Thursday, January 10, 2013

बॉम्बे टू गोवा



सतावन महीनों के राष्ट्रपति शासन के बाद पंजाब में आज चुनाव हो रहे हैं. कल से रसोईघर के बाहर गैस लीक हो रही थी अभी कुछ देर पूर्व ठीक करके गए हैं कम्पनी के कर्मचारी. आज मौसम निखा पर है, धूप खिली है और सारे पेड़-पौधों ने, लॉन की घास ने जैसे राहत की साँस ली है. बाहर से पंछियों की मधुर आवाजें आ रही हैं, हौलिऔक के फूलों में एक लाली पक्षी तरह-तरह की आवाजें निकाल रहा है. कैलेंडुला के फूल अब सारे खिल गए हैं, उसने सोचा अगले साल उन्हें और घना लगायेगी. नन्हा आज सुबह पूछ रहा था, आप डायरी क्यों लिखती हैं, क्या फायदा है इससे ? आज सुबह वह इस सर्दी में पहली बार प्रातः स्नान करके गया है, वरना ग्यारह बजे वापस आकर ही करता है. कद के हिसाब से वह छोटा लगता है पर समझ के हिसाब से बड़ा. कल वे क्लब गए पर बच्चों की भीड़ थी, वे पुस्तकालय में चले गए, ‘लाइफ’ पत्रिका पहली बार देखी, अच्छी है, ‘परेड’ अब शायद नहीं आती, अगली बार तिनसुकिया जाने पर खरीदेगी उसने मन ही मन सोचा. कल उन दीदी से बात हो गयी, वे लोग अगले महीने चले जायेंगे, इतवार को उसने उन्हें लंच पर बुलाया है. कल दोपहर उसकी आँख लग गयी और जब जगी तो जून के आने का समय होने ही वाला था, आज उसने न सोने का तय किया है फूल बनाएगी, ढेर सारे फूल, बेंत की वह सुंदर टोकरी जो वे गोहाटी से लाए थे, खाली पड़ी है, कल ‘तलाश’ की थी और आज ‘सवाल’ क्योंकि हर ‘सवाल’ के ‘जवाब’ की तलाश ही तो जिंदगी का सफर है-

यह जिंदगी एक सवाल है?
हम क्यों हैं? कब से हैं?
जैसे बड़े सवाल
और छोटे-छोटे सवाल भी
पिताजी गुस्सा क्यों करते हैं ?
भैया गुमसुम क्यों है ?
गुडिया हँसती क्यों नहीं ?
या माँ की ऑंखें नम क्यों हैं?

कल शाम वह अपनी बंगाली सखी से मिली, बातें हुईं बहुत देर तक. अच्छा लगा, कभी उलझन भी, वह बहुत सारे पूर्वाग्रहों से ग्रसित लगती है, खैर..किसी और की जिंदगी का विश्लेषण करने का उसे क्या अधिकार है? फिर भी वह बहुत धीरे-धीरे काम करती है, इतनी धीरे चलकर वह जिंदगी के साथ चल पायेगी. आज छोटी ननद का पत्र आया है, अपने विवाह को लेकर वह बहुत उत्सुक है जैसा कि स्वाभाविक है. उसे शनिवार को ही जवाब देगी. कल छोटी बहन का भी पत्र आया वे लोग गोवा से वापस आ गए हैं, विवाह के बाद घूमने गए थे, उसने सोचा कभी वे भी गोवा जायेंगे. कल क्लब न जाकर उन्होंने घर पर ही बैडमिंटन खेला.  ‘कशिश’ देखा टीवी पर नायिका को गुस्सा कुछ ज्यादा ही आता है.कल मार्केट में उनके एक पुरने परिचित दम्पत्ति मिले, उनसे मिलना उसे हमेशा ही अच्छा लगता है, दोनों ऊर्जा से भरे होते हैं, चहकते हुए से. कल शाम जून ने उसे पिघला कर रख दिया, कल जब उसने कहा कि एक-दूसरे की निकटता में ही सब कुछ मिल गया, बाकी तो सब फार्मेलिटी है, तो उसे बहुत अच्छा लगा. कई बातों में वे दोनों एक सा सोचते हैं पर बहुत सी बातों में नहीं और शायद यही वजह है जो उनके सम्बन्धों को जीवन प्रदान करती है.

जब तुम मेरी आँखों में अपना चेहरा तलाशते हो
मेरी ऑंखें समुन्दर बन जाती हैं
फिर डूबते-उतराते हो लहरों में तुम
और मैं ऑंखें बंद कर लेती हूँ अब तुम कैद हो मेरे अंतर्मन में
गहरे और गहरे उतरते जाते हो
फिर सीप में मोती की तरह
आँखों से एक बूंद बन बरस जाते हो..!













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