Tuesday, September 24, 2013

इक़बाल की शायरी


आज मदहोश हुआ जाये रे...मेरा मन..मेरा मन...शरारत करने को ललचाये रे..मेरा मन ..और सचमुच मन बेकाबू हो गया है. इस उम्र में यूँ बहकना कोई शराफत तो नहीं, पर आँखें हैं कि उम्र का लिहाज नहीं करतीं, फिर दिल तो है दिल लेकिन वह सरसराहट जो बरसों पहले महसूस की थी, सोचती थी वह सब पीछे छूट गया पर दुनिया में इतने अफसाने यूँ ही तो नहीं लिखे गये, हर उम्र में एक बचपन छुपा होता है और उसी तरह एक यौवन भी. उसका सुबह का काम हो चुका है, आज बहुत दिनों बाद धनिये की चटनी बनाई है, यहाँ के बड़े-बड़े नीबुओं में रस बहुत होता है, उसी को डाला है खटाई के लिए, उसका अचार भी बन सकता है पर मुश्किल यह है कि खायेगा कौन ? कल दोपहर एक सखी के यहाँ गयी, उसकी छत पर पर एक अपने-आप उग आया एक जंगली बगीचा देखा, अच्छा लग रहा था. जून की गाड़ी खिड़की से दिखाई दी सो उसने लिखना बंद किया.

कल जो तामसिकता मन पर छाई थी आज उतर गयी है और एक बार फिर हे ईश्वर ! वह उसकी कृपा के घेरे में आ गयी है. रास्ता भटक गयी भेड़ फिर चरवाहे के पीछे-पीछे चलने लगी है. भटकाव में काँटों ने उसे लहुलुहान कर दिया था और आँखों में जहरीले पत्तों का रस चला गया था, वह जो कुछ देख रही थी वह भ्रामक था पर अब चरवाहे ने उसको पहले सा स्वस्थ कर दिया है. आज भी हल्की-हल्की फुहार के बीच बसंती बयार बह रही है. पीटीवी पर इक़बाल की नज्म सुनी- ‘सूरज’

चाँद तारों के ऊपर जाते-जाते सूरज
श्याम सियाह अमा को उफक से लाली के फूल दे गया...

कुछ ऐसे ही थी पहली लाइन, इक़बाल की शायरी की एक किताब उसके पास भी है, उसने सोचा आज पढ़ेगी. और better sight without glasses पढ़ने का विचार भी कई दिनों से है. स्वामी रामतीर्थ की पुस्तक भी अभी पढ़नी शेष है. पिछले दिनों उसने अख़बार और पत्रिकाओं के अलावा कुछ नहीं पढ़ा, शायद इसी का असर हो कल की अहमकाना हरकतों पर..खैर, अब आज का तस्सवुर करना चाहिए.

किन राहों पर चलना होगा कितनी दूर ठिकाना है
तेरी आवाजों के पीछे और कहाँ तक जाना है

यह शेर किसी हद तक उसके दिल की हालत बयाँ करता है. अक्टूबर का महीना शुरू हो गया है यानि हरसिंगार की भीनी-भीनी खुशबू का महीना, दीवाली की तैयारी और घर की सफाई का महीना. २९ अक्तूबर को माँ-पापा भी आ रहे हैं उनके आने से दीवाली की खुशी दुगनी हो जाएगी. नन्हा आज भी cubs की ड्रेस पहन कर गया है, उसके स्कूल में इंस्पेक्शन है. कल कह रहा था की हिंदी के टीचर कह रहे हैं, दो दिन स्कूल में ड्रामा चलेगा. हर जगह आडम्बर है, ऊपर से कुछ अंदर से कुछ, सच से लोगों को घबराहट होती है, डर भी लगता है.

आज से ठंड का अहसास बढ़ गया है, सुबह स्नान करते समय भी गर्म पानी की आवश्यकता महसूस हुई और इस समय पंखा चलाने पर ठंडक महसूस हुई. गुलाबी ठंड वाली सर्दियां उसे अच्छी लगती हैं आज एक तेलुगु सखी जा रही है, पिछले दस-बारह वर्षों का उनका परिचय था, एक बार मिलकर आने का मन है. जून को एक-दो बार कहना पड़ेगा लेकिन फिर वह मान ही जायेंगे. आज वह नन्हे के खिलौनों का शोकेस भी साफ करेगी. कल उसके हिंदी अध्यापक ने एक लेख लिखने को कहा था, स्कूल जाने तक लिख रहा था.

परसों वे तिनसुकिया गये और डाइनिंग टेबल का ऑर्डर दे ही दिया, कल यानि मंगलवार को यहाँ आ भी जाएगी, थोड़ी मंहगी है पर जून को सस्ती चीजें पसंद भी कहाँ आती हैं. उनके घर के बाहर किचन गार्डन में डालने के लिये जो मिट्टी का ढेर पड़ा है उस पर चढ़कर बच्चे खेल रहे हैं, दिल कहता है खेलने दो पर दिमाग का तकाजा है कि मिटटी बिखर जाएगी और व्यर्थ जाएगी. सो मना करन ही ठीक है. उसकी बांयी आँख से कुछ दिन से पानी आ रहा है, शायद tear duct block हो गयी है. मेडिकल गाइड में पढ़ा अपने आप भी खुल सकती है. कल छोटे भाई और दीदी के पत्र मिले, विस्तृत पत्र.. बड़े मन से लिखे गये हों जैसे. उसका मन कृतज्ञता से भर गया.





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