Monday, May 23, 2016

खट्टी-मीठी इमली


विवाह के लिए सासु माँ देखने आयीं तो माँ को कहकर गयीं, उसे रात को क्रीम लगाकर सोना है, रंग निखर जायेगा. बहुत प्रेम करने वाला पति मिला. दोनों का भरा बदन, दरमयाना कद, सब कहते थे, जोड़ी बहुत अच्छी लगती है. समय का पहिया घूमता गया. परिवार बढ़ा. पहले दो बेटियां, फिर दो पुत्र. सभी पढ़ाई में अच्छे निकले. सास ने अंतिम श्वास ली तो घर जैसे बिना साये के हो गया. ससुर का हाथ अभी सिर पर था. तभी वह दुर्घटना घटी जिसके बाद उसका तन रोगी हो गया. इस बीमारी में भी बड़ी बेटी का विवाह धूमधाम से करवाया. अपने विवाह की रजत जयंती पर घर में जागरण करवाया. रिश्तेदार जो भी मिलने आते, उसकी जिजीविषा देखकर प्रसन्न होते थे. उसके सामने वे दुखी नहीं हो पाते थे. उसकी पीठ पीछे सहानुभूति दिखाते होंगे.

आज जाने क्यों रह-रह कर पुरानी बातें याद आ रही हैं. मृत्यु की घड़ी शायद निकट आ रही है. बचपन में वह ‘क’ को ‘ट’ कहती थी. सभी चचेरे ममेरे भाई-बहन खूब चिढ़ाते थे. उन दिनों इमली उसे बहुत पसंद थी, जेबखर्च के पैसों से खट्टी-मीठी लाल इमली खरीदा करती थी. याद आते ही मुंह में पानी भर आया है. आलू की भुजिया और लाल मिर्च डाल कर बनाया पुलाव उसकी खासियत थी. नया नाम देने वाले बड़े भाई को भी ये वस्तुएँ पसंद थीं. हाई स्कूल में पहली बार वह पास नहीं हो पायी थी. गृह विज्ञान लेकर फिर परीक्षा दी और अच्छे अंकों से पास हुई. काश ! वह बचपन फिर से लौट आता ! आज वे सारी बातें स्वप्नवत् जान पडती हैं. उसके जीवन का सफर खत्म होने को है. यह शमा बुझने को है. परिवार के लिए उसके मन में असीम प्रेम और शुभकामनायें हैं. उसकी इस बीमारी ने उन्हें आपस में एक-दूसरे के नजदीक ला दिया है, सभी उसकी हिम्मत की दाद देते हैं, शायद उनका प्रेम ही है जो उसे इस दर्द में भी मुस्कुराने का साहस दिए जाता है.

इस जन्म में किसी को जो भी अनुकूल या प्रतिकूल परिस्थितियाँ मिलती हैं उन पर तो उसका कोई वश नहीं होता लेकिन समता में रहकर वह भविष्य को तो बेहतर बना ही सकता है. जो भी कोई फोन करके उससे उसकी बीमारी का हाल पूछता था उससे वह हंसते हुए ही बात करती थी, ताकि किसी को दुःख न हो, तथा अगले जन्म के लिए कर्म बंधन न बने. सत्संग में सुना ज्ञान कितना उपयोगी सिद्ध हुआ है. मृत्यु के लिए वह तैयार है और तैयार है नये सफर की शुरुआत के लिए !

नूना ने बहन के लिए लेख लिखा तो मन जैसे हल्का हो गया. जब से उसे समाचार मिला था सिर में दर्द होने लगा था. रात भर सो नहीं सकी, किसी करवट चैन नहीं था. जैसे उसका स्वयं पर वश नहीं रहा था, जैसे किसी ने उसे आविष्ट कर लिया हो. मृत्यु के बाद भी जीवात्मा का अस्तित्त्व तो रहता है न, शायद वह उससे मिलने आई थी. सुबह भी प्राणायाम आदि कुछ नहीं कर पाई. धीरे-धीरे हालत सामान्य हुई. हो सकता है यह उसका वहम् हो पर यदि ऐसा हुआ भी तो कोई आश्चर्य की बात नहीं. उसके बचपन की कितनी यादें मन में ताजा हो गयीं. तभी सोचा था एक कहानी लिखेगी उसके जीवन के बारे में. तभी मन में सारी स्मृतियाँ सजीव हो उठी थीं, जैसे कोई अलबम के पन्ने पलट कर उस काल में ले गया हो. जब वह मृत्यु की प्रतीक्षा कर रही होगी तो उसके मन में भी तो जीवन कौंध गया होगा !  वे सभी एक स्रोत से आये हैं. पंचतत्वों से वे सभी बने हैं. सभी उनके अपने हैं. सभी का भला वे चाहते हैं. उनके जीवन में जो भी घट रहा है, वह उनके ही कर्मों का प्रतिफल है ! शेखसादी ने कहा है वह ज्योतिषी नहीं हैं पर इतना बता सकते हैं कि वह बदबख्त है जो दूसरों की हानि चाहता है क्योंकि वह उसकी ही झोली में पड़ने वाली है. इसीलिए संत कहते हैं – कर नेक अमल और हरि सिमर ! उत्पात न कर, उत्पात न कर ! 

No comments:

Post a Comment