Wednesday, March 19, 2014

सफलता के सात सुनहरे सूत्र


ठंडी हवा शीतलता दे रही है और हरीतिमा आँखों को सुकून. आज श्री अरविंद पर एक कार्यक्रम देखा, विलक्षण प्रतिभा के धनी श्री अरविंद महान चिंतक थे, भारत के प्रति प्रेम से परिपूर्ण, इस देश की यात्रा को आगे ले जाने वाले एक मनीषी ! कल शाम लाइब्रेरी से दो पुस्तकें लायी, तसलीमा नसरीन की ‘लज्जा’ और दीपक चोपड़ा की ‘Seven golden laws for success’. कल शाम ही पहला अध्याय पढ़ा, ध्यान, मौन और दूसरों का आकलन न करने का प्रण, तीन बातों पर जोर दिया है. घटनाओं, मनुष्यों, परिस्थितियों को आंकते चले जाने की आदत ही दुखी रखती है. कल दोपहर अखबर में ‘हरिवंश राय बच्चन’ का एक इंटरव्यू पढ़ा, काट कर फ़ाइल में रखने योग्य है. कल जून नन्हे के स्कूल गये थे, सभी टीचर्स से मिले, सभी ने उसकी तारीफ की तथा उपयोगी सुझाव दिए. हिंदी लेखन के कोर्स में एक प्रश्न प्रेमचन्द की कहानी ‘कफन’ पर है, जून ने कहा है कि वह हिंदी पुस्तकालय से उनकी पुस्तक ला देंगे. जून हमेशा सहायता करने को तैयार रहते हैं. आज वह उसे ‘सैकिया प्रिंटर्स’ भी ले जायेंगे, लेडीज क्लब के बुलेटिन लाने के लिए. आज महादेवी वर्मा की एक कविता पढ़ी, ‘जो तुम आ जाते एक बार’, अज्ञात प्रेमी के लिए उनकी तड़प स्पष्ट शब्दों में व्यक्त है. वह रहस्यमय व्यक्ति या शक्ति, अथवा ईश्वर कोई भी रहा हो, रचने की प्रेरणा उसी ने दी. किसी की प्रतीक्षा, प्रतीक्षा के लिए..जैसे कला कला के लिए.

शमशेर की कविता ‘उषा’ पढ़ाई, कविता अच्छी है, पर सीधी सपाट नहीं, नील जल में झिलमिल गौर देह... का क्या तात्पर्य है, सूरज या सफेद बादल.. सम्भवतः बादल ही. आज सुबह अलार्म सुनते ही उठ बैठे वे. रात को नूना दीपक चोपड़ा की किताब पढकर सोयी थी, सपनों को व्यवस्थित करती रही, वह कहते हैं, हर दिन मिलने वाले हर व्यक्ति को कुछ न कुछ देना चाहिए, चाहे वह एक फूल हो, एक शुभकामना हो अथवा कम्प्लिमेंट ही क्यों न हो ! कुछ देर पूर्व पड़ोसिन से बात हुई, उसकी तबियत फिर खराब है, अस्वस्थ होने को लोग इतना सामान्य क्यों मानते हैं, स्वस्थ रहना, चुस्त रहना तो हर एक का कर्त्तव्य है और जीवन का सबसे बड़ा सुख भी. इस वक्त, इस क्षण में वह स्वयं को बहुत स्पष्ट देख पा रही है, मानसिक स्तर पर कोई उहापोह नहीं है, जीवन से कोई शिकायत नहीं, कोई उलाहना नहीं देना. जो हो रहा है वही होना चाहिए था, इस सृष्टि में हर घटना के पीछे एक कारण है, भविष्य में जो होगा वह इस बात पर भी निर्भर करेगा कि वर्तमान में कोई क्या कर रहा है. यदि वर्तमान संतुष्टि प्रदान करता है, उसे अपने लाभ के लिए साधा जा सकता है. अपने लाभ में अपने परिवेश का, अपने परिचितों का, समाज का सबका लाभ है.

जो क्रम उसने सुबह निर्धारित किया था, अभी तक तो उसके अनुसार चल रही है, आधा घंटा ध्यान, आधा घंटा व्यायाम, आधा घंटा लेखन..इसी बीच दो फोन भी कर लिए. एक सखी से बात की तो लगा...नहीं उसे किसी का मुल्यांकन नहीं करना है, वह जैसी है, वैसी है, और जैसा सोचती है उसे वैसा सोचने का हक है. अंततः आज उनका कम्प्यूटर इंस्टाल हो गया, जून और नन्हा दोनों उसमें व्यस्त हैं, उसे भी बुलाया तो हाथ जोड़कर उसने माउस पर हाथ रखा, हल्के से छूने पर भी स्क्रीन पर चित्र बदल जाते हैं, उसमें वे गीत सुन सकते हैं, चित्र बना सकते हैं, लिख सकते हैं, फिल्म देख सकते हैं, जितने CD उनके पास हैं अभी सारे नहीं देखे हैं. एक नई दुनिया के द्वार उनके लिए खुल गये हैं.

जून को कुछ देर पहले फोन किया, लगा, जैसे कोई उनके पास बैठा था, सो, ‘ठीक है’, ‘हाँ’ के अलावा कोई उत्तर नहीं दे रहे थे. आज एक सखी के विवाह की सालगिरह है, उसके लिए एक कविता लिखने का प्रयास किया. कल सुबह नहाते समय उसकी आंख में रीठे-आंवले का पानी चला गया था, अभी तक हल्का दर्द है. अभी ग्यारह भी नहीं बजे हैं पर धूप इतनी तेज है कि लगता है दोपहर बाद का वक्त हो. आज से खिड़कियाँ खोलकर रखने के दिनों की शुरुआत हो गयी है और  हल्के रंगों के ढीले-ढाले सूती वस्त्र पहनने के दिन भी, जो सर्दियों की शुरुआत में सहेज कर रख दिए गये थे. उसे अचानक महसूस हुआ आज कहीं कुछ छूटा हुआ सा लग रहा है, जैसे कोई बहुत जरूरी बात कहीं रह गयी हो. वर्तमान में रहने के सुनहरे नियम के अनुसार उसे फ़िलहाल तो किचन में जाना चाहिए. खिड़की से गन्धराज के फूलों की और कमरे में रखे गुलाब की बासी मीठी महक हवा में भर गयी है.  



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