Tuesday, November 25, 2014

अज्ञेय की कविताएँ


दोनों देशों के विदेश मंत्रियों ने वार्ता को असफल नहीं बताया है, उम्मीद की किरण अभी भी रोशन है. कल रात से वर्षा हो रही है, मौसम कल जितना गर्म था आज उतना ही सुहावना है. बाबाजी आज कीर्तन करवा रहे थे. उससे पहले टैगोर की जापान यात्रा का एक संस्मरण सुनाया. गुरूमाँ ने ऐसे नृत्य का जिक्र किया जो किया नहीं जाता, हो जाता है. बहुत दिनों से उसके साथ ऐसा नहीं हुआ है शायद आज शाम को ही इसका अवसर आए, क्योंकि वर्षा यदि थमी नहीं तो घर पर ही टहलना होगा जो उसके मामले में कैसेट लगाकर थिरकना होता है. कल दोनों पत्र भी लिखे और दीदी को जवाब भी दिया है. कल रात छोटी बहन व पिता से बात हुई. आज दोपहर स्टोर की सफाई करनी-करवानी है.

सुबह-सवेरे भजन जब अपने आप होने लगे, मन परमेश्वर की स्मृति में सहज रूप से लगा रहे, उसे लगाना न पड़े तो ही जानना चाहिए कि प्रेम का अंकुर फूटा है. चारों ओर उसी का वैभव तो बिखरा है, उसी की सृष्टि का उपयोग वे करते हैं पर उसे भुला बैठते हैं. जबकि वह हर क्षण साथ है, दूर नहीं है. बस एक पर्दा है जो उन्हें एक-दसरे से अलग किये हुए है. वह हर क्षण श्रद्धा का केंद्र बना है, हर श्वास उसकी कृपा है. मन यदि हर क्षण उसी को अर्पित रहे तो इसमें कोई विक्षोभ आ भी कैसे सकता है. संसार की बातें उत्पन्न करने वाला भी वही है. यही आराधना ही राधा है, जिसके माध्यम से कृष्ण को पाया जा सकता है. वह आत्मा है, जिसके प्रसाद के बिना मन आधार हीन होता है, बाहर का सुख टिकता नहीं, यह अनुभव बताता है. उस एक से प्रीति हो जाने पर परम सुविधा मिलती है जो कभी छूटती नहीं, अपने उच्च तत्व का साक्षात्कार करना यदि आ जाये तो यह जो गड्डमड्ड, खिचड़ा हो गया है, देह के अस्वस्थ या मन के दुखी होने पर स्वयं को अस्वस्थ या दुखी मानना, छूट जायेगा. जैसी दृष्टि होगी यह जगत वैसा ही दिखेगा. अँधेरी रात में एक ठूँठ को एक व्यक्ति चोर समझता है, दूसरा साधू और तीसरा रौशनी करके उसकी असलियत पहचानता है. उन्हें भी इस जगत की वास्तविकता को पहचानना है. न इससे आकर्षित होना है न ही द्वेष करना है. तभी वे मुक्त हैं.

आज अमावस्या है. सुबह से ही मन में उत्साह है. एक वक्त के भोजन में फलाहार लेना है आज, जितना हो सके उतना व्रत पालना ही चाहिए. कल दोपहर और शाम को अज्ञेय की कविताएँ पढ़ीं, अनुपम हैं और भावना के उस लोक में ले जाती हैं जहाँ प्रेम है, शरद की चाँदनी, टेसू के फूल हैं, जहाँ इष्ट की आराधना है, “मैं संख्यातीत रूपों में तुम्हें याद करता हूँ” अज्ञेय की कविता अंतर को गहरे तक छू जाती है. अभी-अभी गुरू माँ ने कहा ईश्वर को प्रेम करने का अर्थ संसार का विरोधी हो जाना नहीं है. जब जीवन में प्रेम होता है, तब वह सभी के लिए होता है. उसमें समष्टि समा जाती है. ईश्वर, प्रकृति, मानव उससे कुछ भी अछूता नहीं रहता, प्रेम में महान ऊर्जा छुपी है, वह आस-पास की हर वस्तु को एक नये दृष्टिकोण से दिखाती है. उसे लगता है, मन को एकाग्र करना हर वक्त संभव नहीं पर यह सम्भव है कि इस बात का बोध रहे कब मन एकाग्र है और कब एकाग्र नहीं है, और कब एकाग्र नहीं है ? जब मन गुण ग्राही होता है, बुरी से बुरी परिस्थिति में भी कोई न कोई अच्छाई खोज लेता है, तब वह एकाग्र होना सीख लेता है. उसने प्रार्थना की, आज का दिन ईश्वर के प्रति समर्पित हो, दिन भर वह उसकी याद अपने मन में बनाये रखे, सभी के प्रति मंगल कामना से मन युक्त रहे !   



3 comments:

  1. आज एक लम्बे अंतराल के बाद आगमन हुआ और माहौल भी बड़ा आध्यात्मिक सा ही लग रहा है. अज्ञेय को कभी सीरियसली पढने का अवसर नहीं मिला... कभी इच्छा भी नहीं हुई.. न जाने क्यों!
    एक और मज़ेदार बाद! अभी दो तीन दिन पहले आपकी शक्ल जैसी एक महिला दिखीं फेसबुक पर जिनका नाम भी अनिता था... बस अंतर इतना था कि आप अनिता सचदेवा हैं, जबकि वो अनिता निहलाणी थीं!

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  2. सम्भव हो तो, अज्ञेय का "शेखर एक जीवनी "अवश्य पढ़ें, सचमुच यह बात तो बहुत मजेदार है...आभार !

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  3. बहुत लोगों से बहुत प्रशंसा सुनी है "शेखर एक जीवनी" की. लेकिन कहा ना, कभी सन्योग ही नहीं हुआ. देखता हूँ!

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