Friday, November 28, 2014

नंदन- बच्चों की पत्रिका


जिसके हृदय में ईश्वर का प्रेम उदित हो जाता है, वह पारस हो जाता है. वह जहाँ निवास करेगा वे स्थान तीर्थ हो जाते हैं. भक्त के विचार इतर विचारों से अलग हो जाते हैं, यदि मन में सांसारिक विषयों का ही चिन्तन चलेगा तो बातचीत में वही प्रकट होगा, बातचीत का विषय क्या है इसको देखकर ही अंतर्मन में चलने वाल चिन्तन प्रकट होता है. वाणी का संयम तभी सम्भव है जब विचारों का संयम हो, चिन्तन सही दिशा की ओर हो ! आज बाबाजी ने देश की गरिमा की ओर ध्यान खीँचा साथ ही उन स्वार्थी लोगों की तरफ भी, जिन्होंने शत्रुओं को भेद बताये और निज देश के मान-सम्मान का सौदा किया, जब बाड़ ही खेत को खाने लगे तो कौन बचा सकता है ? इसी तरह जब मानव स्वयं ही निज सुख का हनन करे, नियमों का पालन न करे तो हानि स्वयं को ही होगी. आज मौसम सुहावना है, बदली बनी है, हवा शीतल है. कल दोपहर बाहर लॉन में बैठकर एक कविता लिखी, भोगा हुआ यथार्थ ! कल ही जून ने आखिर प्रकाशक से बात की, नन्हे का आज हिंदी का इम्तहान है, कल शाम उसे पढ़ाती रही, सांध्य भ्रमण का समय नहीं मिला. शनिवार को जून जा रहे हैं, फिर पूरा एक हफ्ता उन्हें अकेले रहना होगा, पुस्तकें और लेखन उसका साथ देगा.

कल अंततः उसकी पुस्तक प्रूफ रीडिंग के लिए आ गयी. नदंन के सम्पादक श्री जयप्रकाश भारती जी ने भूमिका लिखी है, जून के बनारस से लौट आने के बाद ही वे उसे वापस भेजेंगे. रात को ठीक से सो नहीं पायी, अभी भी कभी-कभी मन कहा नहीं मानता. नन्हे का आज अंतिम इम्तहान है. उसके दो पेपर ठीक हुए हैं, दो सामान्य और आज का भी सामान्य होने की आशा है क्योंकि सुबह भी पढ़ रहा था. अगले सप्ताह से ज्यादा गम्भीर होने की जरूरत है. गुरू माँ ने कहा कि भक्ति योग के अनुसार मानव बूंद है, ईश्वर सागर है और वेदांत के अनुसार बूंद ही सागर है, अर्थात पहले के अनुसार सागर में बूंद और दुसरे के अनुसार बूंद में सागर ! कल उसने गुलदाउदी की पौध गमलों में लगा दी, अभी भी कुछ पौधे शेष हैं जिन्हें जमीन में लगाने का विचार है. बाबाजी ने आज पानी के प्रयोग बताये, सुबह उठकर सवा लीटर पानी पीना है और पैंतालीस मिनट तक कुछ खाना नहीं है. दोपहर व रात के भोजन के बाद डेढ़-दो घंटे तक पानी नहीं पीना है. आज भी मौसम ठंडा है, कल शाम काफी वर्षा हुई. वर्षा रुकने पर वह लाइब्रेरी गयी, दीपक चोपड़ा की एक पुस्तक लायी Perfect Health. जून को हल्की सर्दी है, वैसे वे सभी स्वस्थ हैं पिछले कई महीनों से. जून को प्राणायाम से लाभ हुआ है उसे ईश्वर के स्मरण से. यह अहसास कि कोई है जो हर पल उनके साथ है और उनका मनोबल उच्च करता है, सत्मार्ग पर ले जाता है, अपने आप में ही एक उपहार है, वे भटक नहीं रहे हैं, इतना सजग तो उन्हें रखता है.

आज जून कामरूप एक्सप्रेस से गोहाटी जायेंगे. सुबह साढ़े चार बजे वे उठ गये, पांच बजे उसे उठाया. नन्हे और उनके जाने के बाद वह संगीत की कक्षा में गयी, राग हमीर सिखाया अध्यापिका ने. अगले हफ्ते एक दिन दोपहर को भी जाएगी ऐसा उसने तय किया है. घर आकर भोजन की तयारी की, कपड़े प्रेस किये. ध्यान अभी नहीं किया है, आज सुबह बाबाजी से भी नहीं मिल सकी. कल शाम बहुत दिनों बाद दो मित्र परिवार मिलने आये. आज सुबह ससुराल से फोन आया, आसाम की चाय मंगवाई है, नन्हे के लिए राखी भेजी है. अगले कुछ दिन उसके पास वक्त ज्यादा होगा, ध्यान, संगीत और अध्ययन-लेखन के लिए. जून से मिलकर घर में सभी खुश होंगे और जून उनसे मिलकर,  उनकी याद तो आयेगी ही... !




2 comments:

  1. आज शुरुआती पंक्तियाँ पढते ही अपने आप मुँह से निकला - मन मिर्ज़ा तन साहिबाँ!
    उसकी कविताएँ अब पढने को मिलने लगी हैं.. लेकिन मेरी मसरूफियात मेरा सारा समय निगल जाती है!
    उसकी पुस्तक पढने की बड़ी इच्छा है साथ ही उनकी समीक्षा लिखने की भी, क्योंकि उसके और मेरे बीच इतनी समानताएँ पाईं हैं मैंने कि लगता है उसकी अभिव्यक्ति भी मुझ सी ही होगी!
    नन्हे को मेरी शुभकामनाएँ...
    आसाम की चाय आसाम में मिलती है क्या? मैं तो यह सोचता था कि वे सब की सब बाहर भेज दी जाती होंगी. जैसे गोवा का अल्फ़ांसो आम शारजाह में मिल जाता था, लेकिन वहाँ नहीं मिलता था.

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  2. एक ही मूल से आये बन्दों में समानता होंना तो स्वाभाविक है न..असम में भी सबसे अच्छी वाली चाय तो नहीं ही मिलती...आभार इस भावपूर्ण टिप्पणी के लिए..

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