Thursday, January 30, 2014

पूजा का अवकाश


आज मंगलवार है और कल बुधवार, यानि वह दिन जब उन्हें अपने घर में सांस्कृतिक संध्या और रात्रि भोज का आयोजन करना है, लेकिन कोई भी कार्य बिना किसी बाधा के सम्पन्न हो जाये ऐसा कहीं हो सकता है ? जिन्हें निमन्त्रण दिया है वे यदि व्यस्त हों, उपस्थित न हो सकते हों तो सारा आयोजन ही व्यर्थ हो जाता है. पहले केवल एक परिवार के देर से आने की बात थी पर अभी जब दूसरी सखी ने भी कहा तो मन...बेचारा नाजुक सा मन मुरझा ही गया. एक दुःख, पीड़ा का अहसास हो रहा है, यह पीड़ा रिजेक्शन के कारण उत्पन्न हुई है. जिन्दगी में ऐसा कई बार हुआ है और होगा पर हर बार कचोट उतनी ही नई लगती है. शायद उसका मन कुछ ज्यादा ही sensitive है पर जिस बात पर वश नहीं उसे लेकर क्यों परेशान हुआ जाये जैसे कोई हाथ पर रखा कीड़ा झटक दे या जुल्फों से पानी झटक दे उसी तरह दिमाग से इस बात को झटक कर उत्सव की तयारी में जुट जाना चाहिए. वे यह उत्सव अपनी ख़ुशी को सबके साथ मिल कर  बाँटने के लिए मना रहे हैं, यदि कोई नहीं शामिल हो सकता तो कोई बात नहीं, वे तब भी प्रसन्न  रहेंगे. अभी मात्र साढ़े नौ हुए हैं, सारा दिन उसके सामने हैं अगर सुबह-सवेरे ही मन कुम्हला गया तो दिन ढलते-ढलते तो...

आज वे दिगबोई गये थे, कुल चार परिवार मिलकर पूजा देखने, दशहरे की दो छुट्टियाँ अभी शेष हैं. पिछले तीन दिन पूजा के उल्लास में कैसे बीत गये पता ही नहीं चला. बुधवार को उन्होंने रात्रि भोज का आयोजन किया था, जो खासा ठीक रहा बस ‘कोफ्ते’ कुछ ज्यादा मुलायम नहीं बने थे. उसके अगले दिन यानि कल वे तिनसुकिया गये उसने छोटी बहन की दूसरी बेटी के लिए ऊन खरीदी लाल रंग की बेबी वूल...एक सखी के बेटे के लिए एक ड्रेस और जून और स्वयं के लिए जूते. नन्हे ने पहली बार Gents beauty parlor में hair cut करवाए. जून का स्वास्थ्य थोड़ा सा नासाज है, वैसे भी छुट्टियों में आलस्य घेर लेता है, वह भी पिछले दिनों गरिष्ठ भोजन के कारण भारीपन का अनुभव कर रही थी.

एक खुशनुमा इतवार की सुबह ! हल्के बादल सुबह से ही थे, अभी-अभी रिमझिम वर्षा होने लगी, पर चंद घड़ियों की मेहमान थी, अब धूप निकल आई है. कल दोपहर उन्होंने ‘साहेब’ देखी, अनिल कपूर का अभिनय अच्छा है. कल रात्रि नन्हे ने ‘स्पीड’ देखी. जून और उसे नींद आ गयी पर वह  अकेले ही जग कर देखता रहा. उसका गृहकार्य अभी भी शेष है.

आज दस दिनों के बाद नन्हा स्कूल गया है, कल शाम से तैयारी कर रहा था, थोड़ा सा परेशान हुआ पर सुबह ठीक था. प्रोजेक्ट वर्क सभी पूरे कर लिए थे. कई दिनों बाद एकांत मिला है, सिर्फ चिड़ियों की चहचहाहट सुनाई दे रही है. आज सुबह उसकी छात्रा आई थी, वह अभी और पढ़ना चाहती है, नूना को भी पढ़ना होगा, हिंदी कविता इतनी आसान नहीं कि बिना पढ़े ही पढाई जा सके, फिर उसके जाने के बाद जून ने, जो उसका बेहद ख्याल रखते हैं, तुलसी की चाय बनाकर दी, सुबह पहनने के लिए स्वेटर भी निकाल कर दिया था रात को. पड़ोसिन से उसके बेटे के प्रोजेक्ट के बारे में बात हुई, उनके विचार टकराए, पर इससे घबराना क्या ?  पीटीवी पर किन्हीं अदीब से गुफ्तगू सुनकर जहन में कई सवाल आ खड़े हुए, मसलन लोग किस बात पर यकीन करें, ईश्वर की सत्ता को किस सीमा तक स्वीकारें या नकारें या इस बात को बिलकुल ही नजर अंदाज कर दें. जीवन को सही रूप से जीने के लिए आधारभूत मूल्य क्या हैं ? कौन से आदर्श अपनाएं और किन नैतिक गुणों को अपनाएं. इस संसार में स्वयं को किस तरह योग्य बनाएं और अपनी योग्यता सिद्ध करें, जीवन किन बातों से सार युक्त बनता है और किन से सार हीन ! विश्वास और श्रद्धा का केंद्र क्या हो, बिना पतवार की नाव की तरह जीवन भर इधर-उधर न भटकते रहें. जीवन का उद्देश्य क्या हो? क्या जीवन के मार्ग में जो भी आए जो सहज प्राप्त हो उसे साधते चलना और स्वयं को उसके अनुकूल ढालना ही जीने की सच्ची कला नहीं ?  अपने आस-पास के लोगों, वातावरण और प्रकृति को खुशनुमा बनाना, उनके विकास में सहायक होना ही कर्त्तव्य नहीं, अपने समय का सदुपयोग कर विभिन्न कलाओं का सृजन कर मन को व्यर्थ के विचारों से मुक्त रखना ही क्या जीवन का साधन नहीं, नैतिक गुण और आध्यत्मिकता क्या स्वयंमेव ही नहीं समा जायेंगे ऐसे जीवन में जो स्वार्थ के दायरे से मुक्त हो. जहां द्वेष व परायेपन का अहसास न हो, जहां आलस्य व प्रमाद का स्थान न हो, जहाँ मन में सुख व शांति हो, जहां प्रियजनों के प्रति वास्तविक प्रेम हो, जहाँ मानसिक स्वतन्त्रता हो, सहज प्राप्य सम्पत्ति से पूर्णतया संतोष हो, लोभ, क्रोध और राग-द्वेष आदि दुर्गुणों से परे हो. वह लिख ही रही थी कि फोन की घंटी बजी, मुम्बई से जून के लिए कोई फोन था, उसने उन्हें दफ्तर का नम्बर दिया पर सम्भवतः जून वहाँ भी नहीं मिले.



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