Tuesday, May 20, 2014

मैटिल्डा - रोआल्ड डाल का रोचक उपन्यास


जाने कितना बोझ मन पर उठाये वह घूमती रहती है, कभी-कभी बोझ हल्का हो जाता है पर फिर चढ़ जाता है. अपनी असमर्थता का बोझ, आलस्य का, कर्महीनता का, समय के साथ न चल पाने का, अधूरे कामों का और प्रमाद में ड़ूबे रहने का बोझ. हर वक्त कोई सम्भालता रहे, संवारता रहे ऐसा तो सम्भव नहीं, कोई दीये की बाती भर चढ़ा देगा, रास्ता तो खुद ही तय करना होगा कोई नक्शा बना कर दे देगा मंजिल तो खुद ढूँढनी होगी. इस बोझ तले दबे-दबे आत्मविश्वास भी चूर-चूर हो जाता है और जीवन जो कभी अर्थमय हो गया था, अर्थहीन नजर आता है. स्वयं से अपेक्षाएं न रखे ऐसा भी नहीं हो सकता, फिर उन अपेक्षाओं पर खरा न उतरने पर हर वक्त अपनी फटकर सुनना भी अच्छा नहीं लगता तो फिर राह कैसे मिले, अच्छा हो कि हर दिन अपने लिए छोटे-छोटे लक्ष्य तय कर ले जिनको उस दिन पूरा करने का भरसक प्रयत्न करे यदि किसी कारण वश न हो पाए तो अगले दिन के कामों में उनको जोड़ ले.

आज बहुत दिनों बाद लिख रही है. पिछले दिनों व्यस्त थी जून के स्वेटर में, नन्हे को पढ़ाने में, घर के दूसरे कामों में और इसी तरह दिन गुजरते गये. सर्दियों का मौसम जैसे अब जाने को है और वसंत की आमद-आमद है. इस समय टीवी पर हजरत अमीर खुसरो का मेघ मल्हार राग पर आधारित एक सुंदर गीत बज रहा है. आज रात दस बजे अखिल भारतीय कवि सम्मेलन है, असम आने से पूर्व कई वर्षों तक हर साल यह कवि सम्मेलन रेडियो पर सुना करती थी, भारत की सारी भाषाओँ की कविताएँ सुनना बहुत अच्छा लगता था. कल २६ जनवरी है, यहाँ ‘बंद’ होगा पर वे दोपहर को उस भोज में जायेंगे जिसमें सभी मित्र एक-एक डिश बना कर लाते हैं. उन्हें एक जगह रात्रि भोज के लिए भी जाना है. आज कई दिनों बाद पड़ोसिन से भी बात की, साथ वाले घर में है पर फोन का ही सहारा लेना पड़ा, उसका स्वास्थ्य पिछले कुछ दिनों से ठीक नहीं था. उसका बेटा संगीत की प्रथमा परीक्षा देने वाला है. आज नन्हा भी उसी की तरह परीक्षा से भयभीत था, उसकी यह घबराहट स्वाभाविक नहीं है और है भी. परीक्षा को लेकर थोड़ी बहुत चिंता सभी को होती है. कल जून का स्वेटर पूरा हो गया. उसे याद आया, आज छोटी बहन के विवाह की वर्षगाँठ है, डाक्टरी की उसकी ट्रेनिंग का अंतिम चरण है.

मन में बसाया है अपने को वह क्या जाने प्रीत है क्या
एक आवाज सुनी तो जाना गीत है क्या संगीत है क्या ?

परसों रात कविताएँ सुनते-सुनते ही वह सो गयी, कुछ बहुत अच्छी थीं, भाव गहरे थे शब्द भी सुंदर और कुछ साधारण थीं. सुबह जून ने फोन पर बताया ‘ऊर्जा संरक्षण’ पर लिखी उसकी  कविता पर प्रथम पुरस्कार मिला है. योग्यता चाहे वह किसी भी क्षेत्र में क्यों  हो वह कभी व्यर्थ नहीं जाती. एक सखी को फोन किया पर बात नहीं हो सकी सो मन में खलबली सी है. अभी कुछ देर पहले संगीत अध्यापिका ने पुस्तक भिजवाई है जिससे वह प्रश्न पत्र हल कर सके. दोपहर को सिलाई का काम भी शुरू करना है, अभी कपड़ों की अलमारी भी सहेजनी है, फिर कम्प्यूटर पर हिंदी में लिखना भी सीखना है. Matilda ने क्या योजना बनाई है अपनी शिक्षिका को बचाने की यह जानने की उत्सुकता को भी शांत करना है जो किताब खत्म करके ही हो सकती है. शाम को क्लब की मीटिंग भी है. दो चिट्ठियां भी लिखनी हैं, पर सबसे पहले Matilda और शेष सब बाद में. नन्हे को भी यह किताब बहुत अच्छी लग रही है और उसे तो इतनी पसंद आई की कि कल  पार्टी में एक नन्ही बच्ची को देखा तो उसी में ढूंढने लगी, यूँ वह भी काफी समझदार थी.






No comments:

Post a Comment