Tuesday, July 1, 2014

जुड़वां चट्टानें- कोडाई कनाल


आज सुबह वे आश्रम के ‘योग केंद्र’ गये, जहाँ आश्रमवासी ध्यान कर रहे थे. इसके पूर्व इमली के घने वृक्षों से घिरे रास्तों से गुजरकर सूर्योदय देखने भी गये पर बादलों तथा धुंध के कारण सूर्य छिपा रहा. श्वेत फेन उगलती व चट्टानों से टकराती लहरों का जाल और उन पर सवार छोटी-छोटी नावों में नाविक, ये दृश्य कैमरों में कैद किये. थोड़ी देर में वे यहाँ से विदा लेंगे और तीन सागरों के पावन संगम तथा पवन चक्कियों के शहर कन्याकुमारी के सुंदर दृश्य उनके मानस पटल पर सदा के लिए अंकित हो जायेंगे.

कन्याकुमारी से बस की यात्रा करके कल संध्या छह बजे वे मदुराई पहुंचे. यह होटल काफी अच्छा है, कर्मचारी आदेश की प्रतीक्षा में हर समय हाथ बांधे खड़े रहते हैं. सबसे अच्छी बात है कि ‘मीनाक्षी देवी’ का मन्दिर यहाँ से कुछ ही दूरी पर स्थित है.  प्राचीन काल से मदुराई तमिल संस्कृति का केंद्र रहा है, स्कूल में उसने पढ़ा था, मन्दिर स्थित स्तम्भों में से संगीत के सप्त सुर निकलते हैं, आज उसकी सत्यता को अपनी आँखों से देखा. यह उन सभी के लिए एक अनोखा अनुभव था. मन्दिर मार्ग में जगह-जगह फूलों के हार तथा सुगन्धित गहरे बिक रहे थे. मन्दिर के गोपुरम को छूकर आती पवित्र गंधों से पूरित हवा उनके नासापुटों में भर गयी.  एक मन्दिर भगवान शिव को समर्पित है. मन्दिर का विशाल भव्य गोपुरम अतुलनीय है बड़े-बड़े प्रांगण, हजारों स्तम्भ, तथा विभिन्न देवी-देवताओं की आकर्षक मूर्तियाँ देखते ही बनती हैं. मीनाक्षी देवी की मुख्य प्रतिमा की तो वे झलक ही पा सके क्योंकि दर्शनार्थियों की भीड़ बढ़ती जा रही थी.

आज वे दक्षिण भारत के सुंदर पर्वतीय शहर ‘कोडाइकनाल’ में हैं. सुबह सिटी टूर पर निकले तो मौसम काफी ठंडा था, सूर्य देव भी बादलों व धुंध के पीछे दुबक कर बैठे थे. दिन भर बदली छाई रही और बूँदाबांदी होती रही. गाइड बाबू बहुत कुशल था, विभिन्न दर्शनीय स्थलों के बारे में उसे विस्तृत जानकारी थी. ‘कुरिंजी अंडावर मन्दिर’ देखा जो  बारह वर्ष में एक बार खिलने वाले कुरिंजी फूल के नाम पर किसी यूरोपियन की याद में बनाया गया है. कोडाई का रोचक व विचित्र अजायबघर भी देखा, जहाँ मानव भ्रूण की विभिन्न अवस्थाओं को बोतलों में बंद करके रखा था. बहुत से पक्षियों व जानवरों के तन भूसे से भर कर रखे हुए थे जो जीवंत लगते था. मीलों तक फैले कतार में लगे सुंदर चीड़ के वृक्षों को नजदीक से देखना भी अच्छा अनुभव था. यहाँ युकिल्प्ट्स के भी अनेक वृक्ष हैं, जिनकी तीव्र गंध हर कहीं पीछा करती है.

आज मौसम मेहरबान है. गगन में सूरज चमक रहा है. आज वे सभी ‘कोकर वॉक’ पर घूमने जाने वाले हैं. कोडाई वाकई एक बेहद सुंदर पहाड़ी प्रदेश है. गहरी घाटियाँ और उनसे उठते बादल जो पल भर में ही सारे दृश्य को आँखों से उझल कर देते हैं, अति मोहक हैं. जुड़वाँ चट्टानें देखने गये तो सारा दृश्य धुंध से घिरा था, अचानक पल भर के लिए कोहरा छंटा और दो चट्टानों की झलक मिली, सारे यात्री मारे ख़ुशी के चिल्ला उठे पर अगले ही पल सब कुछ पुनः बादलों से ढक गया. उसे इलाचंद्र जोशी का वर्षों पहले पढ़ा उपन्यास स्मृति में कौंध गया जिसमें ऐसे किसी पर्वतीय स्थल का वर्णन था. कुछ देर में यहाँ से उन्हें वापस मदुराई जाना है जहाँ से रात्रि को रेल द्वारा बैंगलोर.


No comments:

Post a Comment