आज वह घर पर अकेली थी, उसे ओसीएस जाना पड़ा है, यानि आयल कलेक्टिंग स्टेशन नूना को भी तेल उद्योग के बारे में काफी जानकारी हो गयी है, एक्सप्लोरेशन, ड्रिलिंग, प्रोडक्शन तथा ट्रांसपोटेशन सभी के बारे में उसने बताया, उसे एक परीक्षा भी देनी है लेकिन विशेष पढ़ाई नहीं कर पाया है.

अभी कुछ देर पूर्व वह आया, नूना स्नानघर में थी. कपड़े भी धोने थे, इतवार को धोने लगी तो उसने कहा यह सब काम तुम किसी और दिन भी तो कर सकती हो,  वे हर पल साथ होना चाहते हैं. कल शाम वे स्टेशन पर घूमने गए, छोटा सा स्टेशन, वे चलते ही चले गए, आकाश में रुई के फाहों की तरह बादल थे, चाँद आधा था, और शाम के धुंधलके में वृक्ष मनमोहक लग रहे थे, सुपारी के लम्बे-लम्बे वृक्ष यहाँ बहुतायत से मिलते हैं जो एक अलग ही माहौल बना देते हैं.
मार्च महीने का प्रथम दिन.. वसंत का महीना यानि फाल्गुन का महीना... नहीं.. होली का महीना !
उसके साथ पहली होली... वह अभी कुछ देर पूर्व आया था, शायद ही कोई दिन ऐसा होता हो जब वह एक बार बीच में न आता हो फील्ड जाते या आते समय. कल रात वे कितनी देर पुरानी कॉलेज की बातों में खोये रहे, उन दिनों की यादें कितनी मधुर हैं. उसने अपने कुर्ते का बटन का एक बटन टांकने को कई दिन पहले कहा था, नूना को याद ही नहीं रहा, पर उसने सोचा कि यह इतना आवश्यक कार्य है सो अभी करूंगी. उसके पास रुमाल होते हुए भी चेहरा हाथ से पोंछता है, उसे खुद समझना होगा यह अच्छी आदत नहीं है.. कभी यह बात वे दोनों तीसरे से कह रहे होंगे.

मार्च १९८५
दो-तीन वर्ष पूर्व जब नूना उत्तर प्रदेश में थी, वह उससे मिलने आया था और उसे करेले की सब्जी और मूँग की दाल खिलाई थी, आज उसी दिन को याद करते हुए वैसा ही खाना बनाया है. कल उसने पूछा  कि आज सुबह कोई विशेष कार्य तो नहीं है, क्योंकि उसे कुछ अपना काम करवाना है, जैसे उसके काम नूना के कार्यों से अलग हैं, पर इससे यह भी तो पता चलता है कि उसे मेरे कार्यों का कितना ख्याल है, उसने सोचा. कल वे टेबिल टेनिस नहीं खेल पाए क्योंकि क्लब में टीटी बाल नहीं थी. क्लब में ‘नदिया के पार’ वाली साधना सिंह की फिल्म थोड़ी देर देखी ‘ससुराल’, पर इसमें वह उतनी अच्छी नहीं लगी. घर से पत्र आये हैं हमें भी होली से पहले सभी को खत लिखने हैं.

कल का वह ना मालूम सा डर अभी तक दोनों के मन में है. आज सुबह बहुत जल्दी नींद खुल गयी और वे घूमने गए. कल शाम वे उसके बॉस के यहाँ गए थे जो कन्नड़ हैं, पहली बार गाजर का हलुआ बनाया जो उसके अनुसार अच्छा बना है, छोटे भाई का खत आया है उसकी नौकरी शुरू हो गयी है.  आज जीप में ओसीएस गए, उसका इम्तहान ज्यादा अच्छा नहीं हुआ, नूना ने सोचा कि अब मैं ध्यान रखूंगी, अध्ययन भी उतना ही जरूरी है जितना भोजन, यह भी तो मानसिक भोजन है.

