Monday, July 7, 2014

गुझिया की मिठास


आज उसका मन पूर्णत शांत है, उद्ग्विनता है तो यही कि हर पल सचेत नहीं रह सकी, बिना किसी कारण के असत्य भाषण किया, उस समय चेतनता नहीं थी पर बोलते ही अनुभव हुआ. चाहे कितना भी निर्दोष या छोटा सा झूठ भी हो पर दाग तो लग जाता है न, दीदी-जीजा जी से फोन पर बात की, वही जानी–पहचानी आवाज. नन्हा और जून जा चुके हैं. जागरण में बताया जा रहा है कि सबसे भयंकर हिंसा वाणी की हिंसा है, अपनी जिह्वा रूपी गौ को खूंटे से बाँध कर रखें क्योंकि यह दूसरों के हरे-भरे मन उपवन को तहस-नहस कर सकती है. वाणी का बहुत महत्व है. कल सुबह फोन पर जब उसे लगा कि भाषा थोड़ी रूखी थी तो शाम को वह उनके घर गयी अपने उस दोष का प्रायश्चित करने. आज फोन पर बात न ही करनी पड़े तो अच्छा है क्योंकि मौनव्रत लेने को बाध्य है. मानव मन देह के सुख-दुःख से ऊपर उठना ही नहीं चाहता, इसलिए मन से परे बुद्धि  और बुद्धि से परे आत्मा को जानने की बात पूर्वजों ने की. कल शाम वह स्कूल में कम्प्यूटर की अध्यापिका के यहाँ भी गयी, उसका क्लास वन में पढने वाला बेटा बहुत प्यारा है, नन्हा भी बचपन में ऐसा था. आज वह बायोलॉजी कक्षा के लिए कुछ टहनियां लेकर गया है. रसोईघर में नैनी कुछ खटपट कर रही है शायद उसे आकर्षित करने के लिए पर उसका तो मौनव्रत है न !

कल ईद की छुट्टी थी जून और नन्हा घर पर ही थे, परसों रात को असमिया सखी की बिटिया के जन्मदिन पार्टी से लौटकर सोते-सोते थोड़ी देर हो गयी सो सुबह नींद भी देर से खुली, फिर दोपहर को उन्होंने मिलकर गुझिया बनाई. नन्हे ने भरावन का कार्य किया, जून ने तलने का और उसने बेलने का. शाम को एक मित्र के यहाँ गये, उस सखी से काफी देर तक बात हुई, विषय वही था, स्कूल, कभी उसका ज्यादातर सखी का. आज जागरण में कोई जैन आचार्य आये हैं. अभी-अभी कुछ सखियों को फोन किया कल रात्रि होली के विशेष भोज के लिए. पड़ोसिन ने पूछा, वह क्लब की मीटिंग में गए जाने गाने की रिहर्सल में क्यों नहीं आ रही है, उसे वह गाना पसंद नहीं आया था, बहुत हल्का-फुल्का सा गीत है, पर और किसी को इसमें कोई बुराई नजर नहीं आई. सच्चाई की राह पर अकेले ही चलना पड़ता है, इससे उसे ताकत ही मिलेगी.

आज से वह मुक्त है, कल स्कूल में सभी को होली की गुझिया खिलाकर विदा ली, मन ही मन वह सभी स्मरण किया जो पिछले कुछ दिनों से वहाँ घटा था. आज से अपनी उसी पुरानी दिनचर्या में लौट जाना है, स्वाध्याय, आसन, लेखन व संगीत !

कल भारत शारजाह में साउथ अफ्रीका से पहला मैच हार गया, शायद इस हार से कुछ सीख लेकर आज का मैच जीत जाये. ‘जागरण’ चल रहा है, अपने मूल स्वरूप को पहचानकर अंतहीन सुख के साम्राज्य को प सकने का उपदेश दे रहे हैं. संसार सारहीन है, नश्वर है लेकिन अपना आप जो चेतन है, नित्य है, अपरिवर्तन शील है. उसी चैतन्य को पाना ही जीवन का ध्येय है, ये बातें हर जगह सुनने को नहीं मिलतीं, लेकिन जीवन को सार्थक ढंग से जीने के लिए, अपने कर्त्तव्य का पालन करने के लिए, हृदय में सहनशीलता, त्याग व आत्म विसर्ग की उद्दात भावनाओं के स्फुरण के लिए इनको सुनते रहना अति आवश्यक है. ये मन को उहापोह से मुक्त रखती हैं, वहीं एकाग्र रखने में भी सहायक हैं. कल दोपहर उसने मध्यमा का कोर्स शुरू कर दिया है, अभी बहुत कुछ सीखना है. अध्यापिका को भी सिखाने का शौक है सो उसकी संगीत यात्रा अभी जारी रहेगी. कल बहुत दिनों के बाद माँ-पापा का पहले का सा पत्र मिला. छोटी बहन ने उस दिन फोन पर कविताओं के लिए कहा. अगली मीटिंग में क्लब में भी साहित्य का कार्यक्रम है उसने तीन कविताएँ चुनी हैं, यदि अवसर मिला तो पढ़ेगी.




2 comments:

  1. "जागरण में बताया जा रहा है कि सबसे भयंकर हिंसा वाणी की हिंसा है, अपनी जिह्वा रूपी गौ को खूंटे से बाँध कर रखें क्योंकि यह दूसरों के हरे-भरे मन उपवन को तहस-नहस कर सकती है. "
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    जिह्वा रूपी पशु कहा होता तो मुझे अच्छा लगता.. जिह्वा रूपी गौ सुनकर आघात सा लगा... यहाँ गुजरात में पालतू गौ भी मैंने बँधी हुई नहीं देखी. गायों का इतना सम्मान कि जगह जगह वृहत भूखण्ड को गोशाला के रूप में विकसित किया जाता है जहाँ वृद्ध और दूध न देने वाली गायें रखी जाती हैं.
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    मेरी अम्मा कहती हैं कि जिह्वा अपने कोमल स्वभाव के कारण और सहयोग के कारण ही बत्तीस कठोर दाँतों के बीच अपना साहचर्य स्थापित कर पाती है. कभी दाँतों के बीच कुछ अटक जाए तो वो तबतक चैन नहीं लेती जबतक उसे दाँतों के बीच से उसे निकाल नहीं लेती.
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    सचमुच वाणी का संयम आवश्यक है. ईद, गुझिया और स्कूल से विदाई.. एक अलग मिठास लिये है. विशेष तौर पर जून और नन्हा को भी, जिन्होंने गुझिया की मिठास में अपना "पसीना" बहाया!
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    फिर से संगीत साधना की शुभकामनाएँ! न जाने क्यों एक जुड़ाव सा हो गया है उससे... अपनी सी लगने लगी है! कहीं ऐसा न हो कि मैं भी अब उसकी जीवनचर्या के प्रत्युत्तर में हर दिन "एक जीवन एक कहानी की कहानी" न लिखना आरम्भ कर दूँ! :)

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  2. सचमुच जिह्वा का उतना दोष नहीं है वाणी के अपराध में जितना मन का है, उन सन्त का भी गौ माता के प्रति कोई द्वेष नहीं रहा होगा जब उन्होंने यह उदहारण दिया होगा, या हो सकता है कभी कोई गाय उनका खेत नष्ट कर गयी हो. गुजरात में गायों का इतना सम्मान होता है जानकर बहुत अच्छा लगा.

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