Friday, September 19, 2014

चाणक्य नीति


अभी कुछ देर पूर्व उसके मन में यह विचार आया कि क्यों न अपने नित्य के डायरी लेखन को ऐसा रूप दे जो बाद में पुस्तक रूप में आने के योग्य हो जिसका नाम हो उसकी आध्यात्मिक डायरी और यह उसके उन प्रयासों का लेखा-जोखा हो जो वह एक बेहतर मानवी बनने के लिए करना चाहती है. कभी सफल होती है कभी नहीं भी होती. यह परिवार, समाज, राज्य और देश उससे भी अधिक मानव मात्र के प्रति उसके संबंधों को प्रदर्शित करे जिसमें दिन-प्रतिदिन में (बाहरी तथा आंतरिक दोनों) घटने वाले व्यापारों का निष्पक्ष विवरण हो, जो आज के समय का दर्पण हो, व्यक्तिगत स्तर के साथ साथ देश के स्तर पर भी जो महत्वपूर्ण घटा हो तथा जसका असर किसी न किसी रूप से उन पर पड़ने वाला हो. वह यह लिख रही थी कि नन्हा अस्पताल से चिकन पॉक्स का प्रतिरोधक टीका लगवा कर आ गया. कल ही उसके पापा ने कम्पनी के अस्पताल में बेहद महंगा यह टीका लगवाने का प्रबंध किया था. न जाने क्यों उसे इसके प्रति श्रद्धा नहीं है और उसने देखा कि न ही नन्हे को इसके लग जाने से कोई राहत का अहसास हुआ, भविष्य में क्या होगा कोई नहीं जानता, क्या यह टीका लगवा लेने के बाद कभी भी उसे चिकन पॉक्स नहीं होगा, इसकी गारंटी कोई नहीं दे सकता. जिस देश में आपरेशन करा लेने के बाद भी औरते माँ बन जाती हैं वहाँ ऐसा संदेह होना क्या स्वाभाविक नहीं ? कल नन्हे को दसवीं की किताबें मिल गयीं यह वर्ष उसके जीवन का एक महत्वपूर्ण वर्ष है और उनके पूरे परिवार का भविष्य इससे कहीं न कहीं जुड़ा है.

‘तहलका डाट कॉम’ नामक कम्पनी ने खोजी पत्रकारिता के द्वारा देश की सत्तारूढ़ पार्टी तथा गठ्बन्धन के दिग्गज नेताओं व रक्षा मंत्रालय के उच्च अधिकारियों को बेनकाब कर  देश में तहलका मचा दिया है. एक काल्पनिक कम्पनी के प्रतिनिधि बन कर कुछ पत्रकार छह महीनों तक नेताओं व अधिकारियों से बेरोक-टोक मिलते रहे, उनको सौदे कराने में सहायता करने के एवज में रिश्वत देते रहे, उनकी तस्वीरें उतारते रहे और किसी को भनक भी नहीं हुई. इससे यही अर्थ निकाला जा सकता है कि रक्षा संबंधी मामलों में पैसों का लेनदेन एक सामान्य घटना है, कि पार्टी फंड के नाम पर ऐसा तो हमेशा से होता आया है. प्रधान मंत्री और रक्षा मंत्री ने अपने टीवी भाषण में देशवासियों को विश्वास में लेने की कोशिश की है पर जनता जो पहले से ही राजनीतिज्ञों को भ्रष्टाचार में लिप्त मानती है, एक और नाटक की साक्षी बनी यह सवाल पूछेगी कि नेताओं का पेट इतना बड़ा क्यों बनाया ईश्वर ने ?

