Sunday, April 15, 2012

मैक्रामे की डोरी


जून को गए सात घंटे हो चुके हैं, इतनी देर में उसने सत्तर बार तो उसे याद किया होगा और नूना ने ...हर क्षण उसे याद किया है. बस स्टैंड पर उसके विदा लेते समय कैसे जड़ सी हो गयी थी वह. पता नहीं कैसे बीतेंगे ये दो-ढाई महीने. हो सकता है वह जल्दी आ जाये. मुज्जफरनगर आये उसे सातंवा दिन है. बहुत अच्छा लगा था इतने दिनों बाद सबसे मिलकर पर अब लगता है जैसे वह यहाँ से गयी ही नहीं ऐसे ही उसकी प्रतीक्षा कर रही है. आज कितने दिनों बाद उसने डायरी खोली है. पिछले माह वे बनारस पहुँचे थे वहाँ भी दिन बहुत अच्छे बीते पर बाद में वह अस्वस्थ हो गयी और पूर्व कार्यक्रम के अनुसार वे यात्रा नहीं कर सके, न विवाह में सम्मिलित हो सके. यहाँ आकर वह घर पर ही है. जबकि जून सहारनपुर गया था भाई का स्कूटर छोड़ने. आज वह दिल्ली गया है कल वहाँ से बनारस जायेगा और वहाँ से असम. वह उसे बारह को खत लिखेगी, खत व जून दोनों साथ साथ असम पहुंचेंगे. सुबह से वह मैक्रामे की डोरी से फूलदान बनाने में व्यस्त थी. कल नाईट सूट सिलेगी.
 



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