Thursday, September 25, 2014

अमितव घोष की किताब



पिछले दिनों दो कार्य उससे ऐसे हुए हैं जो आज ध्यान के समय आकर कचोट रहे थे. जून को दफ्तर में किसी ने तोहफा दिया जो नूना के काम में आने वाला था, पहले तो नूना ने आनाकानी की पर बाद में स्वीकार कर लिया, जून ने इसे लिया यह भी ठीक नहीं था चाहे देने वाला उसके बदले में अभी कोई लाभ नहीं चाहता, पर भविष्य में जब भी उनके मध्य व्यवहार होगा इस उपहार की बात दोनों को याद रहेगी. दूसरी बात कि कल एक महिला अपने बीमार पुत्र का हवाला देकर कुछ सहायता मांगने आई थी, देखने में अच्छी खासी लग रही थी, उसने पात्रता/ सुपात्रता का बहाना बनाकर उसे कुछ भी नहीं दिया जबकि उस दिन मीटिंग में कुछ खरीद लिया, यह पैसे उसके कितने काम आ सकते थे. ईश्वर ने उन्हें इस योग्य बनाया है कि वे सहायता कर सकते हैं फिर अपने दरवाजे पर आये याचक को जब वे कठोर हृदय बन दुत्कार देंगे तो ईश्वर के दरवाजे पर उनकी फरियाद अस्वीकार होती रहे इसमें कौन सी बड़ी बात है. कल ही प्रायश्चित के महत्व पर सुना था आज वह अवसर भी आ गया है. उस महिला का दुःख तो किसी न किसी ने दूर कर ही दिया होगा पर उसके मन की कचोट जाने कब दूर होगी.

कल इतवार के कारण दिन भर कुछ नहीं लिखा. सुबह सफाई में जुट गये, दोपहर को कुछ देर टीवी और शाम को सुहाने मौसम में भ्रमण. The Golden Palace भी पढ़ी, काफी रोचक किताब है. आज इस समय सुबह के सवा आठ बजे हैं. राम नवमी है आज. उतर भारत में अवकाश का दिन. कुछ देर पूर्व छोटे भाई का फोन आया, उसके बैंक में क्लोजिंग है सो जाना पड़ेगा. उससे बात करके ख़ुशी हुई, सहोदरों से बात करके एक विशेष प्रसन्नता का अनुभव होता है. आज प्रार्थना में देर तक बैठ सकी. सुबह समाचारों में सुना, देश भर में कस्टम अधिकारियों के यहाँ छापे पड़ रहे हैं, करोड़ों की सम्पत्ति जब्त की जा रही है. वर्षों तक सरकार आख मूंद कर बैठी रहती है जबकि उसकी आँखों के सामने ही सब घटित हो रहा होता है. आज नन्हे के लिए एक लडकी का फोन आया जिसने दोस्त कहकर परिचय दिय नाम नहीं बताया. आवाज उसकी पुरानी स्टूडेंट से मिलती-जुलती थी. नन्हे के स्कूल में सभी टीचर्स काफी गम्भीर हैं इस वर्ष, वह भी नियमित पढ़ने बैठता है. उनके वक्तों से आज काफी कुछ बदल गया है. वे किसी तरह रट कर पास हो जाते थे पर आज के बच्चे सीखते व समझते हैं तभी इतने इतने अंक भी पाते हैं, उस समय पढ़ाई का सिस्टम ही अलग था.

कल रात भर वर्षा होती रही, मौसम ठंडा हो गया है. सुबह-सुबह एक सखी का फोन आया, नन्हे के बारे में पूछ रही थी, कल स्कूल से आया तो ढीला था, टिफिन भी वापस ले आया था, सो गया, रात को दवा दी अब ठीक है. वह फिल्म देखने के लिए बुला रही थी, नहीं जाना था उसे, वह इतने अधिकार से बुला रही थी कि एक बार तो मन हुआ पर जून और नन्हे को देखकर नहीं गयी. इतने दिनों से ‘रूपकुमार राठौर’ के कार्यक्रम में जाने को उत्सुक थी अब वह शौक भी नहीं रहा है. परिवार के सभी सदस्य जहाँ न जा सकें वहाँ जाना कुछ जंचता नहीं. गजल सुनना और वह भी तरन्नुम में... एक नायाब अनुभव होगा. अभी उस कार्यक्रम में बहुत दिन शेष हैं सो उसके बारे में सोचकर ज्यादा समय और ऊर्जा व्यय करना व्यर्थ है. कल शाम उड़िया सखी आई, उसे गुलदाउदी के पौधे चाहिए थे, उसने कुछ पौधे नये गमलों में से भी दिए जिनके फूल उन्होंने भी अभी तक नहीं देखे हैं. नन्हा आज घर पर ही पढ़ाई कर रहा है. आज भी भाई से बात हुई, जून ने उससे घर में चल रहे कार्य के बारे में पूछा, लकड़ी का काम अभी तक चल रहा है. फर्श जो उनके सामने बन गया था उसकी घिसाई का काम भी अभी तक नहीं हुआ है. जितना जल्दी हो सके उन्हें इस मकान को बेच देना है. उसकी किताब की पांडुलिपि मिल जाने की खबर अभी तक नहीं मिली है, वक्त आने पर सभी कार्य अपने आप होते जायेंगे, उसे ईश्वर पर उसके कार्यों पर पूरा भरोसा है, इसका अर्थ यह नहीं कि वह भाग्यवादी है बल्कि यह कि वह धैर्यशील है. उसने ध्यान दिया लिखाई उतनी सुंदर नहीं है यह उसके मन की उद्व्गिनता का संकेत तो नहीं, यह बेचैनी ही तो जीवन का संकेत है !


2 comments:

  1. पहली बात उपहार देने, स्वीकारने, नूना के योग्य होने और उनके न स्वीकारने... पहली बार मुझे उस पूरी घटना में अस्पष्टता दिखाई दी. किसने दिया, किसने लिया, क्यों दिया और क्यों नहीं लेना चाहिये आदि प्रश्न इसलिये मन में आ रहे हैं कि सारी घटना सर्वनाम में लिखी है. संज्ञा के नाम पर एक बार जून और एक बार नूना का नाम आया है, बस!

    दूसरी घटना का दूसरा पहलू सुदर्शन की कथा "हार की जीत" का आज भी रेलेवेण्ट होना है. एक ऐसे ही व्यक्ति की मैंने मदद की थी कॉलेज के समय. गर्मी की तपती धूप में मैंने अपने रिक्शे के पैसे उसे दे दिये और ख़ुद पैदल पाँच किलोमीटर चलकर घर पहुँचा. और वो सज्जन मेरे दिये पैसों से (जिससे उन्हें दवा ख़रीदनी थी) सिगरेट पी गये. मैं उनके सामने गया और उन्हें घूरकर देखा. वो मेरी नज़रों का सामना नहीं कर पाया!

    भाई बैंक में और मैं भी.. यह एक और समानता!!

    रूपकुमार राठौड़ की ग़ज़लों से अधिक मुझे उनके गीत पसन्द हैं. गीतों के लिये उनकी आवाज़ बहुत ही सूट करती है! (मेरी व्यक्तिगत प्रतिक्रिया)

    ReplyDelete
  2. असुविधा के लिए खेद है...ध्यान दिलाने के लिए आभार...एक बार ऊपर की पंक्तियाँ पुनः पढ़ें, शायद बात बन जाये...

    ReplyDelete