Wednesday, April 20, 2016

भगवद प्रेम अंक -कल्याण


केवल पूजा करना ही काफी नहीं है. गुरूजी कहते हैं जो पूर्णता से उपजती है वही पूजा है, अर्थात पूर्णता से जो प्रकट हो वही भाव युक्त कर्म, वही उन्हें सजग बनाता है. आज जून गोहाटी गये हैं, वह अपने सभी कार्य बिना घड़ी की ओर देखे कर सकती है. कहा जाता है कि कोई सफल तभी हो सकता है जब समय का ध्यान रखे, पर सफलता का मानदंड क्या है, जीवन के किसी भी मोड़ पर भीतर कोई पछतावा न रहे, आत्मग्लानि न रहे. टीवी पर भगवद कथा का प्रसारण हो रहा है. शरद पूर्णिमा की रात्रि को जो रास खेला गया था उसी को आधार बनाकर. वक्ता कह रहे हैं पुरुष कभी भी यह स्वीकार नहीं करेगा कि वह बुद्धि में कम है, इसलिए उसकी बुद्धि पर आक्षेप नहीं करना चाहिए. यदि ऐसा कभी महसूस हो तब भी नहीं, क्योंकि ईश्वर ने पुरुष को बुद्धि प्रधान तथा स्त्री को भावना प्रधान बनाया है. लेकिन साधक के हृदय में दोनों का अद्भुत संतुलन हो जाता है, दोनों परों की सहायता से ही पक्षी की उड़ान सम्भव है, एक से नहीं. आज कुछ लोगों को कल के सत्संग के लिए आमंत्रित किया, कल और भी फोन करने होंगे. जून उसकी किताब ‘मन के पार’ का दूसरा ड्राफ्ट बनाकर ले आये हैं, कुछ गलतियाँ थीं. उसे टाइप करने के काम में शीघ्रता करनी चाहिए, कितना कुछ लिखा हुआ पड़ा है. यूरोप पर लिखी कविताएँ उसकी सखी को अच्छी लगीं, जो अपने परिवार के साथ यूरोप घूमने गयी थी. अभी उन्हें और पढ़ने की चाह है. उसके जन्मदिन पर लिखकर ले जाएगी. परमात्मा ने उसे यह कला सौंपी है, इसका पूरा लाभ उठाना होगा जनहित में ! नन्हे ने कहा, वह सोचकर बतायेगा कि उनके साथ विदेश यात्रा पर जायेगा या नहीं. जून ने आस्ट्रिया पर काफी जानकारी मंगा ली है, वे अप्रैल के बाद कभी भी यूरोप जा सकते हैं. 

आज बड़ी भाभी का जन्मदिन  है, उनके लिए एक कविता लिखनी शुरू की है. अभी-अभी ऐसा लगा, यूँ पहले भी एकाध बार लगा है कि आजकल उसे नयी-नयी किताबें पढ़ने का शौक पहले जैसा नहीं रह गया है. यह भी कि वह सजग भी नहीं रह पाती है. कई काम जैसे असजगता में कर डालती है, ऊपर से तुर्रा यह कि वह कार्य करते समय भी यह याद रहता है कि असजग है, पर सजगता धारण नहीं करती. सद्गुरू कहते हैं कि सजग हुए बिना यह पता चलना कठिन है कि कोई असजग है, पर काम तो तब तक हो चुका होता है या हो रहा होता है. समय जैसे-जैसे बीत रहा है यह लक्षण बढ़ रहा है और वैसे ही बढ़ रहा है भीतर का आनन्द, मस्ती और नाद, प्रकाश सभी कुछ, ईश्वर ही सब कुछ है उसके सिवाय कुछ भी नहीं, यह भाव भी दृढ़तर होता जा रहा है, शायद इसलिए अब जगत फीका लगने लगा है. उपन्यास आदि में कोई रूचि नहीं रह गयी है, पढ़ना भाता है तो केवल अध्यात्म संबंधी कुछ भी. इसी महीने की अंतिम तारीख को उन्हें यात्रा पर जाना है, देव दीवाली देखने, उस पर लेख लिखेगी, आँखों देखा विवरण, फिर क्लब की पत्रिका में छपवाने देगी. कल दीवाली के लिए खरीदारी की, एक दुकान में उसे व्यर्थ क्रोध आ गया, वहाँ का वातावरण विषाक्त था, नकारात्मक ऊर्जा भरी थी, सजगता की कमी थी.

जून ने उसकी किताब ‘मन के पार’ की अंतिम सही पांडुलिपि प्रिंट करके ला दी है. वे इसकी पांच प्रतियाँ अपने साथ ले जाने वाले हैं. कल ‘सरस्वती सुमन’ का दूसरा अंक मिला, जिसमें उसकी कविता ‘तुम्हारे कारण’ भी छपी है. आज शाम को क्लब की पत्रिका के लिए मीटिंग है, उसे हिंदी अनुभाग देखना है, ज्यादा काम नहीं होगा, हिंदी में लिखने वाली चार महिलाएं भी नहीं हैं. कल दोपहर एक सखी की भेजी ब्यूटीशियन घर आयी, उसे काम चाहिए था. परमात्मा हर तरह से उसका ख्याल रखता है. आज सुबह एक सखी से बात हुई, वह keep of the grass पढ़ रही है, बनारस की काफी चर्चा है उसमें. दस दिन बाद उन्हें भी वहीं जाना है, उसके पहले दीवाली - दीवाली की मिठाइयाँ, फुलझड़ियाँ और रोशनियाँ ! शाम को कल्याण का ‘भगवद प्रेम’ अंक पढ़ना शुरू किया है. परमात्मा को प्रेम करना ही मानव होने का सर्वोत्तम आनन्द है. उस रसपूर्ण परमात्मा के रस को पाना सारे सुखों से बढ़कर है, वही अमृत है ! प्रेम ही परमात्मा है !

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