Tuesday, June 2, 2015

उत्तर काण्ड


कल की तरह आज भी मौसम गर्म है, वर्षा जो उन्हें शीतलता प्रदान करती थी पुनः आएगी और तब यह गर्मी नहीं रहेगी. द्वन्द्वों से भरा है यह जग, रात और दिन की तरह ये जीवन में आते रहते हैं लेकिन जो समर्पण का राज जानता है वह हर स्थिति में बिना शिकायत के रहना सीख जाता है. आज पहली बार उसने रामचरित मानस के ‘उत्तर कांड’ में संत कवि तुलसी दास की अद्भुत लेखनी का प्रभाव देखा. वे भक्ति और ज्ञान, सगुण और निर्गुण के प्रति सारे संशयों को खोलकर रख देते हैं. कवि के प्रति मन श्रद्धा से भर जाता है. जीवन जीना एक कला है और जीवन में अनुशासन को कायम रखना भी. प्रकृति के सारे कार्य अपने निर्धारित समय पर होते हैं, एक पल के लिए भी वह नहीं चूकती, लेकिन मानव प्रमाद के कारण चूक जाता है. कल वे एक परिचित के यहाँ बच्चे के जन्मदिन की पार्टी में गये थे. रात को देर से लौटे, सुबह उठने में देर हुई. कल सुबह ही उस सखी की सासु माँ से बात की, जिसके ससुर गंभीर रूप से अस्वस्थ हैं. वह बहुत उदास थीं, उनके सब्र का बांध जैसे टूट गया है. उसे उनसे सहानुभूति है. आज सुबह-सुबह जून के मित्र ने उन्हें फोन करके आने को कहा तो उन्हें आशंका हुई, जो बाद में सही निकली. परसों रात्रि नींद में ही उनके पिता ने अंतिम श्वास ली. वे कई वर्षों से अस्वस्थ चल रहे थे. आंटी अभी तक यह सदमा सह नहीं पा रही हैं. वक्त ही सबसे बड़ा मरहम है, जैसे – जैसे समय बीतेगा उनका दुःख कम होगा. वह दोपहर बाद तक वहीं थी. शाम को भी वे गये. घर में सभी उदास थे पर मित्र को देखकर ऐसा नहीं लगता, वह भावनाएं व्यक्त नहीं करते.

प्रारब्ध कहें या हारमोंस की शरारत, आज ईश्वर के लिए अश्रुपात करने की जगह यूँ ही आंसू बहने को आतुर हैं. मन भर आया पहले और फिर मन मुरझा गया, पर उसे लगता है कि कोई कर्म कट गया जैसे, बाकी सब तो बहाने होते हैं निमित्त मात्र. कर्ता तो उनके भीतर है, भीतर कुछ घटता है तभी बाहर उसको सहयोग दिलाने के लिए घटनाएँ होती चली जाती हैं. उनके जीवन में जो कुछ भी घटित होता है उसके एकमात्र कारण वे स्वयं होते हैं. सुबह जून ने उत्साह पूर्वक कहा कि अमेरिका में उनके ममेरे भाई भी रहते हैं वहाँ उनसे भी मिलेंगे. उन्हें पूरा विश्वास हो चला है कि वर्ष के अंत में वह टूर पर अमेरिका जा रहे हैं. अभी तक कम्पनी से अप्रूवल नहीं मिला है.

जून बाहर गये हैं, अगले हफ्ते लौटेंगे. आज नन्हा सुबह नाश्ता नहीं कर पाया, बस में खायेगा, कल उसे और भी जल्दी उठाना होगा. दोपहर को स्टोर की सफाई करनी है. अभी उसने कृष्ण का सुमिरन किया तो उसने ऐसी मौन भरी मुस्कान का उपहार भेजा. उसका नाम भी एक बार प्रेम से पुकारो तो मन ठहर जाता है, जीवन तब बहुत सरल लगता है, सहज रूप से वे जी पाते हैं वरना तो मुखौटों से पीछा नहीं छूटता, पर प्रभु के सामने कोई मुखौटा नहीं चलता. उसकी एक सखी ने कहा, वह दुबली लग रही है, कहीं कोई रोग तो नहीं, उसे अच्छा नहीं लगा, फिर स्मरण हो आया उसे तो अच्छा या बुरा लगने की मनोदशा से ऊपर रहना है. सद्गुरु का स्मरण हो आया, उनकी आत्मा के साथ उसकी निकटता है जैसे कृष्ण के साथ. कान्हा तो स्वयं उसकी आत्मा है, तभी वह इतना अपना लगता है. उसकी आँखें देखना चाहे तो दर्पण में स्वय की आँखें देख लेती है वह और सद्गुरु एक ही हैं और वे तीनो फिर एक हो जाते हैं. इस एकता की अनुभूति में अनोखा आनंद है, शांति है, यहाँ कोई भेद नहीं रहता, यह सहना है उस अथाह प्रेम को जो भीतर उमड़ता है तो कचोट कर रख देता है...


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