Wednesday, January 11, 2012

लॉन में हरी घास पर


अभी कुछ देर पहले कम्पनी के दो कर्मचारी दो खिड़कियों के शीशे लगा कर गए हैं, कमरा फिर से गंदा हो गया है. शीशे के टुकड़े बिखरे हैं और धूल भी, पर उसे साफ करने का नूना का मन नहीं होता, थोड़ी थकान सी लग रही है. कल की तरह आज भी उसने लॉन में कुछ देर घास काटी, चार-पांच दिन लगातार काटने से सब कट जायेगी, जरा भी मुश्किल नहीं है यह काम. अभी तो लॉन कैसा बेतरतीब लगता है, पता नहीं वह कौन सा शुभ दिन होगा उसने सोचा, जब एक अदद माली यहाँ काम करने लगेगा. आज बहुत दिनों बाद सुबह-सुबह आसमान स्वच्छ है पर धूप भी तेज नहीं है. कल दिन भर बादल छाये रहे. वे दोनों एक किताब पढ़ रहे हैं साथ-साथ खुशवंतसिंह की Indira Gandhi returns  अच्छी है. वह पाक कला पर भी एक किताब लायी थी जिसमें से पढ़कर आलू-मटर की सब्जी बनायी जो उसे पसंद आयी.
  

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