कल शाम कुछ मित्र परिवार मिलने आये, चर्चा का विषय तहलका ही बना रहा. यह भी सम्भव है, सरकार गिर जाये और दुबारा चुनाव हों पर भ्रष्टाचार का अंत तो इससे नहीं हो जायेगा. बातों-बातों में किसी ने कहा, चाणक्य शाम को जब अपने निवास पर लेखन कार्य करता था तो दरबार का कार्य होने पर राज्य की लेखन सामग्री का उपयोग करता था, अपना कार्य अपनी लेखन सामग्री से करता था. आज के मंत्री चाहते हैं, उनके परिवार का ही नहीं आने वाली पीढ़ियों का व्यय भी राज्य वहन करे.

आज नन्हे की नई कक्षा की पहली क्लास होगी, आज पूरे एक महीने की छुट्टियों के बाद  स्कूल खुला है. कल उसकी स्कूल ड्रेस की जाँच की तो पता चला पैंट छोटी हो गयी है और कमीज बेरंग, जून उसी समय नये कपड़े दिलाने ले गये, भाग्यशाली है वह कि आवश्यकता होते ही उसकी पूर्ति का साधन उसके माता-पिता के पास है, ऐसे हजारों-लाखों बच्चे हैं जो धन के अभाव में स्कूल तक नहीं जा पाते हैं. कल वे एक मित्र के यहाँ गये, उनके वृद्ध माता-पिता आये हुए थे. पिता अशक्त हो गये हैं, डायबिटीज के मरीज हैं लेकिन मन उतना ही सशक्त और इच्छालु है. दूसरों की बात समझना ही नहीं चाहते अपनी इच्छा यदाकदा जाहिर कर देते हैं, वरना चुप रहते हैं. माँ सामान्य हैं. पिछले दिनों कई वृद्धजनों से मिलने का अवसर मिला है. अंत समय तक जो समझदारी का परिचय दे, दूसरों की भी सुने, सदा अतीत में ही न विचरे, ऐसे कम ही मिले. उनकी अपनी वृद्धावस्था आदर्श हो ऐसी उसकी कल्पना है. शारीरिक रूप से स्वस्थ रहें इसका प्रयास अभी से करना होगा. आर्थिक रूप से किसी पर बोझ न बनें और ऐसी प्रवृत्तियों को प्रश्रय देना भी त्यागना होगा जो बुढ़ापे में तकलीफदेह होती है जैसे स्वाद के आधार पर भोजन का चुनाव, व्यायाम करने में आलस्य और व्यर्थ ही बोलने की आदत. आज गोयनका जी ने कहा, सम्यक शील और सम्यक समाधि होगी तभी सम्यक प्रज्ञा जागेगी और प्रज्ञा यानि प्रत्यक्ष ज्ञान, अपनी अनुभूतियों पर उतरा ज्ञान ही काम आता है, दूसरों का ज्ञान प्रेरणा भर बन सकता है अपर जीवन दृष्टि नहीं दे सकता.



2 comments:

  1. पहले कविताएँ, फिर कहानियाँ और अब रोज़नामचा लिखने और छपने की इच्छा सचमुच पुलकित करती है. और इन सभी विधाओं पर महारत हासिल है मेरी सखि को. और कुछ न सही कम से कम ख़ुद के लिए गर्व और संतुष्टि का भाव प्राप्त होता है.

    टीका लगाने से रोग प्रतिरोध की बात पर मुझे भी भरोसा नहीं होता. मैंने देखा है झोपड़पट्टी में सड़क किनारे पलते बच्चे, जो न टीका लगवाते हैं, न स्वच्छ खान-पान बरतते हैं, फिर भी स्वस्थ और सुन्दर दिखते हैं. जबकि हमारे बच्चे ज़रा सा ऊँच-नीच हो जाए तो बिस्तर पकड़ लेते हैं.

    तहलका की शुरुआत तो धमाकेदार रही, लेकिन अंत बदबूदार. यहाँ तक कि उसी सिलसिले की एक कड़ी पिछले वर्ष देश के सामने आई!

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    1. और कुछ नहीं तो खुद से परिचय तो प्रगाढ़ होता ही है और जिसने खुद को जान लिया उसने रब को जान लिया कहते हैं न...

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