Wednesday, August 29, 2012

स्वप्नों सा संसार



दो सप्ताह बाद उसे कुछ लिखने का समय और सुविधा मिली है. यहाँ आये इतने दिन बीत गए, जून वापस असम चले गए. सभी रिश्तेदार भी एक-एक करके चले गए. अब घर खाली हो गया है. आज छोटी ननद भी कॉलेज गयी है. नन्हा ऊपर खेल रहा है अपने दादाजी के साथ. दादी-दादा दोनों का मन स्नेह का असीम सागर है, कितना गहरा दुःख मन में छिपाए ऊपर से खुश रहने का प्रयत्न करते हैं. सासूजी तो दिन में रोने के कई बहाने निकाल लेती हैं पर पिता शांत ही रहते हैं. एक दिन उसने देवर के खत पढ़े न जाने कितने मित्रों के खत आते थे उसके नाम. उसकी एक दीदी नीला को उसने पत्र लिखा था, मिल गया होगा. मन होता है उसकी उस मौसेरी बहन को पत्र लिखे जो अंतिम घड़ी में उसके साथ थी, पर माँ को पसंद नहीं है. आज जून का पत्र भी आना चाहिए, कल उसका फोन आया था पर उनके पहुंचने के पूर्व ही कट गया, कल शाम वे उसके एक मित्र के घर गए कि वहाँ उसका फोन आयेगा पर उनका फोन ही खराब था. उसका ध्यान अपने लम्बे नाखूनों पर गया, इतने दिन काटने का समय ही नहीं निकाल पायी.

कल रात वे सभी भोजन कर रहे थे कि जून का टेलीग्राम मिला. पहले तो टेलीग्राम का नाम सुनकर ही सब चौंक गए, फिर वह यह सुनते ही कि उसके नाम है, वह घबरा गयी, पर जून की कुशलता का तार था और उसने जानना चाहा था कि वे कैसे हैं, लगता है उसे उसका पत्र नहीं मिला है. परसों तक नहीं मिला होगा, उन्हें भी कल मिले उसके तीन पत्र एक साथ, अब तो जरूर मिल गए होंगे चार-पांच खत जो उसने इतने दिनों में पोस्ट किये. आज उसने कहा, वह छोटे भाई की शादी में जाना नहीं चाहती पर वे लोग जाने के लए बहुत जोर दे रहे हैं. सोनू के लिये एक जूता खरीदना है, कल अपनी  पैंट सिलवाने दादाजी के साथ गया, पहली बार उसकी नाप दिलवाई गयी. देवर के एक मित्र ने लद्दाख के तीन फोटो भेजे हैं. उसके अन्य मित्रों के भी चार-पांच पत्र आ चुके हैं, वह सोचने लगी कि सभी को जवाब दे या एक को लिख दे, वह अन्य सबको सूचित कर दे.

पिता का दुःख माँ के दुःख से बड़ा लगता है. दोनों दुखी हैं. दोनों को दुखी होने का अधिकार है. दोनों का युवा पुत्र दुनिया छोड़कर चला गया है. कहाँ गया है क्यों गया है यह भी कोई नहीं जानता. दुर्घटना तो दुर्घटना होती है इसमें कौन, कब, क्यों, कहाँ जा रहा है इसका हिसाब नहीं रखती. पर उनका दुःख कौन बांटेगा, कौन समझायेगा उन्हें और समझाने से क्या वह समझ जायेंगे. जगे हुए को जगाना कितना मुश्किल होता है वैसे ही दुखी व्यक्ति को समझाना भी. पता नहीं क्यों, पर उसे ऐसा लगता है.
कल रात दो स्वप्न देखे एक शुभ और एक अशुभ. वह और जून किसी पर्वतीय स्थल पर शायद गोवा असम, दार्जलिंग तीनों में से किसी एक जगह पर घूम रहे हैं, सीधी सड़क है, दोनों ओर ऊँचे-ऊँचे घने वृक्ष हैं, वे चलते ही जा रहे है, सड़क खत्म होती है, दायीं तरफ नीचे घाटी है और बाएं किनारे ऊँचा टीला, जिस पर बहुत सारे हाथी हैं. पहले तो वे प्रकृति की सुंदरता निहारते रहते हैं, फिर जैसे ही उसकी नजर जाती है, वह कहती है हाथी, और एक हाथी जून के पीछे लग जाता है. वह आगे दौड़ता है वह पीछे है. तभी हाथियों के बच्चे भी नीचे उतर आते हैं एक बच्चा उसके पीछे पड़ता है पर उसे चोट नहीं आती. तभी एक जीप आती है, दरवाजा खुलते ही वह बैठ जाती है. ड्राइवर कहता है, your husband is in hospital . उसके बाद जून की मेडिकल रिपोर्ट देखती है औए सपना टूट जाता है.
दूसरे स्वप्न में देखा कि ननद माँ से कह रही है, भाभी का स्वप्न पूरा हुआ, यानि वह माँ बनने वाली है. पता नहीं क्यों आजकल उसे भी ऐसा लगता है. मगर ऐसा होने का कोई कारण नहीं. कितु कभी-कभी चमत्कार भी तो होता है.  

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