Friday, April 10, 2015

महाप्रभु का जीवन


गुरू रूपी कीली से कोई जुड़ा रहे तो चक्की में पिसने से बच जायेगा. गुरू की कृपा रूपी छाता लेकर वह वर्षा का भी आनंद ले सकता है. गुरु की कृपा ही तो है जो उसे ध्यान में तारे और चाँद दिखे, कितना अद्भुत दृश्य था, पूर्णिमा का चाँद बादलों से झांक रहा था. मन एक अद्भुत शांति से भर गया है. आत्मभाव में स्थित रहते हुए कितना सुख है, देह व मन, बुद्धि से स्वयं को संयुक्त करके वे व्यर्थ ही अपने को सुखी या दुखी मानते हैं, जबकि संसार की किसी भी वस्तु में ऐसी सामर्थ्य नहीं जो आत्मा को अल्प कष्ट पहुँचा सके. समस्याएँ आती भी रहें पर हृदय में उसकी स्मृति है तो वह दुःख दुःख नहीं लगता. नन्हे का स्वास्थ्य ठीक नहीं है, जून उसे लेकर होमियोपैथिक डाक्टर के पास जाने वाले हैं. बीमारी पहले नहीं थी बाद में भी नहीं रहेगी सो उसके लिए परेशान होने की क्या जरूरत है, नन्हे को यही समझाना है !

जीवन में ताजगी चाहिए तो जो कुछ उसे मिला है उसे बाँटना चाहिए. तितलियाँ, फूल, खुशबू और प्रेम को तिजोरी में नहीं रख सकते. बहता हुआ पानी ही स्वच्छ रहता है. हवा एक तरफ से प्रवेश करे और दूसरी ओर से निकलने की भी व्यवस्था हो तो सब कुछ ताजा रहेगा. देह तो किसी के वश में है नहीं, यह अस्वस्थ भी होगी और इसका नाश भी होने वाला है, तो कब तक इसके पीछे दौड़ते रहेंगे जबकि सदा रहने वाला अविनाशी मुक्त आत्मा उसके साथ है बल्कि वह स्वयं ही है. कल शाम उसने भागवद् का प्रथम अध्याय पढ़ना आरम्भ किया है जो पहले नहीं पढ़ पायी थी. महाप्रभु चैतन्य के जीवन चरित पर आधारित रचनाएँ भी पढ़ीं. वे तो साक्षात् कृष्ण थे पर उनमें से हरेक को कृष्ण को स्वयं पाना है, उसकी ओर हर कदम स्वयं बढ़ाना है. कोई सद्गुरु, कोई महात्मा  और ईश्वर स्वयं भी उनकी उतनी ही मदद कर सकते हैं जो पहला कदम बढ़ाने की प्रेरणा दे, उसके आगे तो उन्हें स्वयं ही चलना होगा.

aol का हर बृहस्पतिवार को होने वाला साप्ताहिक सत्संग आज उनके यहाँ है. उसके मन में कुछ बातें हैं जो वह सभी से कहने चाहती थी, उसने सोचा लिख कर रखेगी ताकि कोई बात छूट न जाये...उसे सद्गुरु की उपस्थिति का आभास हो रहा था, सभी के रूप में मानो परमात्मा भी वहीं थे. उसने लिखा..वह जो कुछ कहना चाहती है उसका एकमात्र कारण प्रेम है, सद्गुरु और ईश्वर के प्रति प्रेम..उन सभी का आपस में प्रेम. पहली बात- ॐ के गायन से पूर्व सभी दो बार गहरी श्वास लें, तीन बार ॐ कहने के बाद दो सामान्य श्वास लेने के बाद भजन शुरू करेंगे. हर भजन के मध्य दो मध्यम श्वास लेकर नया भजन होगा. अंतिम भजन के बाद सभी अपने स्थान पर रहेंगे और प्रसाद वितरण के लिए एक या दो व्यक्तियों से अधिक की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए. बेसिक कोर्स शुरू हुए एक वर्ष हो चुका है, इस कोर्स से जीवन की एकरसता टूटी थी जीवन में नये उत्साह को अनुभव किया था अब इस सत्संग को भी एकरस न बना लें, यह प्राणों को उत्साह से भरता है. सप्ताह दर सप्ताह मन को निर्मल करता चला जा रहा है, इसका पूरा लाभ तभी मिलेगा जब पूरी तरह मन को इसके साथ जोड़ें. भजन गाते समय मन ईश्वर के प्रति गुरू के प्रति कृतज्ञता के भावों से भरे रहे. सर्वप्रथम अपने-अपने स्थान पर उनका मानसिक पूजन करें और हर भजन के बाद भी नमन करें.

पिछल दो दिन नहीं लिख सकी. शरीर अस्वस्थ हो तो मन भी कैसा हो जाता है. ऐसा नहीं है कि शेष सभी कार्य भी छूट गये हों बस यही एक छूटा अर्थात मन का काम. लिखना तो तभी सम्भव है जब मन किसी एक विचार पर टिके. आज अपेक्षाकृत शरीर ठीक लग रहा है. शाम को एक सखी के यहाँ जाना है, उसे डिबेट में थोड़ी मदद चाहिए. आज सुबह वे समय से उठे. जून आजकल पूरे फॉर्म में हैं. उन्हें अपने काम में इस तरह जुटे देखकर अच्छा लगता है, उतनी ही तन्मयता से योग भी करते हैं. कोर्स किये उन्हें पूरा एक वर्ष हो गया है और कोई भी उनके जीवन में ए परिवर्तन को देख सकता है, जीवन को एक उद्देश्य मिल गया है. मन को एक आधार, तन को साधन और आत्मा को उसकी पहचान. वे पहले से कहीं ज्यादा खुश रहते हैं, ज्यादा स्पष्ट सोच सकते हैं. वस्तुओं को उनके वास्तविक रूप में देखने लगे हैं. दूसरों के प्रति उनका व्यवहार अधिक स्नेहपूर्ण हो गया है. क्रोध उनके लिए अजनबी हो गया है. सद्गुरु का ज्ञान भीतर टिक रहा है. यह उनकी कृपा है. उनके प्रति कृतज्ञता जाहिर करने का सबसे अच्छा उपाय यही है है कि उनके विचारों पर मनन करें जीवन में उतारें. धर्म जो पहले मात्र थ्योरी था अब प्रेक्टिकल हो गया है. उसने प्रार्थना की, जीवन सत्कर्मों से परिपूर्ण रहे और प्रेम का अविरल स्रोत जिसका पता सद्गुरु ने बताया है कभी सूखने न पाए !


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