Friday, June 19, 2015

अनुभव की गूंज


परसों रात को लगभग साढ़े दस बजे होंगे जब सद्गुरु के दर्शन निकट से प्राप्त हुए, ‘अब खुश हो’ ये तीन शब्द उन्होंने उससे कहे, जब उसने एक हाथ से उनका पांव छूने का प्रयत्न करते हुए उनकी आँखों में झाँका. कैसी भ्रमित कर देती है उनकी उपस्थिति, वह कुछ भी न बोल पायी, मात्र सिर हिला कर मुस्करा दी, पर उनकी दृष्टि भीतर तक छू चुकी थी, उसने अपना काम कर दिया था. बाहर निकलते-निकलते तो मन भावों से इतना भर चुका था कि एक अनजान महिला ने, जो सत्संग में उसे देख चुकीं थी, कहा, जय गुरुदेव तो वह उनके गले लगकर रोने लगी. आसपास के लोगों को अजीब लगा होगा स्वयं वह महिला भी पूछने लगी कि आपने ऐसा क्यों किया, पर इन बातों का कोई उत्तर नहीं होता, बस मौन रह जाना पड़ता है. होटल वापस आकर चुपचाप सो गयी. ऐसी मधुर नींद आई जो सुबह साढ़े चार बजे खुली. क्रिया के दौरान अनोखा अनुभव हुआ, जैसे कोई अंतर्मन में प्रविष्ट होकर कुछ समझा रहा हो, तुम वही हो, वही तो हो, तुम्हीं वह हो की गूँज भीतर उठने लगी. वह यह मानकर गोहाटी गयी थी कि इस बार उसे सद्गुरु में ईश्वर के दर्शन होंगे. उसका विश्वास दृढ़ कराने के लिए ही ऐसे दुर्लभ अनुभव कराए. पहले से ही विश्वासी मन अब पूरी तरह ठहर गया है. उस क्षण से जिस भाव समाधि में डूबा है वह अभी तक उतरी नहीं है, रह-रह कर नेत्र भर आते हैं. ट्रेन में लेटे हुए आँखें बंद करने पर न जाने क्या-क्या दिखाई दे रहा था. जंगल, नदी, कभी तालाब, वृक्ष और आज सुबह क्रिया के बाद अनोखा दर्शन हुआ. गुरू की कृपा उसके साथ है !

मन यदि एक बार उच्चावस्था में चला जाये तो उसे और कुछ भाता भी नहीं, कोई अमृत पाकर विष क्यों चाहेगा, कृपा से उसने उस अवस्था का अनुभव किया है अब वहीं लौटने के लिए ही सारी साधना है. पहले आलम यह था कि ध्यान में मन टिकता नहीं था और अब आलम यह है कि ध्यान से मन हटता नहीं है. परमात्मा को पाना कितना सरल है, जगत को पाना उतना ही कठिन, जगत को आज पाया कल खोना ही पड़ेगा, परमात्मा शाश्वत है एक बार मिल जाये तो कभी छोड़ता नहीं. जगत यदि थोड़ा सा मिले तो और पाने की इच्छा जगती है, परमात्मा एक बार मिल जाये तो और कोई चाह शेष नहीं रहती. जगत मिलता है तो दुःख भी दे सकता है, परमात्मा सारे दुखों का नाश कर देता है. और ऐसे परमात्मा का ज्ञान सद्गुरु देता है. सद्गुरु से सच्ची प्रीति किसी के हृदय में जग जाये तो उसका जीवन सफल हो जाता है. गुरु भौतिक रूप से कहीं भी हों, वह शिष्य को तत्क्ष्ण उबार लेते हैं. परसों रात को सोने से पूर्व उसके मन में जो पीड़ा थी, उसे उनके स्मरण ने कैसे हर लिया था. ‘अब खुश हो’ यह वाक्य उसके लिए एक मन्त्र ही बन गया है. गुरुमुख से निकला हर शब्द एक सूत्र ही होता है. कल रात को मृत्यु का ख्याल करके जब वह थोड़ी देर को शंकित हो गयी थी तो प्रार्थना करते-करते सोई. स्वप्न में अनोखा अनुभव हुआ जैसे वह बड़े वेग से शरीर छोड़कर ऊपर की ओर जा रही है, थोड़ा सा भय था, फिर नीचे आना शुरू हुआ और पुनः शरीर में वापस आ गयी. मृत्यु का अनुभव भी कुछ ऐसा ही होता होगा. एक दूसरे स्वप्न में बाथरूम के पॉट से विशाल जानवर निकलते देखे. ईशवर की महिमा विचित्र है. यह सृष्टि अनोखी है और इसका रचियता इससे भी अनोखा है, वह जादूगर है और यह उसकी लीला है. कोई यदि लीला समझकर जगत में रहे तो जगत बंधन में नहीं डाल सकता.         

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