Monday, January 23, 2012

मृत्यु या विरह के भय बोध


इसी महीने की अंतिम तिथि को छोटी बहन का जन्म दिन है. उसका बचपन भी याद है, देखते देखते कितनी बड़ी हो गयी नूना ने सोचा वह उसे जन्म दिन का कार्ड भेजेगी और खत भी लिखेगी. इस रविवार को वे दिगबोई जायेंगे, यदि मौसम ने साथ दिया. आज सुबह से वर्षा हो रही है. सुबह देर से उठे पर जून इतनी जल्दी तैयार हो गया, वह सभी काम बहुत शीघ्रता से करता है. वर्षा थमी तो हवा और बादलों को देख कर घर में बंद रहना संभव नहीं हुआ तो नूना सामने वाली पड़ोसिन के यहाँ गयी उनका एक वर्ष का बेटा बहुत प्यारा है और चार वर्ष की बेटी उतनी ही बातूनी.
रात्रि के साढ़े नौ बजे हैं, जून जूते पोलिश कर रहा है, बहुत अच्छा समय चुना है उसने इस काम के लिये. आज घर से पत्र आये हैं, भाई ने होने वाली पत्नी को पत्र लिखने को कहा है पर नूना को समझ नहीं आता कि वह क्या लिखे.
...सँग चलने को तेरे कोई हो न हो तैयार, हिम्मत न हार, चल चला चल अकेला चल चला चल...आज उन्होंने ‘फकीरा’ फिल्म देखी. उसी का गाना नूना को याद आ रहा था. फिल्म देखकर मन पर छाया अवसाद छंट गया सा लगता था. दोपहर को उसने जिस तरह कहा, नूना खुश रहा करो..हमेशा खुश. उससे वह अभिभूत हुई थी. उसके प्रेम की थाह पाना मुश्किल है. असीम है उसका प्रेम नूना के प्रति. आज सुबह उसका मन अच्छा नहीं था, तबीयत भारी लग रही थी. सो गई. जून जल्दी आ गया, उसने खाना बनाने में सहायता की. पर वह एक पत्र लाया था. जिसमें एक जीवन के जिसने अभी संसार में पदार्पण ही किया था, अनुभव नहीं था जिसे जीवन की गहराइयों का, उसके समाप्त होने की खबर थी. दुःख तो हुआ ही पर सदा की तरह ऐसे वक्त उत्पन्न होने वाला वैराग्य नहीं था, बल्कि जीवन के प्रति लगाव और गहरा हो गया हो जैसे. कल्पना भी दुसहः लगती है कि उन दोनों के मध्य कोई और भी आ सकता है... मृत्यु, विरह. नहीं यह निराशा वादी विचार है, जीवन आशा का दूसरा नाम है. नूना ने घड़ी देखी, उसे लगा अब देर हो रही है, वह भी वहीं बैठा था जमीन पर उसके साथ.   
  

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