Thursday, February 13, 2014

कैरम की प्रतियोगिता


अभी-अभी सद्वचन पढ़ा पर अभी-अभी मन में नकारात्मक भाव आया. आज सुबह बिस्तर छोड़ने में ५-७ मिनट लगाये और उन क्षणों में मन में इधर-उधर के विचार आ रहे थे, उसकी आध्यात्मिक प्रगति एक कदम आगे बढ़ती है और दो कदम पीछे लौट आती है. ईश्वर की अनुकम्पा अभी उस पर नहीं हुई है. कल डायरी नहीं लिख सकी, लेडीज क्लब की कमेटी की उन सदस्या के घर गयी थी जिनके यहाँ से कल शाम मीटिंग से उसे जल्दी लौट आना पड़ा था, कुछ खाकर नहीं आई थी. घर में मेहमान आये थे और जून ने फोन करके उसे बुला लिया था. वह  गाना अच्छा गाती हैं, बताने लगीं, उनके सिखाये हए विद्यार्थी को सर्वोत्तम गायक का पुरस्कार मिला. उन्होंने उसे स्वादिष्ट नाश्ता खिलाया. आज आसू ने बंद की घोषणा की है, सो जून आधे रास्ते तक जाकर ही लौट आये हैं, उन्हें खाली समय बिताना भारी पड़ रहा है. किसी महिला को इस स्थिति से गुजरना नहीं पड़ सकता, They know and They know !

स्वामी योगानन्द जी कहते हैं ध्यान के द्वारा वे महाचेतना के स्तर तक पहुंच सकते हैं और उसके बाद ईश्वर निकट होता है. उसी ईश्वर ने आज सुबह उसे पांच बजे से ठीक पहले उठाकर बचा लिया वरना उसकी छात्रा को वापस लौटना पड़ता. आज मौसम बेहद ठंडा है, घने बादलों के कारण सूरज का कोई बस नहीं चल रहा, पूरे देश में हो वर्षा हो रही है. अभी-अभी कल होने वाली मीटिंग के सिलसिले में दो-तीन जगह बात की, जैसे-जैसे दिन बीत रहे हैं, यहाँ लोगों से जान-पहचान बढ़ रही है, और जैसे-जैसे उम्र बढ़ रही है, स्वयं में जो वरिष्ठता या गरिमा का अहसास होना चाहिए था कम हो रहा है. दिल से वही छोटी ही बने रहना चाहती है छोटी बहन की तरह, अब तो उसने भी स्वयं को बदल लिया है, दूसरी बेटी की माँ बनने के बाद. ईश्वर अभी भी उतना ही दूर है, शायद यही एक प्यास है जो मानव को इधर-उधर भटकती है, मानव को ईश्वर ने बनाया फिर छिप गया. मानव अपने निर्माता को खोजता है, ढूँढ़ता-फिरता है पर वह कहीं नजर नहीं आता, ध्यान करने बैठती है तो सिवाय ईश्वर के इधर-उधर के सारे विचार गड्ड-मड्ड होने लगते हैं, फिर लगता है जो वस्तु है ही नहीं उसके पीछे भागना... यानि श्रद्धा डोलने बढ़ती है, घड़ी-घड़ी मन डांवाडोल क्यों होता है ? ऊर्जा संरक्षण पर कविता लिखनी है सो जून के आने तक के समय में ही पूरी कर लेनी चाहिए. आज नन्हा सुबह कोचिंग में नहीं जा सका, वह उसे नहीं उठा पायी, कुछ देर नाराज था फिर स्वयं ही ठीक हो गया पर उसे बहुत बुरा लगा, जो काम अन्यों के लिए इतने सरल हैं वह उसके लिए कितने मुश्किल हैं.

आज कई दिनों बाद लिख रही है, धूप में बैठकर तो शायद महीनों बाद लिख रही है, अभी सुबह के साढ़े आठ हुए हैं, धूप फिर भी तेज लग रही है. स्वच्छ वातावरण के कारण असम में धूप तेज होती है. पिछले दिनों बहुत कुछ घटा, उसने कैरम की प्रतियोगिता में भाग लिया, कई घंटे उसमें दिए पर फाइनल में नहीं पहुँची. नन्हा और जून उसकी वजह से परेशान भी हुए होंगे. इस वर्ष क्लब मीट पहले से ज्यादा उत्साह व धूमधाम से मनायी जा रही है. यहाँ National Tennis Championship भी खेली जा रही है. कल वे तिनसुकिया गये, माँ-पापा के आने से पहले घर को और सुंदर बनाना चाहती है इसी सिलसिले में कुछ खरीदारी की. नन्हे का स्कूल आजकल बंद है, वह अपने समय का सही उपयोग करना सीखे, अच्छी आदतें डाले यह ख्याल हर वक्त बना रहता है, जून भी अक्सर उसे समझाते हैं कई बार वह मानता है पर कई बार नहीं भी, यह उम्र ही ऐसी है बाद में पता चलता है कि जिन्दगी के कई कीमती वर्ष व्यर्थ ही गंवा दिए. आज उसका फलाहार है, पर सब्जी कटवाते वक्त याद नहीं रहा, अब एक सब्जी उसके रात्रि के विशेष भोजन की शोभा बढ़ाएगी. कल जून कार्ड्स लाये, पत्रों के जवाब का कार्य भी हो गया है, अब उसके सम्मुख नये साल से पहले नन्हे का स्वेटर पूरा करने का उद्देश्य है.



2 comments:

  1. अच्छी डायरी हमेशा की तरह.....मनोरंजक.....

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  2. अदिति जी, स्वागत व आभार !

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