Wednesday, April 27, 2016

मुम्बई में आतंक


कितनी खौफनाक थी वह घड़ी जब आतंकवादियों ने कल रात मुम्बई के सात इलाकों में धमाके किये. निर्दोषों का खून बहाया और रात भर चलने वाला यह आतंक का दौर अभी तक थमा नहीं है. सुबह छह बजे के समाचार उन्होंने सुने तो दिल दहल गया, तब से लगातार टीवी पर हर समाचार चैनल इसी खबर को दिखा रहा है. एक सौ बीस लोग मारे जा चुके हैं और तीन सौ से ज्यादा घायल हो चुके हैं लेकिन दहशत के शिकार तो करोड़ों लोग हुए हैं. ऐसा लगता है देश में कहीं भी कोई सुरक्षित नहीं है. ताज होटल, ओबेराय होटल, छत्रपति शिवाजी टर्मिनल, अस्पतालों तथा अन्य भी कुछ स्थानों पर फायरिंग हुई और ग्रेनेड फेंक कर धमाके किये गये. नरीमन हाउस तथा कोलाबा में भी धमाके हुए. नन्हा आज सुबह चार बजे घर पहुंच गया है, इस समय सो रहा है, जून अभी तक आए नहीं हैं. एनएसजी के कमांडो होटल ताज में प्रवेश कर चुके हैं. सेना का हेलिकॉप्टर ताज के ऊपर मंडरा रहा है, न जाने कब मुक्त होंगे वे लोग जो कैद हैं होटल के अंदर, डरे हुए लोग जो कल तक खुश थे, शांति का आनन्द उठा रहे थे. वे लोग जो स्टेशन के बाहर मार दिए गये. नीरू माँ कहती हैं जो घट चुका वह न्याय था, तो जो हुआ क्या यही होना चाहिए था, कितना वीभत्स और घृणित था, महाभारत के युद्ध में हुई हिंसा क्या इससे कम थी ? अहिंसा का प्रशिक्षण, एओल का वसुधैव कुटुम्बकम का संदेश सब भुला दिए गये, लेकिन कुछ पागल लोगों की वजह से संसार से प्रेम उठ गया ऐसा भी तो नहीं मान सकते. उसका मन उन लोगों के साथ है जो मारे गये जो घायल हुए, उन की पीड़ा उसके मन में बस गयी है.

वे समुद्री रास्ते से आये थे
हथियार बंद और लैस विस्फोटकों से
अपने दिलों में भरे नफरत और हिंसा का लावा लिए
वे दरिंदे थे मौत के
आतंक फ़ैलाने.. करने तबाह शांति
उसने झेली हैं उनकी बन्दूकों से निकली गोलियां
हथगोलों की आग में झुलसी है त्वचा
उड़ कर दूर जा गिरे हैं उसके अंग कटे क्षत विक्षत
खौफनाक मृत्यु का सामना किया है अनेकों बार
और महसूस किया है दर्द उन मरे हुओं का
जिनकी सूक्ष्म देह मंडरा रही है अपने घायल शरीरों पर
जो भौचंक हैं देख ताडंव मृत्यु का !

जीवन की कटु सच्चाई का अनुभव एक बार और हुआ. सच्चाई का सामना कितना ही कटु क्यों न हो, हरेक को करना ही पड़ता है. इस बात को गांठ से बांध लेना चाहिए कि इस दुनिया में वे अकेले आये हैं और अकेले ही जाना है. जीवन में भी वे अकेले हैं और मृत्यु में भी, उनका किसी पर कोई अधिकार नहीं, वे हैं ही नहीं तो अधिकार की बात ही कहाँ आती है. आत्मा स्थूल शरीर से अलग है औए सूक्ष्म शरीर से भी. ये तीनों माया के आवरण हैं जो उसन भ्रमवश ओढ़ लिए हैं, उन्हें इनसे मुक्त होना है.

टीवी पर मेजर उन्नीकृष्णन तथा हेमंत करकरे की अंतिम यात्रा के दृश्य दिखाए जा रहे हैं. सेना, NSG तथा ATS के साथ पुलिस ने भी उनसठ घंटों तक चले युद्ध में भाग लिया तथा मेजर संदीप को भी गोली लगी और भी कई पुलिस व सेना के लोग घायल हुए होंगे, कितने ही देशी व विदेशी मेहमान भी जो होटलों में ठहरे थे. बुधवार शाम से चला यह ऑपरेशन साठ घंटे चला, अभी होटल में सफाई होना बाकी है. पिछले तीन दिनों से यह भयानक युद्ध मुम्बई की भूमि पर लड़ा जा रहा था. मानसिक पीड़ा और घुटन के तीन दिन. कमांडो राजेन्द्र सिंह भी शहीद हुए, कुल सोलह अधिकारी शहीद हुए.

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