Thursday, February 5, 2015

आम के बौर की गंध


आज सुबह कराची वाले संत से ये सुंदर वचन सुने, “जैसे वे अपना कीमती सामान सुरक्षित रखते हैं वैसे ही अपना मन तथा बुद्धि कृष्ण के भीतर सुरक्षित रख के निश्चिन्त हो जाना चाहिए. अन्यथा मन के चोर उसे ले जायेंगे  अथवा मन अपनी चंचलता के कारण ही भटक जायेगा, खो जायेगा ! मन जब कोई संकल्प करता है तो बुद्धि उसके पक्ष या विपक्ष में निर्णय लेती है. इन्द्रिय रूपी अश्व और मन रूपी लगाम यदि ईश्वर को समर्पित बुद्धि के हाथ में हो जीवन सही मार्ग पर आगे बढ़ेगा !” इस समय पौने दस बजे हैं, साढ़े आठ बजे तक जब तक जागरण सुना और उसके बाद कुछ देर तक तो उसका सुमिरन चलता रहा, फिर व्यायाम, भोजन, दो सखियों से फोन पर बाते करने में विस्मृत हो गया, लेकिन अब पुनः उसी का स्मरण हो आया है. पड़ोसिन की तबियत ठीक नहीं है, उसे दिल की बीमारी है जो कभी-कभी बढ़ जाती है, उससे मिलने जाना है.

भक्ति का अभ्यास करना होता है इसे ही अभ्यास योग या साधना कहते हैं. कृष्ण उन्हें आश्वासन देते हैं कि यदि उनकी ओर जाने का लगाता प्रयास करते हैं तो एक न एक दिन अवश्य सफल होंगे ! भगवद गीता में कृष्ण कई अध्यायों में भक्तियोग पर चर्चा करते हैं पर बारहवें अध्याय में वह स्पष्ट आमन्त्रण देते हैं. आज अभी कुछ देर पूर्व छोटे भाई का फोन आया उसे उनकी भेजी पुस्तकें मिल गयी हैं. ईश्वर हर क्षण उनके साथ है ! कल शाम उसे इसका अभूतपूर्व अनुभव हुआ ! आज मौसम बेहद अच्छा है, ठंडी, सुहानी, शीतल हवा बह रही है जिसमें आम के बौर व फूलों की सुगंध है ! सुबह पांच बजे से कुछ पहले ही उठी, क्रिया की, मन थोडा उद्व्गिन था लेकिन हर पल उसे अपने मन के भाव का बोध रहता है सो कोई भी अनचाहा भाव टिकने नहीं पाता. कृष्ण की स्मृति उसे हटा देती है. आज वह पुरानी संगीत अध्यापिका के यहाँ भी जाएगी, उन्हें पुस्तक देनी है और उनके गोद लिए पुत्र से मिले भी बहुत दिन हो गये हैं. एक और परिचिता को फोन किया पर वह मिली नहीं, कल पता चला कि उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं है. मन में संसार समाया है जहाँ केवल कृष्ण होने चाहिए. हो सकता है वही उसे प्रेरित कर रहे हों. आज कादम्बिनी की समस्यापूर्ति का हल भी पोस्ट किया है.

आज नन्हे की अंतिम परीक्षा है. सुबह से ही वह व्यस्त है. पांच बजे उठी, उसके पूर्व पौने चार बजे जी नींद खुल गयी थी. तिनसुकिया स्टेशन से जून के एक सहकर्मी का फोन आया था, उनकी ट्रेन तीन बजे ही पहुंच गयी थी पर कार तब तक नहीं पहुंची थी. जून की नींद रात को भी डिस्टर्ब रही, सो नन्हे को छोड़ने जाते समय उनके सर में दर्द था. उसका भी हाल कुछ ठीक नहीं रहा. बेवजह ही नैनी पर क्रोध किया, अपने भीतर का उठता क्रोध का आवेग बहुत अजीब लग रहा था, आश्चर्य भी हुआ कि यह था उसके भीतर, जो भीतर न हो वह महसूस कर भी कैसे सकते हैं, फिर कृष्ण के नाम का जप किया, कृष्ण हर संकट में उसकी रक्षा करते हैं. दो परिचितों के फोन आये, दोनों को नन्हे की किताब-कापियों में से कुछ चाहिए. आज सुबह भैया-भाभी, दीदी-जीजाजी से बात हुई, दीदी AOL का कोर्स नहीं कर पा रही हैं, खैर..उन्हें भविष्य में कभी पत्र लिखकर अपने मन की बात कहेगी. पिताजी के यहाँ आने की उम्मीद उसे अब भी है, मई या जून में सम्भवत वह यहाँ आयेंगे. आज ‘आत्मा’ में गीता का बारहवां अध्याय ही चल रहा था. कृष्ण उन्हें आकर्षित करते हैं पर संसार की ओर वे खिंचे चले जाते हैं, उनकी वृत्तियाँ बहिर्मुखी हैं. अन्तर्मुखी होकर कृष्ण को अनुभव करने का प्रयास भी नहीं करते, जबकि उसका आश्रय लिए बिना इस भवबंधन से मुक्ति पाना असम्भव है. उसका मन कृष्ण का आश्रय ले चुका है और अब इससे उसे कोई नहीं अलग कर सकता !
   
 



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