Monday, May 12, 2014

ग्रीक पौराणिक कथाएं


इन सर्दियों में आज पहली बार धूप में बैठकर लिख रही है, पंछियों के कलरव, गुलाब, गेंदे, गुलदाउदी के पौधों के मध्य. कभी ऐसा होता है कि चलते-चलते अचानक बैठकर सुस्ताने का मन हो, पीछे मुड़कर देखने का भी, कितना रस्ता तय कर आये, कितना अभी बाकी है. सो आज उसके साथ यही हो रहा है, पिछले दिनों थककर बैठने का सुस्ताने का वक्त ही नहीं था, हर वक्त कोई न कोई व्यस्तता लगी ही रही, अब लम्बे सफर पर जाने से पूर्व थोड़ा थम कर सोचने का वक्त मिला है. नन्हा स्कूल गया तो कुछ सुस्त लग रहा था, पर उसे लगता है, स्थान परिवर्तन का उसपर अच्छा असर होगा लौटकर आएगा तो उत्साह से परिपूर्ण होगा.

...पूसी लौट आई है, कहानियों में सुना था कि मीलों दूर जाकर भी पालतू पशु अपने घर लौट आते हैं, कल वह बगीचे पीछे वाले भाग में गयी, तो देखा लीची के पेड़ के नीचे वह बैठी थी, आश्चर्य और ख़ुशी से उसने जून और नन्हे को बताया, उसके पास जाते ही पैरों से लिपटने लगी, थोड़ी मोटी हो गयी है, जैसे कुनमुना कर कुछ कहने का प्रयत्न कर रही थी.

आज उसकी बंगाली सखी के विवाह की वर्षगाँठ है, आजकल वे लोग भारत से बहुत दूर हैं, किसी पश्चिमी देश में, लोग अपना घर-परिवार देश छोड़कर दूर निकल जाते हैं और नये-नये आयाम तलाश लेते हैं. आज भी वही कल का सा वक्त है, धूप है, पूसी है, हरी घास है, कितने अचरज की बात है चिड़ियाँ हर वक्त बोलती हैं, पर मानव अपने कान उनकी तरफ से बंद किये रहते हैं. परसों की पिकनिक पर वे देर से जाकर जल्दी आने की बात सोच रहे हैं. सभी से मेल-मुलाकात भी हो जाएगी और बुधवार को उनकी यात्रा के लिए एक छोटी सी रिहर्सल भी. नदी किनारे रेत पर बैठकर महल बनाना और स्वादिष्ट भोजन, पिकनिक का इस साल यही अर्थ होगा, पानी में पैर डालकर बैठना भीगना-भिगोना और दूर तक जंगल में घूमने जाना सम्भव नहीं होगा. उसने ऊपर देखा, चारों ओर की हरियाली को छोड़कर जाना, जिसके पीछे से आकाश की नीलिमा झांक रही है कितना मुश्किल है. आज सुबह बहुत दिनों बाद जागरण में ‘गोयनका जी’ को सुना, श्वास का आना-जाना देखते-देखते विकारों से मुक्ति की बात सिखा रहे थे. मनुष्य के पास सुधरने के के लिए हर वक्त गुंजाइश रहती है, हर कृत्य में सुधार किया जा सकता है.

आज उनके लॉन में एक नन्ही बच्ची की आवाजें भी हैं, नैनी की बेटी की बेटी की तुतलाहट भरी आवाज, पीढ़ी दर पीढ़ी इसी तरह परिवार बढ़ते हैं अपने विचार रीति-रिवाज, परंपरायें एक दूसरे को सौंपते हुए हर नई पीढ़ी उसमें कुछ और जोड़ती चली जाती है. उनके बाएं तरफ की पड़ोसिन ने कल भी ठीक इसी वक्त अपने ड्राइंग रूम की खिड़की खोली थी, उससे मिले भी कई दिन हो गये हैं. वह धूप में बैठी है, स्वेटर भी पहना है, पर धूप का अहसास नहीं हो रहा है, वहीं दूसरी ओर वह नन्ही बच्ची एक सूती फ्राक पहने छाया में दौड़ रही है. आजकल वह ग्रीक कथाओं की एक पुस्तक पढ़ रही है. ये कथाएं भी भारतीय पौराणिक कथाओं की तरह बहुत रोचक हैं, she finds herself near to Hestia, the Goddess of the earth and fire, she remains in back ground and is content in herself.






2 comments:

  1. Hestia न सिर्फ धरती माँ है बल्कि वो घर-परिवार की देवी भी है. बिल्कुल उसकी तरह. आज बाग़ में बैठकर उसे ख़ुद से मिलने का मौक़ा मिला है... वो है, उसके फूल-पौधे हैं, उसकी पूसी है और परिन्दों की बातचीत!
    आज जून नहीं, नन्हा नहीं कोई नहीं!! बिल्कुल उसी ग्रीक ग़ॉडेस की तरह!! सोचता हूँ, इतने अकेलेपन से उसे डर नहीं लगता?? पता नहीं कब कौन निकल आए उसके अन्दर से, अचानक लौट आई पूसी की तरह या फिर उन परिन्दों की तरह जो अनजान सी ज़ुबान में जाने क्या-क्या कहना चाह्ते हैं उससे!!
    या कहीं उसी की अपनी तनहाई पीछे से आकर उसके कानों में "होsss" कर जाए!!

    ReplyDelete
  2. वाह ! बहुत सुंदर टिप्पणी ! टिप्पणी करना भी एक कला है जो सबको नहीं आती..आभार!

    ReplyDelete