Sunday, December 29, 2013

बच्चों के कमरे के पर्दे


ऐसा क्यों होता है कि कभी-कभी भगवद् गीता के श्लोक और उनका अर्थ उसे पूर्णतया स्पष्ट हो जाता है और कभी-कभी वे बहुत दुरूह लगते हैं. सम्भवतः इसका कारण है उसके मन की ग्राह्य शक्ति, वह एक सी नहीं रहती. कल की मीटिंग अच्छी रही, सुबह उसने इस सिलसिले में कई फोन किये. आज नन्हे का स्कूल जल्दी बंद होगा, माह का अंतिम दिन है. कल एक परिचिता ने बताया, उसे एक जगह काम मिल गया है, ठीक-ठाक पैसे मिलेंगे, लोग हमेशा ही पैसों को महत्व देते हैं. उसने जून को बताया तो वे भी यही बोले, ज्यादा पैसों के कारण थोड़ी तकलीफ सही जा सकती है, उसे आश्चर्य हुआ. उसने पुरानी बात याद दिलाई और बिना बात के ही मन को उदास किया. बाद में सोचा तो लगा, यदि कभी जून ने उसकी स्वतन्त्रता का हनन किया भी तो एक हक के साथ पर उससे उसके अहंकार को चोट पहुँची और ...क्या वाकई इन्सान का अहंकार इतना महत्वपूर्ण होता है कि रिश्तों की भी परवाह नहीं करता, वह उस वक्त भी खुद को समझने की कोशिश कर रही थी. अर्थात उसे भान था कि वह क्या कर रही थी, यह क्रोध में किया हुआ कोई ऐसा काम नहीं था जिसके लिए बाद में पछताना पड़ता है. उसे ठेस पहुँची थी और जून उस बात को समझ नहीं रहे थे. इसी को टेकेन for ग्रांटेड कहते हैं, उसका व्यवहार अनुचित था इसमें दो राय नहीं थी और इसलिय सुबह क्षमा मांगी और अब मन शांत है. आज दोपहर उसे हिंदी की क्लास लेने जाना है सो संगीत का अभ्यास अभी कर लेना होगा.

.... “और बुखार हो गया” कल इतनी धूप में वे तीनों हिम्मत दिखाते हुए तिनसुकिया गये. वापस आकर एक घंटे के अंदर ही उसे तपन सी महसूस हुई, बुखार चढ़ रहा था. पिछले कई हफ्तों से सबके बुखार की बात सुनते-सुनते वह स्वयं पर थोड़ा ज्यादा भरोसा करने लगी थी, स्वयं को ठीक रखने में सक्षम है, कि उसे कुछ नहीं हो सकता. जून कल से उसे कोई काम करने नहीं दे रहे हैं. पर उसने सुबह से अपने नियमित सभी काम किये हैं, पढ़ाना भी और दोपहर को संगीत सीखने भी जाएगी. छोटी बहन से बात की वह भी आराम करने व स्वास्थ्य लाभ के लिए घर आयी हुई है पर माँ-पिताजी छोटी बुआ के पास गये हैं उसकी देखभाल करने, अपने ही अपनों के काम आते हैं.  सुबह नन्हे ने कहा, फिर बुखार है, फिर माथा छूकर कहा, हाँ गर्म तो है. बुखार में लेकिन मन शान्त हो जाता है. ध्यान करने का प्रयास तो नहीं किया पर करे तो अवश्य आसानी होगी.

कल शाम को ही उसका बुखार उतर गया था. यूँ सुबह से ही वह उसे धता बताने का प्रयास कर  रही थी. शाम को अचानक आये मेहमानों का स्वागत भी सामान्य ढंग से किया. जून अलबत्ता कुछ ज्यादा ध्यान रख रहे थे. कल शाम उन्होंने नन्हे के कमरे के लिए नये पर्दे काटे, थोड़े से टेढ़े कट गये और वे घबरा गये पर बाद में पता चला समस्या उतनी गम्भीर नहीं थी जितनी वे समझ रहे थे. आज दोपहर से वह सिलना शुरू करेगी. आज खत भी लिखने हैं, राखियाँ भेजनी हैं. उसे ध्यान आया मंझले चाचा के बच्चों, दोनों भाई-बहन की उम्र हो गयी है पर उनके विवाह की कोई खबर सुनाई नहीं देती, बिन माँ के बच्चे ऐसे ही होते हैं. छोटे चाचा के बच्चे भी कुछ वर्षों में विवाह के योग्य हो जायेंगे. मातापिता के अयोग्य होने की सजा निर्दोष बच्चों को भुगतनी पडती है. आज भी धूप तो है पर गर्मी कम है.

जिन्दगी, कैसे कैसे राज छिपाए हैं तूने
खुल जाये तो फट जाये कलेजा खुदा का भी
जन्नत भी यहीं है और जहन्नुम भी इधर ही
मिल जाये सही राह तो मंजिल का पता भी 

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