Friday, November 28, 2014

पुष्प सज्जा की कला


जून घर पहुंच गये हैं, स्टेशन से ही उन्होंने फोन किया. उनके न होने से एक खालीपन तो है पर एक नयी ख़ुशी भी है कि उनके आने के बाद वे पहले से ज्यादा करीब होंगे, दूरियां निकटता को बढ़ा देती हैं. घर में सब ठीक होंगे उसे व नन्हे को याद कर रहे होंगे. कल शाम क्लब की एक सदस्या ने फोन किया, इस बार मीटिंग में पुष्प-सज्जा उसे एक सखी के साथ मिलकर करनी है. इस समय दोपहर के सवा बजे हैं, प्रूफ रीडिंग का काम हो गया है. सुबह पांच बजे वे उठ गये थे, नन्हा भी वक्त पर तैयार हो गया था, उसके कपड़ों को ठीक करना है, उसकी आलमारी भी ठीक करनी है. आज सुबह उसकी पिछले वर्ष की किताबें उठाकर देखीं तो पता चला दीमक ने घर बना लिया था. कल छोटी बहन का जन्मदिन है, कल उसे फोन करेगी, दीदी का फोन आए कई दिन हो गये हैं, बड़े भाई का भी, अब राखी के दिन उनसे बात होगी. सभी सुखी रहें यही उसकी कामना है. अड़ोस-पड़ोस में सभी को अमरूद भिजवाने हैं. उसने सोचा, नैनी के बेटे से तुड़वा कर यह कार्य भी सम्पन्न कर लेना चाहिए.

अभी-अभी छोटी बहन को जन्मदिन की बधाई दी, उसने कहा, पत्र लिखा है. भांजी और पिता से भी बात हुई. पिता ने भी पत्र लिखा है, उन्हें उसने लिखा था, माँ के पत्रों की कमी वह महसूस करती है, अभी तक उसके अंतर्मन में मोहमाया के बंधन बहुत गहरे हैं. कल रात दीदी का भी फोन आया. सुबह जून का भी, वह मित्र के बेटे की पढ़ाई के बारे में बात करने उसके यहाँ जाने वाले हैं. उनकी दिनचर्या बेहद व्यस्त रहेगी वहाँ. गुरू माँ अमीर खुसरो का लिखा एक गीत(जो गुरू की प्रशंसा में है) गा रही हैं, उनकी बातें दिल को छू जाती हैं, उनसे मिलने की इच्छा हृदय में उत्पन्न होने लगी है और वह जानती है ईश्वर उन्हें एक न एक दिन अवश्य मिलाएगा. वे दोनों उसी के द्वारा तो बंधे हैं.

“यह दिल है मेरा मन्दिर, और मन यह पुजारी है,
मन्दिर में जो रखी है, मूरत वह तुम्हारी है”

अगस्त का शुभारम्भ ! कल रात जून का फोन आया, वहाँ शाम से ही बिजली नहीं थी, घर में बैठे-बैठे वह परेशान हो रहे थे, उन्हें उसने अपनी फरमाइशें बता दीं, एक तो दीपक चोपड़ा जी की सलाह पर चांदी का टंग क्लीनर और दूसरी एक ड्रेस. कल शाम ही उसने तय किया है कि अब घर पर भी अच्छे वस्त्र पहनेगी, चालीस के बाद वैसे भी जीवन कितना रह ही जाता है जो चीजों को संभाल-संभाल कर रखा जाये. घर में भी यदि उसी तरह संवर कर रहा जाये तो अपना साथ खुद को तो भला लगेगा ही घर के अन्य लोगों पर भी इसका अच्छा असर पड़ेगा, सो पुराने वस्त्रों को अलविदा ! कल शाम की मीटिंग अच्छी रही, कार्यक्रम सभी अच्छे थे. पुष्प सज्जा का अनुभव भी अच्छा रहा. अभी एक सखी से मिलकर आ रही है जिसकी माँ घातक बीमारी से ग्रस्त हैं, अस्पताल में हैं. आज सुबह बाबाजी व गुरू माँ से भी मुलाकात हुई, उनकी वजह से ही उसका मन समता को पा सका है, ऐसा लगता है कि जीवन में आने वाली किसी भी स्थिति का सामना वह कर सकती है. ईश्वर उसके विश्वास की रक्षा करता है !



2 comments:

  1. एक बार फिर शुरुआती लाइनें पढकर एक सूफ़ी गीत याद आ गया - मेरा पिया घर आया!
    सही है दूरियाँ, नज़दीकियों की खुशियाँ बढा देती हैं!
    कामों की इतनी लम्बी फेहरिस्त देखकर ही थकान होने लगी... आख़िर में परमात्मा के भरोसे की बात पर अपनी एक कविता याद हो आई!!
    मोहमाया से छूट गया इंसान तो समाधि उपलब्ध हो जाती है... यही खींचतान ही तो जीवन है!

    ReplyDelete
  2. सचमुच समाधि पाए बिना चैन नहीं मिलता..किसी को जीते जी तो किसी को मृत्यु के बाद...

    ReplyDelete