Sunday, January 5, 2014

राखी का त्योहार


मुझसे काफ़िर को तेरे इश्क ने यूँ शरमाया
तुझको देख के दिल धड़का तो खुदा याद आया

टीवी पर संगीत का सुरीला कार्यक्रम ‘सारेगामा’ आ रहा है. आज दोपहर भी वह गयी थी, राग यमन सिखाया, बहुत कठिन था, सुर पकड़ में नहीं आ रहे हैं. अभ्यास करने से शायद वह किसी हद तक गा पायेगी. संगीत के जादू ने अपने बस में किया है तो वही आवाज में असर भी लायेगा. कभी ये शब्द कितने अनजाने थे पर अब अपने से लगते हैं. आज सुबह उसकी स्टूडेंट नहीं आई तो कुछ पंक्तियाँ लिखीं उस वक्त,

लालकिले की प्राचीर से तिरंगा
जब फर फर लहराता है

कोटि कोटि हृदयों की आशाओं के साथ
कोटि कोटि दिलों में हिलोरें जगाता है

अस्तित्व का प्रतीक गौरव अस्मिता का  
पहचान हमारी सारे जग से कराता है

अख़बार पढ़े तो आजकल हर पेज पर हिंसक वारदातें ही पढने को मिलती हैं. इन्सान कहाँ जा रहा है, इस अंधी दौड़ का कोई तो अंत होगा. रक्षा बंधन के कारण आज नन्हे का स्कूल बंद था, ‘जागरण’ में भारत के पुराने रीति-रिवाजों के बारे में डॉ पंडया के भाषण के कारण उसने नन्हे और जून दोनों को राखी बाँधने को कहा, जून लेकिन दफ्तर जाने से पूर्व उतार गये, देखा-देखी नन्हे ने भी वही किया. ‘जागरण’ में भारत के गौरवपूर्ण अतीत और सुनहरे भविष्य की बात सुनकर विश्वास करने को जी नहीं चाहता. जहाँ हिंसा इतनी गहरे पैठ चुकी हो और भ्रष्टाचार जीवन का अंग बन चुका हो, होकर भी वहाँ सद्गुण अर्थहीन हो जाते हैं. असम में फिर वही तनाव और अराजकता का वातावरण है, जो कुछ वर्ष पहले था जब राष्ट्रपति शासन की घोषणा करनी पड़ी थी. अभी कुछ देर पूर्व भगवद गीता में पढ़ा कि जो कुछ भी हो रहा है वह इस सम्पूर्ण ब्रह्मांड के विशाल क्रियाकलाप का एक अंश मात्र है और इसको न हम रोक सकते हैं न कम कर सकते हैं. आज सुबह उसने oat porridge बनाई, जून को बहुत पसंद है पर उसे उतनी नहीं.

कल से उनके कोरस की रिहर्सल भी शरू हो गयी है, ‘साज’ फिल्म का गीत है, जो १५ अगस्त को ही फिल्म में गाया गया था. शाम को छह बजे क्लब गयी, वापस आते-आते आठ बज गये, ये कुछ दिन कैसे बीत जायेंगे, सम्भवतः एक मोहक याद बनकर साथ रह जायेंगे. रात होने पर गीत का मन ही मन अभ्यास करते हुए नींद कब आँखों में भर आती है पता ही नहीं चलता. नन्हा और जून को थोड़ा और करीब आने का मौका मिल रहा होगा. जून उनकी शाम की चाय के लिए नाश्ते का इंतजाम करते हैं और उस दिन की चाय के लिए भी सारा सामान लायेंगे, उन्हें यह काम बोझ नहीं बल्कि अच्छा लग रहा है उसकी तरह. आज भी मौसम कल की तरह मेहरबान है, पिछले कई दिनों से कोई पत्र आदि नहीं आया है, रेलवेज बंद है, आये दिन आंतकवादियों के बम विस्फोटों के कारण ट्रेनें रोक दी गयी हैं. आज हिंदी में व्याकरण पढ़ाया, उसे लगा सिखाते हुए वह खुद भी काफी कुछ सीख रही है.




No comments:

Post a Comment