Tuesday, January 1, 2013

पोलियो ड्राप्स - एक बूंद जिंदगी की



Demletza खत्म कर ली है अभी कुछ देर पहले, Ross Poldark  की यह किताब उसे अच्छी लगी. आज दोपहर को सोयी नहीं, किताब का नशा था, किताब के चक्कर में नन्हे को दो कहानियाँ भी नहीं सुनायीं. वह इतना छोटा है और इतना मासूम...कैसे डांट दिया उसने, पर जब वह सोकर उठेगा सब भूल चुका होगा, उसकी सर्दी ठीक हो गयी सी लगती है पर जून अभी ठीक नहीं हुए हैं, साइनस की समस्या है उनको, आज डॉ के पास गए होंगे. परसों दो पत्र मिले उन्हें, एक घर से ननद का, एक सुरभि का, वाराणसी में उनकी गली में गोली चली, कितने तनाव में होंगे वहाँ सभी लोग. सुरभि रक्षाबन्धन तक वहाँ रहेगी, उसने सोचा अगले हफ्ते उसे भी जवाब देगी. इस घर में जब से वे आए हैं वह ज्यादा आराम पसंद हो गयी है, कोई अनुशासन नहीं मानती, जब जैसे मूड हुआ कर लिया. उसे याद आया कल छोटी बहन का जन्मदिन है, उसे कार्ड व पत्र मिल गया होगा, बड़ी बहन का पत्र भी बहुत दिनों से नहीं आया है, वे लोग भारत आए हुए हैं, जरूर माँ-पिता से मिलने गए होंगे. चचेरे भाई, बहन का भी स्मरण हो आया, जिनकी माँ नहीं रही और पिता भी उनका विशेष ख्याल नहीं रखते. उसने सोचा काश ! वह उस बहन के लिए कुछ कर सकती..

आओ कहीं हम चलें
फूल हँसी के खिलें..
रेडियो पर यह गाना आ रहा है
भूल के हर मुश्किलें
आज सजा लो महफिलें..
मौसम आज अच्छा है, बादल और फुहार..अन्यथा इस समय कड़ी धूप निकली होती है. आज बहुत दिनों बाद उसने समुचित व्यायाम किया, पाठ किया, अच्छा लग रहा है, सोचा है अब कुछ पढ़ेगी या लिखेगी. लिखना क्या है यह तो मालूम नहीं, मन एक जगह स्थिर हो तब न कुछ सोचे, मन तो तेज चल रही रेलगाड़ी की तरह दौड़ता चला जाता है...एक पल को भी विश्राम नहीं..फिर विचार रुके कैसें, और उन्हें मथे कैसे. मथे बिना तो सार नहीं निकलेगा. न ही कुछ पायेगी ऐसा, जो सार्थक हो...चलो निरर्थक ही सही...वह भी तभी न जब..पिछले वर्ष की डायरी खोली जब जून से दूर थी, कितना याद करती थी, लम्बे लम्बे खत लिखती थी..और वह भी...अब जब वे पास हैं तो..उनके पास इतने दूसरे काम हैं कि...पर उनके पीछे भी प्यार है न..
कल “असम बंद” था, सो जून और नन्हा घर पर ही थे, दिन भर तीनों ने मस्ती की, खूब कैरम खेला, टीवी देखा, और शाम को एक घंटे के लिए टहलने गए. आकाश पर बदली थी, उनका एसी (एयर कंडीशनर) आज लग जायेगा, जब से उन्होंने खरीदा है, धूप नहीं निकली है.
नन्हा पड़ोस में खेलने गया है, यहाँ उसकी उम्र का एक बच्चा साथ वाले घर में रहता है, दोनों की खूब पटती है. उसकी नैनी अभी तक अस्वस्थ है, जो उनके यहाँ सर्वेंट क्वाटर में रहती है, परसों दोपहर को बताने आई थी कि बुखार हो गया है. उसने पड़ोसिन से कहा है, यदि सम्भव हो तो वह अपनी कामवाली को भेज दे. कल दूधवाला भी नहीं आया, अभी आया तो कहने लगा भूल गया, इतने वर्षों से दे रहा है कल भूल  गया, अजीब लगता है न, लेकिन होता है ऐसा कभी-कभी. नन्हे ने कल पहली बार तिनसुकिया में खिलौने के लिए जिद नहीं की. वे दालें लाए और राखियाँ भी, अगले हफ्ते भेजेगी.

आज सात तारीख है, सुबह-सुबह जून ने उसे शुभकामना दी, लगभग हर सात को वह ऐसा ही करते हैं बशर्ते तिथि याद रहे. उसने घर के बाहर गेट तक के पक्के रास्ते पर ब्लीचिंग पाउडर डलवाया है. नैनी कल से काम पर आ गयी है, जो अव्यवस्था हुई थी सब ठीक हो गयी है, आजकल वे क्लब में टेबल-टेनिस खेलने जाते हैं, बहुत अच्छा लगता है. मौसम फिर बदली भरा है, कल शाम गर्मी कुछ बढ़ गयी थी. रात खूब वर्षा हुई. छोटे भाई का पत्र बहुत दिनों बाद आया है उसके सास-ससुर का एक्सीडेंट हो गया था, लिखा है, अब वे ठीक हैं. नन्हे को पोलियो ड्राप्स देने व डीपीटी का टीका लगवाने अस्पताल ले जाना है, उसे पहले कभी टीके से बुखार हुआ हो याद नहीं, उसने दुआ की इस बार भी नहीं होगा. पर उसके माथे पर गर्मी से तीन दाने निकल आये हैं, उसे दर्द भी होता होगा, पर कुछ कहता नहीं. कल जून ने कम्पनी के हिंदी अनुभाग के पुस्तकालय से हिंदी की पांच-छ पुस्तकें लाकर दीं, लेकिन उसके दफ्तर से आने के बाद वह उन्हें नहीं पढ़ती, वह अगर नन्हे को पढ़ाने में भी व्यस्त रहे तो जून को अच्छा नहीं लगता, सो दोपहर को ही उसका गृहकार्य करा देना चाहती है. “तट की तलाश” उसने कल पढ़ी, एक लड़की की दुःख भरी कहानी. Doctor Sahib  भी लगभग पढ़ चुकी है, Stephen Kerry का अन्तिम तबादला बिहार में हुआ था, उसके बाद तो देश आजाद हो गया था और वह अपने देश चले गए थे. कल दोपहर उसने रवीन्द्रनाथ टैगोर की किताब तीन साथी पढ़ी. शाम को क्लब में एक घंटा खेल कर पसीना बहाया. रात को आतंकवादियों के स्वप्न देखे.


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