Tuesday, June 11, 2013

बगीचे के आम



‘आषाढ़ का प्रथम दिवस’ अर्थात जुलाई माह का शुभारम्भ, शुभ इसलिए की सुबह से ही वर्षा हो रही है, नन्हा सुबह साइकिल लेकर निकला ही था कि बूंदाबांदी शुरू हो गयी. सुबह-सुबह  टेनिस खेलने जाने से उसका मूड कितना ताजा रहता था, लेकिन एक तो अब स्कूल खुल जाने से दूसरे क्लब में बच्चों को अकेले जाने से मना कर दिया गया है. आज उसकी पहली बस छूट गयी, वह थोड़ा नाराज हो गया, ‘बाय’ कहे बिना ही चला गया, आज से तीन बजे आयेगा. ट्रांजिस्टर पर ‘फूलों की छाँव में’.. ‘प्यार के गाँव में’.. एक घर बनाने की कल्पना करने वाला एक गीत आ रहा है, ऐसा घर सिर्फ सपनों में मिल सकता है, यूँ अगर कोई चाहे तो उस सुख को जो ऐसा घर मिलने पर मिलेगा अपने  घर में महसूस कर सकता है. तलाश तो कर सकता है. कल सर्वोत्तम के दो-तीन पुराने अंक निकाले, अच्छा लगा कि पढ़ने के लिए इतना कुछ है घर में. कल रात को यश चोपड़ा की ‘इत्तफाक’ फिल्म देखनी शुरू की, पर कुछ देर ही देख पाए, ज्यादा अच्छी नहीं लगी. कास्टिंग में चित्रकला दिखाई जा रही थी उसमें.

कुछ मिनट पहले उसने पुरानी पड़ोसिन से बात की, वह अच्छी वक्ता है, उसे वकील होना चाहिए, बोलती कुछ ज्यादा है पर शब्दों का खजाना है उसके पास. मित्रता निभाना दुनिया में सबसे कठिन काम है शायद, हमें सामने तो उनकी तारीफ करनी होती है और बाद में आलोचना भी स्वतः ही होती है. नन्हा स्कूल गया है, शनिवार को उसने उसे स्कूल न जाने के लिए कहा था, पर आज सुबह जब तैयार होने के लिए कहा तो वह कन्फ्यूज्ड हो गया, उसे नन्हे को दुविधा में नहीं डालना चाहिए, सीधे-सादे शब्दों में सारी बात कहनी चाहिए. बड़े लोगों को तो मसलों को उलझाने में मजा आता है मगर बच्चों को इन दांवपेंच से दूर ही रखना चाहिए.

इस क्षण मन की शांत सरिता में जैसे किसी ने कंकर मार दिया है. लहरों का शोर विचारों का बिखराव दर्शाता है. मन पर कब किस बात का क्या असर होगा कहना कठिन है, जो मन पर नियन्त्रण रखने में समर्थ है वह  स्थित प्रज्ञ है. आज हल्की-हल्की सी धूप निकली है. कल शाम माली ने गुलदाउदी के लिए गमलों को तैयार कर दिया. कल शाम उसकी असमिया सखी ने पूछा, क्या बंगाली सखी का पत्र आया है, कल शाम उसके यहाँ आम खाने और ढेर सारी इधर-उधर की बातें करके बेहद अच्छा लगा उसे आभार जताने के लिए फोन करना चाहती थी पर शायद उनका फोन खराब है. इतना लिखने के बाद कलम रुक गयी, विचारों की गाड़ी को ब्रेक लग गया है, सच तो यह है कि मन शांत है पहले की तरह. यह डायरी भी एक मित्र की तरह होती है, एक ऐसे मित्र की तरह जिससे सब कुछ कहा जा सके पर वह कोई शिकायत नहीं करता. जो मन को शांत कर देता है, अपने कोमल हाथों के स्पर्श से. जिसके साथ जीना आसान हो जाता है और  कड़वाहटें मीठे बोलों में घुल जाती हैं.




   


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