Tuesday, August 21, 2012

फिर आया भूमि कंप



आज सोनू जल्दी उठ गया, उसकी नाक जुकाम से लाल हो गयी है. बीच-बीच में उसे सम्भालते व कपड़े धोते आज काफ़ी समय लग गया, सारा काम व्यवस्थित ढंग से नहीं हो पाया जैसे रोज होता है. उसका खुद का गला भी खिचखिच कर रहा है. कल शाम जब जून आया तो वह पिछले दरवाजे से बाहर जाकर खिड़की के पास खड़ी थी, लगातार खांसी हो रही थी और आँखों से पानी आ रहा था. ऐसे में किसी के सामने रहना उसे अच्छा नहीं लगता, जून की बात और है, वह उसे अंदर ले गया, पानी दिया और सहेजा. बाद में उनके एक परिचित दम्पत्ति अपनी सुंदर नन्हीं बिटिया को लेकर आये. जन्मदिन के फोटो बन कर आ गए है, पर वह बात नहीं है जो होनी चाहिए थी.

आज कितनी गर्मी है, पसीना पोंछते-पोंछते तौलिया भीग जाता है, सुबह से इधर-उधर चलते भागते काम करते सवा दस हो गए हैं. सुबह देर से उठो तो सभी कामों में देर होती चली जाती है. अगर घर का काम करते ही रहो तो कभी खत्म होने को ही नहीं आता, सुरसा के मुँह की तरह फैलता ही चला  जाता है. आराम करने के लिये भी वक्त चुराना पड़ता है दस मिनट ही सही, नन्हा आज ठीक लग रहा है, अभी बाहर पड़ोस की दीदी के साथ उसके घर गया है. सभी के पत्रों के जवाब लिखने हैं  उसने सोचा दोपहर में लिखेगी जब नन्हा सो जायेगा.

परसों वह सासूमाँ व ननद को लेकर अपनी एक तेलुगु मित्र के यहाँ गई थी और कल शाम उड़िया दम्पत्ति के यहाँ. नई दुल्हन ने बहुत अच्छा खाना बनाया था, पांच तरह की सब्जियां थीं. जून इस समय नहरकटिया गए हैं. तेरह को यदि बंद हुआ तो माँ की वापसी की टिकट कैंसिल करानी होगी.

कल सुबह वह किचन में दलिया निकाल रही थी कि भूकम्प का झटका लगा. जून ने आवाज दी और उसके बाद एकाध मिनट तक पूरा घर जैसे झूल रहा था. रात को समाचारों में सुना कि पश्चिम बंगाल, बिहार व दिल्ली में भी भूचाल आया था.

पिछ्ले एक घंटे से लगातार तेज वर्षा हो रही है. सब ओर पानी ही पानी झरर झरर झरता हुआ और बादलों की गड़गड़ाहट ! मानों आकाश में हजारों छेद हो गए हैं जिनमें से पानी छन रहा है. कल  दोपहर वे तिनसुकिया गए थे, उसने कितने दिनों से सोचा था कि वाल्मीकि रामायण लायेंगे पर वहाँ जाकर पता करना याद ही नहीं रहा. भोजन में आज वह उत्तपम बना रही है, सो केवल नन्हें के लिये खिचड़ी बनानी है जिसमें वह सभी सब्जियां डाल देगी. वह बाहर खेलने गया है, दादी व बुआ कार्ड्स खेलने के लिये बुला रही हैं.

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