Monday, October 13, 2014

ब्लैक फारेस्ट केक


मानव हर क्षण अपनी ही मूर्खता का शिकार होता रहता है, जीवन का ढंग यदि सुंदर करना हो तो इस जीवन को प्रश्रय देने वाले से नाता जोड़ना है. चलते, फिरते उठते, बैठते उसका स्मरण बना रहे तो विवेक जाग्रत रहेगा. ज्ञान ही संतुलित होना सिखाता है. सुख की चाहना को त्याग दें तो दुःख से घबराएंगे नहीं.” ये सभी विचार आज सुबह उसने  ‘जागरण’ में सुने. सुनना, पढ़ना तो जारी है पर गुनना कभी-कभी ही हो पाता है और आदर्शों पर चलना, वह तो टेढ़ी खीर है. सुबह जब बाबा जी आये तो एक सखी का फोन आ गया, वह खुश थी, उसके पतिदेव को एक प्रेजेंटेशन के सिलसिले में दिल्ली जाना है, शायद उन्हें पुरस्कार भी मिले. जून जब लंच पर आये तो चौबीस पैकेट दूध के ले आये जैसे कि अगले चौबीस दिन का उन्हें पूरा भरोसा है यहाँ अगले पल की खबर नहीं...फिर उसे याद आया वे लोग तो अन्य सामान भी महीने भर का एक साथ ले आते हैं. पिछले हफ्ते ही उसका अपनी पुरानी डायरियों में से कविताएँ उतारने का कार्य पूर्ण हो गया था, अब नई रचनी हैं, हर दिन एक नई कविता जो भावपूर्ण भी हो और जिसमें अंतरात्मा का प्रकाश झलके. उस दिन उन्नीस साल पुरानी डायरी में सरसों के फूलों पर किसी कवि की बहुत अच्छी एक कविता पढ़ी. कल नैनी का ब्लाउज सिलकर दे दिया तथा साथ ही अपना एक पुराना भी. अज वह नाहरकटिया गयी है. वेलवेट का काला ब्लाउज उसने पहना था, बाहर निकलने पर अच्छा कपड़ा पहनने का उसे शौक है. पूसी अभी तक नीचे नहीं उतरी है, आज भी उसे खाना ऊपर ही दिया.

श्वास-श्वास में सुमिरन चलता रहे, सारी गांठे खुल जाएँ तो मन मुक्त आकाश मन विचरण करेगा, जीवन में सदा ही वसंत ऋतु बनी रहेगी. आज भी पिछले कई दिनों की तरह वर्षा हो रही है, रात भर मूसलाधार वर्षा हुई. कल रात की आंधी वर्षा में तो पूसी ने अपने बच्चों की रक्षा कर ली पर बिलाव से नहीं बचा पायी. रात को उसकी करुण पुकार तथा चीत्कार सुनाई दी थी. सुबह उसने आवाज देने पर कोई प्रतिक्रिया नहीं की, अभी भी वहीं बैठी है. नैनी के बेटे ने सीढ़ी पर चढकर दूध-रोटी दिया तो गुस्सा कर रही थी. इस समय कितना दुःख व क्रोध होगा उसके मन में. जून आज मोरान गये हैं. कल से नन्हे के स्कूल में बीहू का अवकाश शुरू हो रहा है. बैसाखी का उत्सव भी आ रहा है. कल रात उसने स्वप्न में फिर माँ को अस्पताल में देखा, वह बेहद कमजोर लग रही थीं. आज दोपहर को उसने नैनी को स्टोर की सफाई के लिए बुलाया है. इन छुट्टियों में बाकी सफाई भी करनी है. नन्हे के कमरे के पर्दों की धुलाई, ओवन, कम्प्यूटर, हारमोनियम आदि के कवर भी धोने हैं. अलमारियां ठीक-ठाक करनी हैं और बुक केस तथा शो केस भी साफ करने हैं. स्वच्छता पवित्रता की निशानी है, रहने का स्थान स्वच्छ हो तो रहने वालों का मन भी साफ-सुथरा रहता है. जैसे जून का मन है निर्विकार, उन्हें कभी किसी पर टिप्पणी करते कम ही देखा है. कुछ न करते हुए भी वह शांत रहे सकते हैं एक उसका मन है हमेशा किसी न किसी उधेड़बुन में लगा हुआ.

ईश्वर उसे सद्बुद्धि दे ! अपने आत्मस्वरूप को व जान सके, यह जो संसारिक बुद्धि है जो ऊपर से ओढ़ी हुई है, उसे उतार फेंकें. आज नन्हा घर पर है, फरमाइश की है केक बनाने की, ‘ब्लैक फारेस्ट केक’ पहले भी एक दो बार बना चुके हैं वे. अभी एक सखी का फोन आया तो शाम को उसे आने का निमन्त्रण दे डाला, अब कोई केक की तारीफ करने वाला भी तो होना चाहिए. कल शाम वे स्वयं असमिया सखी के यहाँ गये थे, उसने पकौड़े, मूंगफली, पॉपकॉर्न और नमकीन के साथ चाय परोसी. उसकी बिटिया और बेटे से मिलकर ख़ुशी हुई. नन्ही सी बेटी बहुत प्यारी बातें करती है और बेटा बहुत अच्छी भावपूर्ण कविताएँ लिखता है English में. अभी अभी वे केक ओवन में पकने रख आये हैं. साढ़े दस हो चुके हैं, आज वह रियाज नहीं कर पायी, नन्हा जिस दिन घर रहता है, रूटीन बदल जाता है, अभी सुबह ही है और उससे बातें करके (उस समझाना टेढ़ी खीर है और एक एक काम के लिए कई-कई बार कहना भी ) जैसे सारी ऊर्जा चुक गयी है. नन्हे का यह साल बहुत महत्वपूर्ण है. कल से जून का दफ्तर भी बंद हो रहा है, वे कहीं घूमने जायेंगे. कल दोपहर उसने “हिंदी साहित्य का इतिहास तथा हजार वर्ष की हिंदी कविता” की भूमिका दुबारा पढ़ी. कविता को लिखा नहीं जाता यह खुद को लिखवा लेती है ऐसा वह पहले भी कहीं पढ़ चुकी है. पर वह तभी हो सकता है जब कोई पूरी तरह से भावमय हो चुका हो, संवेदनशील हो और सत्य का अन्वेषक हो. सच्चा कवि समाज को नई दिशा देता है. सत्य के छोटे से छोटे क्षण को ही उद्घाटित कर पाए इसी में कविता की सार्थकता है. जो असत्य है ऊपर से ओढ़ा है वह कविता का विषय नहीं हो सकता यह तो अंदर से निकलती है, नितांत स्पष्ट, शुद्ध और सच्ची वाणी !    


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