Wednesday, February 1, 2012

क्लब में टेलीविजन


आज उनके विवाह को पूरे सात महीने हो गए. कहाँ इंतजार के इतने वर्ष...और अब कैसे बीत गए यह सात महीने. कितनी खट्टी-मीठी यादें हैं इन सात माहों की, खट्टी कम मीठी ज्यादा. आज उसका मन शांत है, कहीं कोई उद्वेग नहीं, जैसे शांत पानी पर धीमे-धीमे नाव अपने लक्ष्य की ओर बहे जा रही हो. न तूफान का डर, न राह भटकने का. जून का साथ आश्वासन भरा है, सुरक्षा भरा. फिर उसमें भी इतना तो साहस है कि भविष्य का चाहे वह सुंदर हो या असुंदर, सामना कर सके. इन महीनों में एकाध बार उसका विश्वास डगमगाया है वैसा होने पर उसे दुःख भी हुआ, अब वैसा न हो इसकी चेष्टा भी करेगी उसने सोचा. दोपहर को एक किताब पढ़ती रही, रमेश बक्षी का उपन्यास ‘बैसाखियों पर टिकी इमारत’ नायक पर क्रोध आया उसे बेहद क्रोध. किताब पढ़ना शुरू करने के बाद बाकी सब भूल जाती है, कई आवश्यक कार्य रह गए अब उसने सोचा है कि सारे काम खत्म करने के बाद ही पढ़ना शुरू करेगी.
आज इतवार है, शाम को क्लब में टीवी पर एक पंजाबी फिल्म दिखाई जायेगी, ‘उडीकां’. सुबह ‘स्टार ट्रेक’ देखने भी वह गए थे. कितने दिनों के बाद नूना ने क्लब में टीवी देखा, पर उसे लगा उसके स्तर में कोई फर्क नहीं आया है, कार्यक्रमों में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है. इतने दिनों से घर से आये पत्रों से व पत्र-पत्रिकाओं में टीवी कार्यक्रमों के बारे में पढ़कर उसके प्रति जो आकर्षण पैदा हुआ था, वह केवल एक अच्छी फिल्म देखने तक ही रह गया है. कल यानि शनिवार को एक डिनर पार्टी थी, नूना ने पहली बार जून को अपने सहकर्मियों और उच्च अधिकारी के साथ देखा. वह काफ़ी उत्साहित लग रहा था, पार्टी के आयोजन में भी उसका योगदान था. नूना को बहुत अच्छा लगा और उसने मन ही मन दुआ की, कि वह इसी तरह सभी का प्रिय पात्र बना रहे.
  

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