Thursday, February 4, 2016

नदी का पाट


फिर एक अन्तराल, इस बीच बहुत कुछ घटा. जून के दफ्तर में दो-तीन दिन काम ज्यादा रहा. आर्ट ऑफ़ लिविंग के एक टीचर ने क्रिया करवाई. ड्राइंग-डाइनिंग में पेंट हुआ और आत्मा का ज्ञान दृढ़तर हुआ, उस पर जून की नाराजगी का असर पहले से कम हुआ, उन पर भी कम होना ही था, वह भी आत्मा के बारे में सुनने लगे हैं. दीदी दुबई से लौट आई हैं. उसे सभी की चिंता करने का मोह भी घटा है. सप्रयास कोई कार्य नहीं करना है. नियमित कर्त्तव्य तथा सहज प्राप्त कार्य व सेवा के कार्य बांधने वाले नहीं होते. उसे हर हाल में इसी जन्म में मुक्त होना है. परमात्मा की व सद्गुरु की उसपर विशेष कृपा है. उसे बुद्धि योग मिलाया है. भीतर की सूक्ष्मतम सच्चाईयों को समझने की बुद्धि प्रदान की है. अनवरत अनहद नाद की धुन गूंजती है, आत्मा का आनन्द फूट-फूट पड़ता है सो और नये कर्म बंधने का प्रयास व्यर्थ ही होगा. उसे संतोष का धन प्राप्त हुआ है. कितने जन्मों में उसने वही गलती दोहराई होगी पर इस जन्म में नहीं, सद्गुरु को देख-सुन कर तो जरा भी नहीं. वह कितने सहज हैं, मुक्त, आनन्द से भरे. उनके भीतर भी वही आत्मा है. सत्, चित् आनन्द वही परमात्मा है. आज ध्यान में उसकी उपस्थिति का अहसास हुआ. मन है ही नहीं, एक मौन है जो भीतर पसरा है, शांत नदी के चौड़े पाट की तरह जिसमें आकाश अपना चेहरा देखता है !

परमात्मा से प्रेम हो जाये तो यह जगत होते हुए भी नहीं दिखता. वह प्रेम इतना प्रबल होता है कि सब कुछ अपने आप साथ बहा ले जाता है, शेष रह जाता है निपट मौन, एक शून्य, एक खालीपन, लेकिन उस मौन में भी एक नये तरह का संगीत गूँजता है, वह खालीपन भी भरा हुआ है कुछ खास ही तत्व से. अभी कुछ देर पहले फोन की घंटी बजी, वह उठा नहीं पायी, पता चल गया लेडीज क्लब की किस सदस्या का था, वह अवश्य उस लेख के बारे में बात करना चाह रही होगी जो उन्हें क्लब के लिए लिखना है. कल उसे डेंटिस्ट के पास जाना था. एक दांत में rct कराने. कोई भय नहीं था. मन शांत था. डाक्टर ने दांत में दवा भरकर छोड़ दिया है, लगातार दवा की गंध मुंह में आ रही है. किन्तु उसने स्वयं को देह मानना छोड़ दिया है सो वह गंध परेशान नहीं कर रही. वह अपना सभी कार्य सामान्य रूप से ही कर पा रही है. बैंगलोर में एक सखी का आपरेशन होना था, हो गया है, शायद इतवार को वह लौट आये. दीदी से पता चला, छोटी भांजी आई है, उससे बात करनी है. कल शिवरात्रि है, उनके यहाँ सत्संग है. आज भी वर्षा हो रही है, मार्च का महीना यहाँ ऐसा ही होता है.
जैसे-जैसे कोई परमात्मा के निकट होता जाता है, वह सरल और सहज होता जाता है, तब छोटी और बड़ी बातों में कोई भेद नहीं रहता, सारे भेद मिट जाते हैं. वह पहले छोटी-छोटी बातों में उलझा रहता था, उनसे दूर हुआ और स्वयं को ऊपर उठाया फिर उन ऊपर की बातों से भी दूर हुआ और एक चक्र जैसे पूर्ण हुआ, अब कोई भेद नही रहा.


कल सत्संग में कम लोग आये, हलुए का प्रसाद बच गया. आज गुरूजी ने बताया, देह, मन, बुद्धि, प्राण, चित्त, अहंकार तथा आत्मा इन सातों स्तरों के बारे में जानना चाहिए. आत्मा के कारण ही इनका अस्तित्त्व है. एक अर्थ में सभी को आत्मा कहा जा सकता है, धीरे-धीरे उनसे ऊपर उठते जाना है, फिर आत्मा से भी परे स्थित परमात्मा को जानना है. 

1 comment:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन निर्दोष साबित हों भगत सिंह और उनके साथी में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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