Friday, July 19, 2013

पर्ल एस बक - एक महान लेखिका


आजकल हर पल एक ख्याल साये की तरह उसके वजूद के आस-पास टहला करता है कि कहीं कुछ है, अधूरा सा.. जो पूरा होना चाहिए. हर काम करते वक्त यह अहसास तारी रहता है कि इस वक्त उसे कुछ और बेहतर काम करते हुए होना चाहिए था. और बस इसी कशमकश में वह किसी भी काम को पूरे मन से नहीं कर पाती, यह नामालूम सी बेचैनी उसकी फितरत में यूँ तो हमेशा से है पर आजकल यह ज्यादा ही असरदार हो गयी है. शायद इसकी वजह यह है कि हफ्तों से उसका पढ़ना-लिखना छूटता जा रहा है. इसका सबसे बड़ा फायदा है कि  जिन्दगी बेकायदा नहीं रहती, कोई रहता है जो अनुशासित रहना सिखाता है, टोकता है, और यह वही आत्मा ही तो नहीं जिसके बारे में कई जगह पढ़ती रहती है, सुबह जागरण में जिसे सुनती है और एक योगी की आत्मकथा पढ़कर महसूस करने का प्रयत्न करती है. जाने क्यों उसकी दायीं आँख में हल्का दर्द है, यूँ दर्द का किस्सा सुनाने बैठे तो अफसाना लम्बा होता चला जायेगा, अभी तो वह पड़ोस के बच्चे के जन्मदिन की पार्टी से आ रही है, जून भी आते होंगे, नन्हा अभी वही है. बच्चे बहुत खुश हैं, बच्चों को हंसते-खिलखिलाते देखकर रश्क होता है, एक वे हैं की बेबात ही खुश हुए जाते हैं और एक उसके जैसे बड़े हैं कि  उदास होने का बहाना हर पल ढूँढा करते हैं.

आज कई दिनों बाद सुबह के साढ़े दस बजे उसके सुबह के सारे काम हो चुके हैं. मौसम में जादू है, गुनगुनी सी धूप बेहद भली लग रही है. नवम्बर का अंतिम सप्ताह आने को है पर ठंड अभी उतनी ज्यादा शुरू नहीं हुई है. कल शाम नन्हे को पढ़ाने से पूर्व वह अकेले टहलने गयी, अच्छा लगता है शामों की ठंडक और अँधेरे को अपने तेज कदमों से चीरते हुए भेदना. और थक जाने के अहसास होने तक चलते ही चले जाना. फिर वापस आकर लेडीज क्लब की पत्रिका ‘जागृति’ में असमिया के लेख व कहानी पढने का प्रयत्न किया. पढ़ सकेगी एकाध बार और इसी तरह मन लगाकर पढ़ने का प्रयत्न किया तो. कल उन्हें पिकनिक पर जाना है, उसकी तैयारी आज से ही करनी है,.. नदी की तेज धारा, बड़े-बड़े पत्थरों का किनारा, खुला आकाश और उड़ान भरता मन, सचमुच अच्छा लगेगा, ऐसे पलों को शिद्दत से महसूस करना चाहिए, सारी उलझनों को पीछे छोडकर, यूं उसकी तो फ़िलहाल कोई उलझन ही नहीं है, ‘ऊर्जा संरक्षण’ की प्रतियोगिता के लिए कविता लिखने को जून ने कहा था, सो कल दोपहर को लिख दी है, उसे लगता है इस बार कोई पुरस्कार मिलना चाहिए. यूँ न भी मिले, स्वान्तः सुखाय से प्रेरित होकर लिखी है, मात्र अपने मन की खुशी के लिए. क्लब की फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता में नन्हे को द्वितीय पुरस्कार मिला है, वह जेम्स बॉंड बना था.

फिर दो दिन का अन्तराल, रविवार को वे पिकनिक पर गये, और उसी दिन सुबह-सुबह उसकी पड़ोसिन को छाती में दर्द के कारण अस्पताल में दाखिल होना पड़ा, अब वह ठीक है लेकिन दिल की बीमारी क्यों और कितनी है, किसी बड़े अस्पताल में जाकर विस्तृत जांच से ही पता चलेगा. उसके बेटे को भी मम्प्स हो गये हैं. परेशानी आती है तो सब ओर से एक साथ. सोमवार को जून ने प्रथम अर्धांश में अवकाश लिया, पिकनिक की थकान थी, और कल मंगल को वह सुबह  धर्मयुग की एक कहानी पढ़ने बैठ गयी सो सारे काम देर से हुए, काम खत्म करके पड़ोसिन का हाल-चाल पता करने चली गयी. दोपहर को अरुण शौरी की किताब ‘द वर्ल्डस ऑफ़ फ़तवा’ के अंश पढ़े ‘संडे’ में, वह मुस्लिम विरोधी लगते हैं लेकिन वास्तव में ऐसे हैं नहीं, उनकी विचारधारा से किसी हद तक वह सहमत है, लेकिन एक किताब को इतना महत्व देने की आवश्यकता ही क्या है.परसों लाइब्रेरी से वह कुछ किताबें लायी है, एक Pearl. S. Buck की China as I see it,  इस किताब के बारे में कई जगह उसने पढ़ा है. एक सामान्य ज्ञान की किताब जून की आने वाली क्विज प्रतियोगिता के लिए और अंतिम योग की किताब जो दुबारा ली है. पर सबसे पहले वह असमिया ही पढ़ेगी यानि उनके क्लब की पत्रिका ‘जागृति’ !


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