कल वह नहीं लिख सकी. सुबह उठी तो स्वस्थ थी, उसके जाने के बाद उत्साहपूर्वक आसन किये, ‘स्वर संगम’ प्रभात देखते हुए ऐसा करना उसे बहुत भाता है, फिर कपड़े धोने के लिये सर्फ घोल रही थी कि  मालूम हुआ वह डर मिथ्या था, खुशी तो थी ही पर खाना बनाते समय घबराहट बढ़ने लगी और खड़ा होना मुश्किल हो गया, फिर उसके आने तक सिवा दर्द, बेचैनी के कुछ भी महसूस नहीं कर पा रही थी. कमजोरी पता नहीं कहाँ से एकाएक आ गयी थी. फिर उसकी हिदायतें याद आने लगीं वह कितनी बार कहता है कि कुछ खा लेना, चाय, काफ़ी या बिस्कुट ही सही. आने के बाद उसने बहुत अच्छी तरह देखभाल की, कभी हार्लिक्स वाला दूध, कभी बोर्नविटा वाला, फिर अंगूर और नारंगी ले आया, रात को इतना मना करने पर भी बासी रोटियाँ ही खा लीं, उसके लिये कार्नफ्लेक्स बनाया. तभी तो एक ही दिन में नूना पहले जैसी हो गयी है.



कल वह अस्पताल गयी, डॉक्टर ने देखते ही कहा I shall admit you पहले तो कुछ समझ ही नहीं पायी, दुबारा पूछा और पूरे २३ घंटे वहाँ रहने के बाद आज घर आयी है. अभी एक हफ्ता और आराम करने को कहा है डॉक्टर ने. वह चार-पांच बार मिलने आया, वह इतना ख्याल रखता है कि नूना को बरबस ही उसके प्यार पर प्यार आ जाता है. वह एक मित्र भी है और सरंक्षक भी. अभी समाचारों में सुना कि देश भर में होली का उत्सव मनाया जा रहा है, पर यहाँ तो होली की छुट्टी कल है, उसने क्या-क्या सोचा था इस दिन के बारे में, क्या वह सब पूरा होगा? वह साथ है तो अवश्य होगा, वे एक-दूसरे को रंगों से सराबोर कर देंगे.
आज होली है, या कहना चहिये कि होली थी क्योंकि इस वक्त रात के दस बजे हैं, सुबह वे बहुत जल्दी उठ गए थे. मौसम अच्छा था पर डॉक्टर ने घर से बाहर जाने को मना किया है, सात दिनों के लिये बेड रेस्ट, सो घूमने या लॉन में ही टहलने का सवाल ही नहीं था, फिर चाय पीकर उन्होंने गुझिया बनायी, अच्छा लग रहा था उसे गुझिया भरते हुए देखना, वह इतना मन लगा कर हर काम करता है कि उसके साथ काम करना बहुत आसान हो जाता है, फिर नाश्ता करके नूना आराम करने थोड़ी देर   लेट गयी और उसे सोता देख कर उसने ढेर सा रंग लगा दिया, फिर तो उनकी होली शुरू हो गयी, हमेशा याद रहेगी यह पहली होली. उसके साथी आये थे क्लब ले जाने के लिये पर वह उसके स्वास्थ्य की वजह से नहीं गया,  बड़ी मुश्किल से रंग छुड़ाया, फिर भोजन बनाया, सब उसने, नूना ने सिर्फ पूड़ी बेली. शाम को वे बाहर बरामदे में बैठे, आसमान बहुत सुंदर था. उसके असीम प्यार की तरह. उन्होंने पुरानी चिट्ठियाँ पढीं, एल्बम देखा और अब सोने का वक्त हो गया है.

नूना को उसकी प्रतीक्षा है, घड़ी बंद हो गयी है, समय का पता ही नहीं चल रहा, साढ़े दस तो बजने ही वाले होंगे. सुबह वह कह गया था कि आठ-साढ़े आठ बजे एक बार वह आयेगा, सिर्फ दो गुझिया खाकर चला गया था, सो भूख भी लगी होगी. संभव है वह आया हो, वह सो गयी थी दरवाजा बंद था, उसकी बात न मान कर सदा बाद में उसे दुःख होता है, वह दरवाजा खोल कर रखने को कह गया था. पर अब वह आने ही वाला है. मन होता है उसके लिये खाना बनाना शुरू करे पर उसे अच्छा नहीं लगेगा, उसने वादा लिया था कि उसके पीछे वह कोई भी काम नहीं करेगी. वैसे अब वह ठीक है, गला भी ठीक है और मन भी खुश है. जल्दी से फिर वे दिन आ जाएँ जब वह दस से ग्यारह के बीच उसकी प्रतीक्षा करते हुए भोजन बनाती थी. कितनी जल्दी बीत जाता था तब समय और अब काटे नहीं कटता. वही पक्षी फिर बोल रहा है वे दिन में कई बार उसकी आवाज सुनते हैं. कहीं से हारमोनियम पर गाने की आवाज भी आ रही है. मौसम अच्छा है आज, धूप निकली है. वह आने ही वाला होगा या और प्रतीक्षा कराएगा.

