Wednesday, September 25, 2013

डॉ जगदीश चन्द्र बसु - एक महान वैज्ञानिक


कल फिर नहीं लिख सकी, सुबह घर के कामों में व्यस्त थी, दोपहर को एक सखी के यहाँ गयी. आज भी सुबह के कामों में कपड़े प्रेस करने शेष हैं, यूँही रोजमर्रा के साधारण कार्यों में व्यस्त रहते हुए उसकी साधारण सी जिन्दगी गुजर जाएगी और तब मन से सवाल पूछेगा क उसने जीवन भर क्या किया ? छोटी-छोटी बातों में यूँ अपने को खपाए रहने वाला मन, और उस मन को इतना महत्व देने वाली वह, क्यों नहीं अपने समय व जीवन को सही ढंग से बिताने का प्रयत्न करती. अपना स्वाभाविक कर्म ‘कविता’ भी हफ्तों से नहीं उपजी है, मन उस उच्च भाव को प्राप्त हो ही नहीं सका जिसमें कविता का जन्म होता है. पिछले दिनों उसने अच्छी पुस्तकें भी नहीं पढ़ीं. आज यह सब सोचने की प्रेरणा भी नन्हे द्वारा पढ़े जा रहे ‘डॉ जगदीश चन्द्र बसु’ पाठ को सुनकर हुई है. जीवन में उन्होंने एक लक्ष्य बना लिया था और फिर उस लक्ष्य को पूरा करने की ठान ली. उसके जीवन का लक्ष्य है बहुत सारी कविताएँ लिखना और लिखते ही जाना... पर इसके लिए प्रयास वह बहुत कम करती है. अपने समय के एक-एक मिनट का उपयोग करना चाहिए, यह बात सुनने और पढ़ने में तो अच्छी लगती है, पर व्यवहार में लायी नहीं जाती. फिर भी कोशिश करेगी की व्यर्थ समय न बिताये. फ़िलहाल तो कपड़ों का ढेर निमन्त्रण दे रहा है और उसके बाद जून आ जायेंगे, फोन करके पूछा था आज नाश्ता कर लिया या नहीं. आज से नन्हे की पूजा की छुट्टियाँ भी शुरू हो गयी हैं और अब उसका काफी वक्त तो उसके साथ बीतेगा.

आज सुबह माली ने टमाटर, गोभी, शिमला मिर्च तथा जीनिया के बीज पौध बनाने के लिए लगा दिए. मिटटी डालने के लिए सिविल विभाग से मजदूर भी आ गये हैं. धीरे-धीरे सभी काम हो जाते हैं, व्यर्थ ही जल्दी मचाने व परेशान होने की जरूरत नहीं है. आज सुबह जागरण में मुरारी बापू को सुना, आज वह प्रसन्न मुद्रा में थे, कभी-कभी तो इतने उदास हो जाते हैं कि लोगों की आँखों में आंसू आ जाते थे, जिससे उसे अच्छा नहीं लगता था. कल गाउन की कटिंग भी कर दी, रिसीवर का कवर भी अभी थोड़ा सा बाकी है, क्रोशिये का काम उसे अच्छा लगता है, जून का वह स्वेटर भी बन गया है. लेकिन जो नहीं हो पा रहा है वह है निरंतर मन का संतुलन, थोड़ी सी बात को दिल पर लेना और उस भाव को चेहरे पर भी ले आना, यह तो कमजोर मन की निशानी है. आज सुबह एक दुखद घटना हुई, बिल्ली का वह बच्चा जो कल शाम तक बहुत चिल्ला रहा था, रात में सम्भवतः ठंड से मर गया था, या फिर जिस डब्बे में उसे रखा था, उसमें से न निकल पाने के कारण, उसकी माँ ने उसे बिलकुल ही त्याग दिया था, अनाथ का यही हश्र होना था.

परसों वे खुंसा गये थे, सुबह नौ बजे यहाँ से रवाना हुए, एक परिवार और था, उनकी मारुति वैन में यात्रा अच्छी रही, वहाँ जिस गेस्ट हाउस में ठहरे थे, सफाई नहीं थी, सिर्फ एक रात ही वे रुके. शनिवार को वह अस्पताल गयी थी, आँख में पानी आना बंद नहीं हुआ है, डॉ ने छोटे से आपरेशन के लिए कह दिया है. नैनी को दूध न रहने के कारण सुबह से चाय नहीं मिली शायद इसी कारण उसका मुख उतरा हुआ है.



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