Monday, September 3, 2012

मफलर वाली सर्दी



नया वर्ष शुरू हो गया है. इस वर्ष में पहली बार लिखते समय उसके अंदर मिश्रित भावनाएँ हैं. जून से बार-बार कहकर उसने यह डायरी मंगवाई है, जब नहीं मिली थी तो उसे दुःख भी हुआ था और सोचा कि अब यदि मिली भी, तो भी नहीं लिखेगी, पर उसने इस पर दो बोल (वह भी लिखवाये) लिख दिए हैं तो लगता है कि अब वह लिख सकती है. रही वर्ष के आरम्भ की बात तो वे उसी दिन यानि पहली तारीख को असम पहुँचे थे. वह लगभग दो महीने बाद घर वापस आयी थी. अभी कुछ देर पूर्व दोपहर के भोजन के बाद कुछ देर के लिये सोते समय देखे स्वप्न में वहीं की बातें माँ-पिता, भाई-भाभी से बता रही थी.  दो-एक दिन पूर्व फिर ‘उसे’ स्वप्न में देखा था, अब सत्य कहाँ रह गया है वह, तन त्याग कर स्वप्न ही तो बन गया है. जून ने उसके लिये सेंट्रल स्कूल की सर्विस का फार्म ला दिया है. बनारस से वे लोग रोजगार दफ्तर से रजिस्ट्रेशन नम्बर स्थानांतरित करा के लाए थे, यहाँ के ब्यूरो ने स्वीकार नहीं किया. पीआरसी की बाधा खड़ी कर दी है. उनके पारिवारिक मित्र का नौ-दस साल का पुत्र दस दिनों के लिये उनके घर पर रह रहा है, उसकी माँ को किसी काम से शहर से बाहर जाना पड़ा है. नन्हें को एक साथी पाकर बहुत अच्छा लग रहा है.
आज भी कल का समय है, लेकिन वातावरण में सिहरन अभी से आ गयी है, शाम होते-होते ठंड और बढ़ जायेगी. आज उसने अपनी लेन की श्रीमती दासगुप्ता से मफलर की बुनाई सीखी, वह पहले से बना रही थी, अब उसे खोल कर नए सिरे से बनाएगी. जून के दफ्तर में बाहर से किसी व्यक्ति का एक्सीडेंट हो गया है, वह अस्पताल गया था, कह रहा था, शायद उसे छोड़ने उसके घर जाना पड़े. जून में दूसरों का दर्द महसूस करने की अद्भुत क्षमता है. आजकल उसका ऑफिस नई इमारत में शिफ्ट हो रहा है. इन दिनों उसका सुबह का समय किचन में ही बीत जाता है, उस बच्चे के जाने के बाद अपनी पुरानी दिनचर्या पर आ जायेगी. कल अपनी एक बंगाली मित्र के यहाँ गयी थी उसका बगीचा बहुत सुंदर है. उनके घर की छत से पक्षियों के कारण या धूप के कारण कैसी आवाजें होती रहती हैं, अब तो आदत पड़ गयी है फिर भी इस वक्त बहुत खल रही हैं. उसने सोचा वहाँ बनारस में सभी कुछ ठीक होगा...यहाँ इतनी दूर बैठकर तो ऐसा ही लगता है पर कितने उदास होते होंगे कभी कभी वे लोग. लेकिन ये उदासी उन्हें कहाँ ले जायेगी, कहीं भी तो नहीं. जून आजकल स्थिर हैं. उसके ही कारण एक दिन वह भटक गया था पर उन दोनों को तो हर हाल में अब साथ-साथ जीना है, वे दो कहाँ हैं. वह एक दिन भी उससे नाराज नहीं रह सका और वह तो नाराज थी ही नहीं. जीवन के इस मोड़ पर आकर लगता है अभी तो सही मायनों में उसका जीवन शुरू ही नहीं हुआ...अभी तक आराम ही कर रही थी और जाने कब तक करती रहेगी. मन के सब दरवाजे जैसे भड़भड़ा कर बंद हुए तो खुले ही नहीं, सड़ी हुई बासी हवा के बाद ताजी हवा का झोंका आये तो कितना भला लगता है !


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