Thursday, July 7, 2016

चन्दन की लकड़ी


आज गुरूजी दुलियाजान आये. कल रात से ही उसका मन, प्राण सभी उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे. सुबह से ही मन पुलकित था. वे नौ बजे आयोजन स्थल पर पहुंच गये. भजन गायन का आरम्भ हुआ तो उन्होंने मगन होकर भजन गाए. पंडाल बहुत सुंदर सजाया गया था. उसने हिंदी में उनका परिचय दिया, असमिया में एक अन्य व्यक्ति ने दिया, जो मंच पर कार्यक्रम प्रस्तुत करने वाला एक प्रोफेशनल कलाकार था. गुरूजी ग्यारह बजने से कुछ देर पहले आये. उन्होंने उसे दृष्टि भर देखा, वह स्टेज पर पीछे बैठी थी, सोच रही थी, वह पीछे मुड़कर देखेंगे तो वह उनके दर्शन करेगी. उन्होंने ध्यान भी कराया. बहुत सी बातें कीं. वे पूरा कार्यक्रम नहीं देख सके क्योंकि उन्हें सेंटर जाने की जल्दी थी, जिसका उद्घाटन करने वे आने वाले थे. वहाँ कुछ देर प्रतीक्षा की, भजन गाए. तब गुरूजी आये, उसने उन्हें उनके आगमन पर लिखी कविता व ‘श्रद्धा सुमन’ पुस्तिका दी, घर पर बनायी मिठाई दी जिसपर उन्होंने हाथ रखा, पर बाद में उसने आर्ट ऑफ़ लिविंग के एक टीचर से भिजवा दी. उन्होंने अवश्य ही खायी होगी. उससे कहा, बिंदी क्यों नहीं लगाई, लगानी चाहिए तब जून की शिकायत की उसने उनसे, कि वही मना करते हैं ! वह उसके दिल के इतने करीब हैं कि उनसे कुछ छिपाने का कोई अर्थ नहीं रह जाता, वह उसे उससे भी अधिक जानते हैं. क्लब में भी उन्होंने प्रवचन दिया, सूक्ष्म व्यायाम करवाए, प्रश्नों के उत्तर दिए. सौ प्रतिशत शक्ति लगाकर काम करें, दूसरों के बारे में गलत न सोचें, ईश्वर सदा सबके साथ है और सदा मुस्कुराएँ ! ज्ञान के ये अनमोल मोती उन्हें दिए. यादों का एक खजाना छोड़ गये हैं वह दुलियाजान वासियों के दिलों में. उसके सिर पर हाथ रखा, अभी भी उस स्थान पर सिहरन हो रही है. परमात्मा सत्य है, वही शिव है और शिव ही सुंदर है. सद्गुरु परमात्मा का ही रूप है और वे कितने भाग्यशाली हैं कि ऐसे जीवित सद्गुरु उनके जीवन में हैं. उनकी कृपा तो उन पर सदा ही बरस रही है, उन्हें उसे पाने के लिए सुपात्र बनना होगा. उसने प्रार्थना की कि वह उनकी कृपा के लिए सुपात्र बनेगी.

गुरूजी कल दोपहर वापस चले गये लेकिन उसके मन में अमिट यादें छोड़ गये हैं. उनकी दृष्टि भीतर तक बेध गयी, उनका उसके सिर पर प्रेम भरा स्पर्श, याद आते ही ऑंखें भर आती हैं, वह प्रेम का महासागर हैं. कितना अद्भुत है परमात्मा जो एक मानव देह का आश्रय लेकर प्रकट होता रहा है. कितने भाग्यशाली हैं वे जो उनका प्रेम पा सके हैं. उसका मन कृतज्ञता के अश्रुओं से सराबोर है. यही हाल तब हुआ था जब वह गोहाटी से वापस आई थी. सुबह से सिवाय उनको याद करने व अश्रु बहाने के और कुछ भी नहीं किया है. शाम को एक सखी के यहाँ जाना है, उसकी विवाह की वर्षगांठ है. उसके लिए कुछ लिखने का भाव ही नहीं जग रहा, वह खुश रहे यही भाव उठ रहा है. मन किसी भी तरह के पूर्वाग्रह या द्वेष से न ग्रसित हो, सद्गुरु की पावन स्मृति बनाये रखे, बुद्धि निर्मल रहे यही प्रार्थना है ! गुरूजी कहते हैं शब्दों को अर्थ मानव प्रदान करते हैं. शुभ-अशुभ, हानि-लाभ से परे जो शुद्ध तत्व है उसी में उन्हें विश्राम पाना है. उसके भीतर एक गूँज दिन-रात गूँजती है, इस समय कितनी स्पष्ट सुनाई दे रही है, उसे बिंदी लगाने को कहा उन्होंने पर उसने उनका कहना अभी तक नहीं माना है. उसके पास बिंदी है ही नहीं. सम्भवतः जून ने चन्दन की लकड़ी व घिसने का पत्थर कहीं छिपा दिए हैं या फेंक ही दिए हैं. उन पर उसकी बात का कोई असर नहीं होता पता नहीं किस मिट्टी का उनका दिल है जो तिलक के लिए पिघलता ही नहीं. शायद अंत में पिघले अथवा तब भी नहीं. उसे एक कविता सखी के लिए लिखनी है और एक होली पर हिंदयुग्म के लिए तथा एक हिंदी कविता के लिए. एक लेख लिखना है जो बच्चों के सही पालन-पोषण पर है ताकि भविष्य में वे अच्छे नागरिक बन सकें. गुरूजी के लिए भी एक और किताब लिखनी है, नई कविताएँ होंगी उसमें. उनके जीवन व बचपन पर एक कहानी भी लिखनी है. कितना अनोखा व्यक्त्तित्व है उनका, बचपन से ही भक्तिभाव में डूबे हुए.. सदा मुस्कुराते हैं.. लाखों लोग उनके दीवाने हैं और सभी को वे अपने लगते हैं. उसे भी उनके अपरिमित स्नेह में भीगने का डूबने का अवसर मिला है. तन, मन, प्राण सभी भीगे हैं उस प्यार के रंग में..अब वे किसी नये शहर में अपना जादू बिखेर रहे होंगे. पिताजी बाहर बगीचे में पानी डाल रहे हैं, उन्होंने यह काम बखूबी सम्भाल लिया है, माँ रोज की तरह कुर्सी पर बैठी हैं, आज वे ठीक हैं.



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