Thursday, December 11, 2014

यात्रा का आरम्भ


आज की सुबह की शुरुआत सामान्य हुई, सुबह ही संगीत कक्षा में जाना था. लौटी तो साधना शुरू की, दो फोन आये, बीच में उठकर जाना पड़ा. अब उन्होंने तय किया है शनिवार को शाम चार बजे वे साधना करेंगे, जैसे इतवार को वे दो मित्रों के साथ करते हैं. अज सुना था, जिसका प्रत्येक कर्म ईश्वर को समर्पित है, वह हर क्षण उससे जुड़ा है लेकिन उनका हर कर्म प्रभु के लिए कहाँ हो पाता है, अपनी ख़ुशी के ही लिए वे कर्म करते हैं. उसे लगता है, उसके फल की प्राप्ति में सम रहना ही कर्म ईश्वर को अर्पित करना है. मानव को अपनी अयोग्यता के विषय में ज्ञान उतना नहीं होता जितना योग्यता के बारे में वह सचेत रहता है, बल्कि वास्तविकता से कहीं ज्यादा ही सोचता है. अपने अवगुणों के प्रति सजग रहना ही उन्हें निकालने की ओर पहला कदम है. सही-गलत व उचित-अनुचित का भेद करना इतना सहज नहीं है लेकिन धर्म का तत्व तर्क-वितर्क करके प्राप्त नहीं किया जा सकता. यह तो महापुरुषों का अनुसरण करने से ही मिलता है.

आज उपवास का दिन है, यह विचार स्वास्थ्य की दृष्टि से ही उसे आया था पर इस समय लग रहा है ईश्वर ने ही उसे यह प्रेरणा दी होगी. वैसे भी कोई भी कार्य अकारण नहीं होता, अदृष्ट का हाथ तो इसमें रहता ही है. टीवी पर ‘आत्मा’ आ रहा है, जनक राजा होते हुए भी विदेह भाव में रहते थे, उनको छूकर गयी हवा ने पीड़ितों के दुखों को कम कर दिया तो वे नर्क में आकर रहने को भी तैयार हो गये. लोक कल्याण की भावना की पराकाष्ठा थी यह, उन्हें भी अपने जीवन में पहले स्वयं को उन्नत करना है फिर अपनी शक्ति का उपयोग अपने इर्दगिर्द की उन्नति में लगाना है. परसों उसकी यात्रा का शुभारम्भ है, तीन दिनों की यह यात्रा सम्भवतः उसके जीवन में एक सुखद मोड़ साबित होगी !

“मानव जन्म सर्वोत्तम है, मानव ऊँचाई के शिखर पर पहुंच सकता है. मानव ही ब्रह्म को जान सकता है. वह अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है, वह ज्योतियों की ज्योति है. वह अज्ञान के अंधकार से दूर जा सकता है. जो उसका आत्मा है वह सुख के केंद्र है मानव आसुरी तथा दैवीय अंश का सम्मिश्रण है. जब कोई आत्मा के निकटतर होता है, दैवीय अंश उसमें प्रमुख रूप से प्रकट होता है”. आज उपरोक्त बातें ‘जागरण’ में सुनीं. इस समय दोपहर के पौने तीन बजे हैं, उसकी तैयारी सम्पन्न हो चुकी है. एक बैग तथा एक छोटी से अटैची. मन में उत्साह है, यात्रा का उद्देश्य बहुत पवित्र है. सद्गुरु के दर्शन होंगे, सद्गुरु जो ईश्वर का प्रतिनिधि है. आजकल ध्यान में अति आनंद आता है, मन अद्भुत शांति से भर जाता है. अगले तीन दिन यह डायरी उसके पास नहीं रहेगी लेकिन दूसरी छोटी डायरी में गोहाटी के अनुभव जरूर लिखेगी. शाम को एक मित्र परिवार आएगा, उनका नया बुककेस देखने. बैठक में थोड़े फूल लगाने हैं और नाश्ता तैयार करना है. शाम को किसी वक्त एक और सखी का फोन भी आएगा. कल नन्हे की अंतिम  परीक्षा थी. उनका कम्प्यूटर अपने आप ही ठीक हो गया जैसे उस दिन खराब हुआ था. ईश्वर उसकी पुकार सुनते हैं.  



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