Tuesday, June 21, 2011

गुलाब का पौधा


नूना स्नानघर में थी कि दरवाजे पर खटखटाहट हुई, कल भी ऐसा हुआ था. बहुत कोफ़्त होती है ऐसे में. अभी सवा सात ही हुए थे, दूधवाला आज जल्दी आ गया था. आज सुबह वह साथ-साथ ही उठ गये  थे. बाहर लॉन में गए, सुबह का समय उसे सदा से सर्वप्रिय लगता है, उस वक्त वह सबसे अच्छी मनःस्थिति में होती है. याद आती हैं वे सुबहें जब प्रातः भ्रमण के समय गुलाब की झाड़ियों के साथ साथ चलती थी दूर तक अकेले पर हमेशा उसके बारे में सोचते हुए..... फूफाजी का पत्र आया है दादाजी की तबियत ठीक नहीं है, बुआजी घर गयी हैं. अब दूसरा पत्र आने तक उन्हें उनके स्वास्थ्य के बारे में पता भी नहीं चलेगा. आज रात्रिभोज पर जाना है, उसकी पसंद की पीली साड़ी पहनने वाली है नूना, कल रात को सपने में खूब होली खेली, बचपन की सहेली संतोष को देखा. उसकी मकान मालकिन व उनकी बेटियों को भी. उन गमलों का पता नहीं क्या हाल होगा, छोटी बहन ने एक बार भी तो नहीं लिखा, वह गुलाब का पौधा अब बड़ा हो गया होगा. 

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