Saturday, April 13, 2013

तरबूज की मिठास



आज सुबह दस बजे ही वे घर से चल पड़े थे, यहाँ आकर टीवी धारावाहिकों के प्रति मोह जरा घट गया है. कल शाम ‘देख भाई देख’ देखना भूल गयी और आज सुबह ‘जमीन-आसमान’ भी नहीं देख पायी. पर आज एक अच्छी बात हुई कि बिजली की तार घर के आगे खम्भे तक पहुंच गयी है. पर घर में मीटर लगना अभी बाकी है. अगले हफ्ते घिसाई का काम शुरू हो ही जायेगा ऐसी उम्मीद है. मासी का घर अच्छा लगा पर उनका घर इतना छोटा है और रिश्तेदार इतने ज्यादा कि घिचपिच मच गयी. चाचीजी आज खुश दिखीं, चचेरे भाई बहन से भी मिली. शाम को घर आये तो भाई तरबूज लाया था, इस मौसम का पहला तरबूज ! अच्छा लगा.

  यहाँ आने के बाद उनका पहला इतवार रोज की तरह ही बीता क्योंकि साढ़े नौ बजे से ही बिजली चली गयी थी. शाम को भी नहीं थी की फिल्म देख पाते. दोपहर को माँ-पिता एक परिचित के यहाँ मुहूर्त पर गए थे, उनकी कोठी बहुत सुंदर है, मिठाई भी अच्छी थी, शुद्ध घी के बूंदी के लड्डू व समोसा आदि, नन्हे को उसने खिला तो दिया है पर उसे हमेशा नुकसान  करता है. दोपहर को ही भाई नन्हे को शादी में ले जाने के लिए आया, पर वह राजी नहीं हुआ. उसे भी नूना की तरह भीड़भाड़ से दूर रहना ही पसंद है. फिर वे सोये ही थे कि घंटी बजी, फुफेरा भाई और उसकी पत्नी आये थे, भाई की तुलना में भाभी बेहद सुंदर व शालीन लगी, सुंदर सी साड़ी पहनी हुई थी. उन्होंने बताया, कल ही उनकी बुआ का परिवार पंजाब जा रहा है, उनकी बेटी, उसकी सखी भी आई हुई है. उसके मन में आया है कि एक बार उनसे मिलकर आए.

  नन्हे को घर पर ही छोड़कर वे स्टेशन गए, उसकी सखी की शक्ल की एक लड़की बाहर ही दिखी जहां उनका घर है. माँ ने बताया, यह उसकी छोटी बहन है. आड़ू खरीद कर अंदर गए तो तो सखी व उसकी माँ से भी मुलाकात हुई. वह जरा भी नहीं बदली है, उसका छह वर्ष का बेटा भी बहुत स्मार्ट था. उसका पता लिया है, कभी उसे खत लिखेगी. शाम को नन्हा थोड़ा डल था, उसने खाना भी नहीं खाया, सुबह जब वे घर से जा ही रहे थे कि जून का फोन आया था, नन्हे के चार सौ में से तीन सौ पचानबे अंक हैं, कक्षा में द्वितीय स्थान, वह बेहद खुश था सुबह से पर शाम से ही थोड़ा उदास, शायद उसकी तबियत ठीक नहीं. उसे लेकर वह  भाई के साथ राजा गिफ्ट शॉप गयी, ‘बेटल फील्ड’ एक बोर्ड गेम खरीदा उसके लिए. घर के काम में कोई प्रोग्रेस नहीं है.





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