Friday, March 7, 2014

भारतेंदु हरिश्चन्द्र का कवित्त


आज नन्हे की काम करने की गति देखते ही बनती है, सुबह साढ़े सात बजे उठकर भी नहा-धोकर नाश्ता करके पढ़ाई करने बैठ गया ताकि नौ बजे खेलने जा सके. जाते समय फरमाइश करके गया है कि दोपहर को भोजन में दाल माखनी, मिक्स्ड वेज तथा मलाई कोफ्ता तीनों ही होने चाहियें. सो नूना का ध्यान आज किचन की ओर ही लगा हुआ है. कल उसने पापा से एक केक के लिए भी ढेर सारा सामान मंगवाया है, पर स्वयं बनाने या सहायता करने के लिए घर में रुकना गवारा नहीं, खैर, उसकी पहली पसंद टेनिस है, इससे यह तो पता चलता है है. कल शाम जून बहुत अच्छे मूड में थे, पर आने वाले कल की शाम नहीं होंगे, क्यों कि कल शाम चार बजे उसे फिर मीटिंग में जाना है. उसके बिना उनकी शामें बेहद अकेली हो जाती हैं.

नन्हे का Black Forest cake बन कर तैयार हो गया है, उसने जून से कहा भी इसकी एक तस्वीर खींच लें, बहुत सुंदर दिख रहा है पर उन्हें उसके स्वाद से मतलब है न कि रूप से.. नन्हा और वह दोनों ही उसे काटने के लिए बेताब हो रहे हैं.

मार्च की एक सुहानी सुबह ! अलसुबह तेज आंधी आई, कुछ क्षणों के लिए अँधेरा छा गया, हवा की गति प्रचंड थी, फिर वर्षा हुई और देखते ही देखते हवा भी थम गयी, बादल न जाने कहाँ उड़ गये, सूर्य का राज्य पुनः छा गया और धूप चमकने लगी. ईश्वर के मंच पर दृश्य परिवर्तन इतनी शीघ्र होता है कि मन रोमांचित हो उठता है. आज सुबह उसकी छात्रा आयी थी, आधुनिक हिंदी साहित्य के जन्मदाता प्रसिद्ध कवि भारतेंदु हरिश्चन्द्र की एक कविता कवित्त छंद में पढ़ी, पढ़ायी. अभी नौ भी नही बजे हैं, नन्हे का मित्र उसे लेने आ गया है, वह अभी पढ़ रहा है, अच्छा तो यही होगा कि मित्र उसकी पढ़ाई में मदद करे. कल कमेटी मीटिंग में सेक्रेटरी देर से आई, उसे ही पिछली मीटिंग के मिनट्स पढ़ने पढ़े, बाद में उन्हें अपने पति के कोलकाता से लौटकर आने के बाद भी पूरे समय रुकना पड़ा, उनका मन घर पर रहा होगा लेकिन ड्यूटी तो ड्यूटी है. वह देर से आई तो भी जून सामान्य मूड में थे, बल्कि उन्होंने डिनर भी बना दिया था. कल रात उसने एक विचित्र स्वप्न देखा, मनोवैज्ञानिकों के अनुसार यदि स्वप्न छिपी हुई इच्छाओं और कामनाओं का प्रतीक होते हैं तो बिना उसे ज्ञात हुए कब उसकी यह कामना हुई, समझ से बाहर है, नींद को मोहक इसीलिए कहा गया है न कि व्यक्ति एक दूसरी ही दुनिया में विचरण करने लगते हैं जहाँ कोई नियन्त्रण नहीं रहता.


इन्सान का मन मिटटी के कोमल लोंदे की तरह होता है, जैसी छाप डाल दें वैसा ही बन जाता है, दुनिया की कोमलतम वस्तु से भी कोमल, छुईमुई की तरह लजीला और यही मन वक्त पड़ने पर कठोर भी बन जाता है, जो हल्की सी उपेक्षा भी सहन नहीं कर पाता वही समय के थपेड़ों को सह पाने में सक्षम हो ही जाता है, भावुक मन हो तो सोने पर सुहागा, जहाँ अपने प्रतिकूल कुछ भी होता या घटता दिखाई दिया, झट कुम्हला गया, जैसे किसी ने ऊर्जा शक्ति ही छीन ली हो, मुरझाए हुए फूल की तरह फिर पड़ा है जमीन पर. आज पत्रों के जवाब का दिन है और अभी कुछ देर पूर्व जून का फोन आया, तिनसुकिया जाने का दिन भी है. कल शाम वे असमिया सखी की बेटी के नामकरण संस्कार में गये, उसने एक स्वेटर बुना था उसके लिए, लेकर गयी पर वह अभी भी उठने की हालत में नहीं थी, पतिदेव की समझ में नहीं आ रहा था मेहमानों का स्वागत कैसे करें. वहाँ से वे लाइब्रेरी गये, और कुछ नई किताबें लाये, Gods of small things भी मिल गयी. अरुंधती राय की किताब ! जिसमें उसका एक बहुत सुंदर सा फोटोग्राफ है. 

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