Monday, February 27, 2012

गुलामी का दर्द



कल रात उसने एक अजीब स्वप्न देखा. वह आजाद भारत की नहीं पराधीन मुल्क में रहने वाली लड़की है. उनके कपड़े भी किसी और तरह के हैं. गुलामों की जिंदगी जीते हैं वे लोग. यदि सड़क पर जा रहे हों और सामने से कोई अंग्रेज उच्चाधिकारी आ रहा हो तो उन्हें पीछे जाना होता है, रास्ता देने के लिये. महिलाओं को परेशान करते हैं वे लोग. एक शाम उसे एक अँधेरी कोठरी में बितानी पड़ती है. खाने-पीने की वस्तुएं जो उन्हे दी जाती हैं शुद्ध नहीं होतीं. दबकर रहना होता है. उसने दीदी को भी देखा. एक पागल को भी जो चादर ओढ़कर( वह अंग्रेज था) घर में आवाज देता हुआ आता है, उसके माता-पिता भी आते हैं, वह उसके पिता से कुछ बात करते हैं, पुरानी-पुरानी सड़कें देखीं, बग्घियाँ देखीं. उठने के बाद देर तक इस स्वप्न की स्मृति बनी रही.
सुबह धोबी के बेल बजाने पर वे उठे, पूरे छह बजे थे. समाचारों में सुना कि पंजाब में मतदान आरम्भ हो गया है. पिछले हफ्ते मैक्सिको मनाने वाले भूकम्प में मरने वालों की संख्या चार हजार हो गयी है, कितने ही मलबे के नीचे दबे हुए हैं. 

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