Saturday, July 30, 2016

चाट का स्टाल


आज उनके घर में इस ध्यान कक्ष में ‘सहज समाधि’ कोर्स का पहला भाग सम्पन्न हुआ ! सद्गुरु की कृपा उनके शहर पर हुई है उनके घर पर भी हुई है, उन सब पर हुई है. सदा से ही थी पर वे उसे  अनुभव कर सकें ऐसी पात्रता भी तो चाहिए ! आज सुबह उसने गुरू पूजा की तैयारी की, ठीक समय पर टीचर आ गयीं, कुल उन्नीस साधक हो गये, तीन ने पहले ही कोर्स कर लिया था, उसे और पिताजी को मिलाकर सोलह ने दीक्षा ली. पहले सहज समाधि का अर्थ बताया फिर मस्तिष्क की कार्य प्रणाली, फिर तनाव का कारण..और फिर एक-एक करके मन्त्र दिए. सात बार मौन होकर जाप करने को कहा, बीच-बीच में सात सामान्य श्वास लेनी हैं. उसे छोटा सा मन्त्र मिला है, सुंदर है, हो सकता है सभी को यही देते हों, क्योंकि किसी को बताना तो है नहीं, है न गुरूजी का ट्रेड सीक्रेट ! बहुत अच्छी तरह सारा कार्य हो गया, अब कल सुबह नौ बजे से एक घंटा ध्यान होगा तथा परसों भी. उसने कल कितनी जगह फोन किये लेकिन दो महिलाओं को छोड़कर कोई नहीं आया, जो लोग एडवांस कोर्स कर रहे हैं, उनमें से ही अन्य सभी लोग आये. जून अभी तक फील्ड से नहीं आये हैं, सम्भवतः अब आ रहे हों. आज कितना हल्का-हल्का लग रहा है, वैसे तो रोज ही लगता है पर आज सद्गुरु का एक काम उनके घर पर हुआ, वे निमित्त हुए, आर्ट ऑफ़ लिविंग परिवार का हिस्सा तो वे थे ही आज उस पर मोहर लग गयी. आज का दिन खास है. आज पिताजी ने अपने जीवन में पहली बार मन्त्र दीक्षा ली. उन्होंने बाद में अभ्यास भी किया, उनका जीवन सफल माना जा सकता है, उम्र के अस्सीवें वर्ष में हैं पर जोश जवानों से बढ़कर है, जीवन दर्शन बहुत ऊंचा है, प्रेम भी है पर थोड़ा  क्रोध है और अभी तक परमात्मा का पूर्ण अनुभव नहीं किया है, झलकें अवश्य पायी होंगी. उसे इस क्षण लग रहा है जैसे कुछ करने को नहीं है, कृत-कृत्य हो गया है मन..प्राप्त-प्राप्तव्य हो गयी है आत्मा..   
पिछले साल इन्हीं दिनों दीदी अपने बड़े पुत्र के विवाह की तैयारी कर रही थीं और वे भी यहाँ योजना बना रहे थे कि जाना है भांजे की शादी में...
महीनों से करती तैयारी..     
भरे उमंग, उत्साह अति मन में  
सारे घर को चमका डाला
कितना कुछ नया मंगवा डाला
दुकानों में जातीं लम्बी फेहरिस्तें
मेहमानों के आने के देखे रस्ते
साड़ियाँ, सूट और रेशमी परिधान
सपनों में आने लगे अब तो थान
कार्ड छपवाने से हाल बुक करने तक
चाट, मिठाई के स्टाल लगाने तक
सजाने हैं फूलों से आंगन और हाल     
बेटे की शादी है नहीं कोई खेल !

थोड़ी देर पहले टीचर से मिलकर आयी, उनके घर पर बचपन से ही आध्यात्मिक माहौल था. पिताजी रामकृष्ण मिशन से जुड़े थे, कई संत उनके घर आकर रुकते थे, भविष्यवाणी की थी कि वह भी अध्यात्म के पथ पर चलेंगी, पर वह ऐसा मानती थीं कि दोनों मार्ग साथ-साथ चलेंगे. सामान्य जीवन भी अपने कर्म से चलेगा और अध्यात्म का भी एक उचित स्थान रहेगा, पढ़ाई आदि उसी तरह की, लेकिन सन सतानवे में बेसिक कोर्स करने आश्रम गयीं तो वहाँ योग की टेकनीक सीखने गयी थीं पर गुरूजी से मिलने के बाद जो अनुभव हुआ, वह अविस्मरणीय था. उसने जीवन की दिशा ही बदल दी.



3 comments:

  1. बहुत दिनों बाद, बहुत ही सुकून भरा अनुभव हुआ!

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  2. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " महान रचनाकार मुंशी प्रेमचंद की १३६ वीं जयंती - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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