Wednesday, June 5, 2013

टेनिस की कोचिंग


कल शाम वे घर पर ही रहे, जून एक साथ पांच धर्मयुग ले आये हैं, जिनमें से एक से वह प्रश्न पूछ रही थी, नन्हे को इस तरह के ‘प्रश्नोत्तरी’ कार्यक्रम में बड़ा मजा आता है. कल ‘बकरीद’ का अवकाश है, वह बंगाली परिवार को विदाई भोज पर बुला रही है.

आज धूप बेहद तेज है, नन्हा साढ़े सात बजे आया तो चेहरा धूप से तमतमा रहा था, पर दोपहर को ढाई बजे पुन टेनिस कोचिंग में जाने को तैयार था. इस समय नाश्ता कर रहा है और अपने दोस्तों की बातें बता रहा है, वह अपने जन्मदिन का इंतजार अभी से करने लगा है. आज खाना बनाने का अवकाश है, कल रात को हुए भोज से काफी सारा खाना बच गया है. कल का दिन उन्हें सदा याद रहेगा. सुबह अच्छी थी, दोपहर भी, पर शाम होते ही जब गर्मी में किचन में खड़े होकर पसीना टपका तो थोड़ी उलझन हुई, जून को भी दो-तीन बार बाहर जाना पड़ा, सामान लाने फिर एक मित्र के यहाँ पौधों को पानी देने, जो बाहर गये हुए हैं. इसी सब में एक मित्र परिवार मिलने आ गया, खैर, यह सब हुआ सो हुआ, उनकी दो सॉस की बोतलें टूट गयीं, जो उसने घर पर बनाया था. जून को भी और उसे भी देर रात तक अफ़सोस रहा, पर बीच में रात पड़ गयी और ‘रात गयी बात गयी’ यह कहावत शत-प्रतिशत सही है, अब उन्हें थोड़ा सा भी दुःख नहीं है. यूँ भी उम्र ने इतना तो सिखा दिया है कि दुखी होकर किसी का भला नहीं होता.

आज सुबह मुसलाधार वर्षा हुई, मौसम सुहावना हो गया है, नन्हे के क्लब जाने के बाद वह हल्की फुहार में बाहर टहलती रही कुछ देर, बहुत भली लग रही थीं बूंदें चेहरे पर, हवा भी ठंडी थी. इतनी गर्मी के बाद वर्षा कितनी राहत दे रही है. कल उसकी पुरानी पड़ोसिन वापस आ रही है, वे उन्हें लेने जायेंगे और खाने पर भी बुलाएँगे. आज नन्हे की नई कक्षा की सारी किताबों व कापियों पर कवर चढ़ाने का काम जून पूरा कर देंगे. आज जून के दफ्तर में एक विदाई पार्टी है, वह पूछ कर गये हैं, क्या उनके लिए मिठाई ले आयें, लेकिन उसे मिठाई जरा भी पसंद नहीं है आजकल. सोचकर भी अच्छा नहीं लगता. वैसे भी यहाँ की दुकानों पर क्या शानदार मिठाइयाँ बनती हैं ! नन्हे के आने की आवाज आई, सो उसने लिखना बंद किया.

आज फिर वर्षा की झड़ी लगी हुई है, आज सुबह उठने में थोड़ी देर हुई, यूँ भी घर कुछ बिखरा-बिखरा सा था, ठीक-ठाक करते, खाने की तैयारी करते काफी समय हो गया. कल शाम वह बंगाली सखी से मिलने गयी जो अपनी चचेरी बहन के यहाँ रह रही है, कल वे लोग चले जायेंगे. अब जैसे-जैसे उनके जाने का वक्त आ रहा है, उसे उदासी का अनुभव हो रहा है.

आज मौसम खुशनुमा है और नन्हा ठीक है, उसकी आँखें भी जो कल शाम को लाल हो गयी थीं, अब ठीक हैं, सो उसका मन भी खुश है. कल दोपहर चार पत्र लिखे, जून ने पार्सल भी बना दिया. सुबह एक सखी का फोन आया उसे कुछ दिनों के लिए उनका धोबी चाहिए.  





2 comments:

  1. जाने कब से तब तक, तब से अब तक और अब से न जाने कब तक, समय तो सबसे शांत शिक्षक है, कुछ न कुछ सिखाता ही रहता है। पीछे छूटे जीवन के सिंहावलोकन का अलग ही ठाठ है।

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  2. अनुराग जी, आपने ठीक कहा है...सचमुच पीछे छूटे जीवन को देखने से वर्तमान भी उसकी हल्की सी महक से भर उठता है..

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