Tuesday, May 29, 2012

काली घटाएं ठंडी हवाएं


वर्षा आज भी हो रही थी, सुबह जब वे उठे और इस समय भी शीतल मधुर बयार बह रही है. बादलों की मनोहर घटा छाई है. कल रात उसे फिर से नींद नहीं आ रही थी, किसी करवट चैन नहीं आ रहा था, सीधा भी नहीं लेटा जा रहा था. पता नहीं कितने बजे होंगे, जून भी जग गया था, सुबह एक स्वप्न देख रही थी, उसे ही देखा, सोते-जागते उठते-बैठते एक यही ख्याल तो है जो मन पर छाया रहता है, कि कब आयेगा वह, कौन सा दिन, कौन सा पल होगा कितनी लंबी प्रतीक्षा है यह. आज वह हिंदी लाइब्रेरी की सब किताबें वापस ले गया है, कुछ नई किताबें लाने के लिये. गीता के सभी अध्याय पूरे पढ़ लिये हैं अब कल से दुबारा आरम्भ से पढ़ेगी. छत्तीस दिन में पूरी होगी या चालीस दिन में. सासु माँ कभी-कभी सुनती हैं सामने बैठकर.

कल माँ का पत्र आया, मंझले भाई का और चचेरे भाई का भी. दो-तीन दिन वर्षा अपना रूप दिखा कर विश्रामगृह में चली गयी है. बहुत दिनों बाद आज कुछ अधिक कपड़े धोए, महरी काम पर नहीं आयी, बीमार है या..किन्तु विशेष परेशानी नहीं हुई, यूँ कहें जरा भी परेशानी नहीं हुई, अब वह इस स्थिति में रच-बस गयी है, नौ महीने कोई कम तो नहीं होते, कितनी-कितनी अनुभूतियाँ हुई हैं इन महीनों में, अब तो एक माह से भी कम समय रह गया है. कल शाम से जून कुछ परेशान सा था, आमतौर पर वह हमेशा खुश रहता है, खीझता नहीं किसी बात पर, कभी-कभी ऐसा होने पर उसे बहुत अजीब लगता है, पर वह जानती है उसका दोष नहीं है, घटना विशेष ने उसके मन को प्रभावित किया होता है, पर आज सुबह वह खुश-खुश विदा हुआ है, शायद जोराजान फील्ड जायेगा.
   

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