उसके आने का वक्त हो गया है. टालस्टाय भी क्या खूब लिखते हैं. सुबह से ही ‘अन्ना केरेनिना’ मन मस्तिष्क पर छायी है, पता नहीं आगे क्या होगा, क्या अन्ना और बोन्सकी विवाह कर लेंगे या उसी तरह रहते आएँगे जैसे अब तक रहते आये हैं, और कीटी से मिलने लेविन जायेगा ही, ऐसा लगता है. आज दोनों घर से खत आये हैं. लगातार काफ़ी देर तक पढ़ने से आँखें जलने लगी हैं अब नहीं पढ़ेगी. उसे अब आ जाना चाहिए, उसका साथ कितना अच्छा है, पर वे  सदा हल्की-फुलकी बातें ही करते हैं, ऐसी बातें जो सिर्फ उन्हें और निकट लाती हैं, जीवन की गम्भीर बातों की तरफ उनका ध्यान ही नहीं जाता.    
वही कल का समय है, उस पुस्तक का तीसरा भाग पढ़ रही है, इस सप्ताह के अंत तक अवश्य ही उसे पूरा पढ़ा जा सकता है. आज डॉक्टर ने और दवा लिख दी, उसके यह कहने पर कि साँस लेने में कठिनाई महसूस होती है. उसे वास्तव में समझ नहीं आता कि सचमुच कुछ हुआ भी है, कभी तो सब ठीक लगता है पर किसी वक्त एक घुटन सी महसूस होती है, पर यह कोई विशेष नहीं होती. आज शाम वे  कई दिनों के बाद लाइब्रेरी जायेंगे. जीवन अबाध गति से चल रहा है या कहें चल निकला है, पर इतना काफ़ी नहीं है, कुछ करना चाहिए, इतनी सुविधापूर्ण जिंदगी की कल्पना उसने नहीं की थी. मौसम अच्छा है आज. उसके कदमों की आवाज आ रही है, वह आते ही उसे देखना चाहेगा जैसे वह उसे.

कल का दिन कुछ जल्दी-जल्दी गुजर गया, डायरी नहीं लिख  पायी. जितना भी समय मिला वह अन्ना, लेविन और कीटी के साथ बिताया, इतनी अच्छी किताब है यह, अब तक नहीं पढ़ी थी आश्चर्य होता है. परसों वह पूरा एक घंटा देर से आया था, फिर हम क्लब गए, वहाँ धर्मयुग में एक मजेदार बात पढ़ी. आज छोटी बहन का पत्र आया है उसने सोवियत नारी में से ‘वह मेरे दिल की रानी’ की  बारहवीं किश्त भेजी है. उसने बीच की कुछ किश्तें नहीं पढीं. आज अन्ना की किताब भी पूरी पढ़ ली, उसका कितना दुखद अंत हुआ. अब रात के आठ बजे हैं, खाना बनाना है, उसे पसंद नहीं फिर भी पता नहीं क्यों उसने बैंगन कई सब्जी बनायी है, वह भी सोचता होगा.

भी सुबह के पौने आठ ही बजे हैं, नूना ने स्नान कर लिया है और ट्रांजिस्टर पर नूरजहाँ का यह सुंदर गीत सुन रही है, ‘’आवाज दे कहाँ है’..... आज सुबह वह जल्दी उठ गयी थी पर वह उठा अपने वही पुराने वक्त पर. कल शाम को वह उसे एक बात बता रही थी कि उसने चुप कराते हुए कहा, समझ गए...समझ गए... चाहे वह समझ ही क्यों न गया हो पहले वह पूरी बात सुनता था. और उससे पहले किसी मित्र के यहाँ से आते समय उसने दो-तीन बातों का विरोध किया, फिर तो उसने चुप रहना ही ठीक समझा. शायद यह उसका वहम हो और वह चाहती है कि यह वहम ही हो कि ...पर सुबह उनकी सुलह हो गयी वह कह गया है, उसके जाने के बाद वह उदास न रहे. नूना खुश तो है. आज सुबह सूरज कितना सुंदर था..उदय होता हुआ अरुणिम सूर्य...ठंडी हवा और सड़क पर एक सफेद बकरी खड़ी थी, दो कुत्ते आये तो वह डर कर गेट की ओर भाग आयी थी उसने गेट खोला तो वह अंदर आ गयी, अगर उस वक्त वह उसके साथ होता तो सुबह और भी सुंदर होती पर यह हो नहीं सकता.


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