Wednesday, June 1, 2016

नई नवेली कार


जीवन में हजारों, लाखों, करोड़ों, अरबों या कहें अनंत पल खुशियों के आते हैं, बल्कि कहें कि जीवन सुख व आनन्द की एक अनवरत श्रृंखला है. अनगिनत जन्मों को जोड़कर देखें तो न जाने किस अतीत के काल से वे बने हुए हैं. परमात्मा की भांति वे भी अनादि हैं, उसकी भांति वे भी साक्षी हैं, कुछ न करते हुए भी सबका आनन्द लेने वाले, हर श्वास एक आनन्द की लहर की खबर देती है, जो स्वयं ही आनन्द हो उसे भी अपने आनन्द का स्वाद लेने के लिए देह में आना पड़ता है. परमात्मा को मायाविशिष्ट चेतना में आकर लीला का आनन्द लेना पड़ता है तो जीव को स्वप्नविशिष्ट चेतना में ! वे स्वप्न ही तो देख रहे हैं, एक लम्बा स्वप्न जिसमें उन्होंने एक नया रोल धरा है. शरीर, मन व बुद्धि का एक नया संयोग खड़ा किया है. स्वप्न से जागकर ही पता चलता है क उसमें प्रतीत होने वाले सुख-दुःख मिथ्या थे वैसे ही मृत्यु के क्षण में पता चलता है सब कुछ छूट रहा है, एक स्वप्न का अंत हो रहा है. उनका ध्यान यदि मृत्यु से पूर्व इस ओर चला जाये तो सदा के लिए मृत्यु का भय छूट जाये ! जीवन एक खेल ही लगने लगेगा तब !

आज सद्गुरु ने गणेश जन्म का एक नया अर्थ बताया. पर्व के दोष से उत्पन्न आनंद को ज्ञान के द्वारा पावन किया गया. पर्व पार्वती है, मैल दोष है, जिससे आनंद रूपी गणेश उत्पन्न हुआ है, हाथी का सिर ज्ञान है. गणेश को विघ्न हर्ता भी कहते हैं, हाथी के आगे कोई बाधा नहीं टिकती. गणेश का चूहा तर्क का प्रतीक है और बीज मन्त्र का भी. आज छोटे भाई का जन्मदिन है, वह नई कार ले रहा है, blushing red Iten, इत्तेफाक है कि बड़ी ननद भी काली कार ले रही है. आज भी वर्षा थमी नहीं है, पिछले कई हफ्तों से रोज ही बादल बरसते हैं.

सुंदर वचन सुने आज, ‘सत्य के सूर्य को अस्ताचल ले जाने के लिए संध्या रूपी माया आ जाती है ! कमल को जैसे तुषारापात समाप्त कर देता है वैसे ही सत्य को माया समाप्त कर देती है. ऐसी माया को दूर से ही त्याग देना चाहिए, यही जन्म-मृत्यु का कारण है’. अध्यात्म की साधना का मुख्य उद्देश्य संस्कारों से मुक्ति है. कल रात स्वप्न में एक विकार की ग्रन्थि को पूर्ण रूप से देखा तथा उससे मुक्ति का अनुभव भी किया. पिछले पचीस वर्षों मन न जाने कितनी बार स्वयं व्याकुल हुआ और अन्यों को भी किया. माया के चंगुल में फंसकर कषायों के मल में धंस कर न जाने कितना दुःख वे व्यर्थ ही उठाते रहते हैं. भीतर की ग्रंथियाँ कट रही हैं, मन पावन हो रहा है. परमात्मा को वे अपने भीतर प्रकट  होने से रोकते रहते हैं.अशुद्ध वृत्तियों का पर्दा उन्हें उससे दूर ही रखता है, जबकि वह सहज प्राप्य है.

अज दोपहर से बिजली नहीं है, मौसम अच्छा है सो पंखे के बिना भी ठीक लग रहा है. मृणाल ज्योति के लिए एक कविता लिखी है.शाम को प्रिंट करेगी  कल उन्हें वहाँ जाना है, सम्भव हुआ तो पढ़ भी सकती है. जून अभी तक आये नहीं हैं, उनका गला थोड़ा खराब है. कल वह नाहक ही क्रोधित हो रहे थे. मनुष्य अपने आप को नहीं जानता, इसलिए स्वयं को दुःख दिए जाता है. कृष्ण कहते हैं जो न आकांक्षा करता है न द्वेष करता है, वह मुक्त है.



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