Friday, August 5, 2016

नवधा भक्ति


दो-तीन दिन की धूप के बाद मौसम ने फिर अपना मिजाज बदल लिया है, पुनः बादल बरस रहे हैं. आज सुबह वे फिर भ्रमण के लिए निकले. नेहरू मैदान में कल रात भर की वर्षा के बाद पानी भरा हुआ था पर लोग फिर भी चल रहे थे सो वे भी गये. जूते, ट्रैक सूट सभी भीग गये. जून अब पहले से ठीक लग रहे हैं. उसे लगता है यह अस्वस्थता उनके भीतर से उठी पुकार का परिणाम है कि अस्तित्त्व उन्हें देखे, उन पर ध्यान दे. हर दुःख अपने भीतर एक सुख छिपाए रहता है, जैसे हर सुख अपने भीतर एक दुःख..अब वह परिवर्तन के लिए तैयार हैं. जीवन के प्रति उनकी रूचि बढ़ी है और इधर उसका क्या हाल है ? उसे लगता है, प्रगति नहीं हो रही है, कारण वह अपने समय का बेहतर उपयोग नहीं कर रही है. सद्गुरु से इस विषय में राय लेना ठीक रहेगा, उन्हें एक पत्र लिखेगी, वह जहाँ कहीं भी होंगे उसे निर्देश देंगे कि क्या करना उचित होगा. उसे मान की कामना है तभी न कविता भेजकर यही उम्मीद बनी रहती है कि कोई प्रतिक्रिया मिलेगी. जब तक संसार से सुख पाने की आशा बनी हुई है तब तक परमात्मा से प्रेम कैसे टिकेगा..परमात्मा उसकी इस झूठी आस को चूर-चूर कर देना चाहते हैं, अहंकार की पुष्टि के अलावा क्या होने वाला है..न जाने कितनी बार मान चाहा है और फिर अपमान के घूँट भी पीने पड़े हैं. अपमान और मान दोनों मिलते हैं यहाँ एक साथ..दोनों से ऊपर उठना है और इसके बावजूद अपना काम किये जाना है..किये ही जाना है. फल पर उनका अधिकार नहीं केवल कर्त्तव्य पर ही उनका अधिकार है !

कल शाम को उसकी कामना का दंश केवल उसे ही नहीं चुभा बल्कि जून को भी पीड़ित कर गया. वह बहुत परेशान हुए लेकिन धीरे-धीरे सब ठीक हो गया और कई दिनों के बाद वे रात भर ठीक से सोये. जून और उसका जीवन इतना मिला हुआ है कि थोड़ी सी भी दूरी बेचैनी पैदा कर देती है. उसे विवाह के फौरन बाद के दिन याद आने लगे हैं, किसी ने ठीक कहा था विवाह बार-बार किसी के प्रेम में पड़ने का नाम है...पति-पत्नी निकटतर से निकटतम होते हैं फिर दूर हो जाते हैं, पुनः निकट आते हैं..ऐसे ही उनकी जीवन यात्रा चलती है, भीतर प्रेम जगा हो तो कोई भी संबंध मधुर बन जाता है..उसे उनके रिश्ते में एक सुखद नवीनता का अहसास हो रहा है. जून नितांत पारिवारिक व्यक्ति हैं, उनके लिए घर ही सारे कर्मों का आश्रय स्थल है अर्थात उनके कर्म घर के लिए हैं..वही उनका विश्राम स्थल भी है और वही उनका साध्य भी, एक व्यक्ति जो मन के अनुसार जीता है, जो कभी सुखी होता है तो कभी दुखी..जिसको अभी मन के पार की खबर नहीं हुई है. सद्गुरू की कृपा से उसे अपने भीतर एक ऐसा ख़ुशी का स्रोत मिल गया है कि सारे कार्य उसके लिए समान हैं..लेकिन इस ज्ञान ने इतनी समझ तो दी है कि अपने आस-पास के लोगों के मन को समझकर उनके अनुकूल व्यवहार कर सके..वह जानती है, उसकी वाणी कठोर है..न जाने कितने नश्तर चुभोये हैं इस वाणी ने..कितने दिलों में..सबसे ज्यादा जून के दिल में..जो उसके लिए प्रेम से भरा है..वह उसे सम्पूर्ण पाना चाहते हैं..उसका मन व आत्मा तक को..कुछ भी उसके भीतर ऐसा न हो जो उनकी पहुंच से दूर हो..और वह ..उसने अपने मन को जान लिया तो मानो सबके मनों को जानने की कुंजी मिल गयी..आत्मा सबकी एक सी है.


आज ध्यान में अनोखा अनुभव हुआ. उसके बाद किया ‘पाठ’ भी विशेष समझ में आया. विवेक जागृत रहे तो जीवन कितना सुंदर हो जाता है. विवेक को सजग रखने के लिए ध्यान कितना जरूरी है, इसीलिए सभी संत ध्यान पर इतना जोर देते हैं. सुबह टहलने गये, पांच बजे लौटे तो सूर्य देव काफी ऊपर आ चुके थे. टीवी पर मुरारीबापू गुजरती में रामकथा कह रहे हैं. ‘श्रवणं कीर्त्तनं विष्णु पादसेवनं अर्चनं वन्दनं दास्यम सख्यम् आत्मनिवेदनं’ यह नौ प्रकार की भक्ति है. जिसको सामाजिक सन्दर्भ में समझाने का प्रयास बापू कर रहे हैं. आज उनके यहाँ सत्संग है, अगले हफ्ते गुरूजी का जन्मदिवस है, तब भी सेंटर पर कार्यक्रम होगा. आज फिर बदली छायी है. कल शाम वे एक परिचित के यहाँ गये, उन्हें स्पाईनल कार्ड में हुई एक ग्रोथ के कारण दर्द था. 

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