Friday, October 7, 2016

क्लब में नृत्य

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आज सुबह जून का फोन आया दो बार, दोनों बार अन्य फोन आ गये सो बात पूरी नहीं हो सकी, वैसे भी बात पूरी हो ही कहाँ पाती है, जीवन की संध्या आ जाती है. मृत्यु शैया पर पड़ा व्यक्ति भी यही सोचता है कि कितनी बातें अनकही रह गयीं. उसे तो आज ही, इसी क्षण ही सबसे हिसाब-किताब खत्म कर लेना है, कोई लेन-देन शेष नहीं रखना, परमात्मा, आत्मा, सद्गुरू, चारों दिशाओं और सभी देवी-देवताओं, पूर्व के स्द्गुरूओं, भावी बुद्धों सभी को साक्षी बनाकर इस क्षण वह घोषणा करती है कि आज के बाद से उसकी किसी से कोई अपेक्षा नहीं है और वह अपने हृदय की समस्त मंगल कामनाएं उन्हें देकर स्वयं को भी मुक्त करती है. क्योंकि वह जो वास्तव में है वह निर्विकार तत्व है, वह न कुछ ग्रहण कर सकता है न कुछ दे सकता है, प्रारब्ध वश जो भी आगे जीवन चलेगा, उससे उसका क्या संबंध है ? मन, बुद्धि, संस्कार के द्वारा जीवन में जो घटेगा, वह सभी के हित में हो यही प्रार्थना है, यह लिखना भी तो इन्हीं के द्वारा हो रहा है, सात्विक बुद्धि के द्वारा ही यह सम्भव है. आज सभी परिजनों वे सखियों के फोन आये. दीदी का फोन नहीं आया, शायद अभी उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं हुआ होगा, उसने बात की तो ऐसा ही था. सुबह सद्गुरू को देशी-विदेशी मेहमानों के सामने सहजता से सवालों के जवाब देते सुना. कह रहे थे भीतर कितनी शक्तियाँ छिपी ह्युई हैं, साधना के बल पर कोई उन्हें जागृत कर सकता है, योग के हजारों चमत्कार हैं. कम से कम अपने तन-मन को पूर्णतया स्वस्थ व प्रसन्न रख सके, इतना तो हरेक का कर्त्तव्य है !  

कुछ देर पहले एक सखी के घर गयी, उसकी बहन आई हुई है, जो कई वर्ष पूर्व भी आई थी जब छात्रा थी. उसके पुत्र ने लैपटॉप में डाली कुछ तस्वीरें दिखायीं, दोनों बहनों की बच्चियां सगी बहनें लग रही थीं. जून कुछ ही देर में आने वाले हैं. कल क्लब में मैराथन का पुरस्कार लेने वह नहीं जा सकी, आने वाले कल की दोपहर को विशेष भोज है, उसे टेबल ड्यूटी मिली है, इसी बहाने कई लोगों से मुलाकात भी हो जाएगी. आज जून के लिए लिखी एक कविता ब्लॉग पर डाली, ‘तुम्हारे लिए’. चर्चा मंच पर भी ली गयी है, उसे अपने ब्लॉग पर चर्चा मंच का लिंक डालना सीखना चाहिए. दोपहर को साहित्य अमृत पढ़ा, गन्ना खाया, यानि कुछ तन के लिए कुछ मन के लिए. आत्मा के लिए वैसे भी कुछ करना नहीं है, साक्षी भाव में रहना है, जो हो रहा है, उसे देखते जाना है. सतो, रजो व तमो गुण के कारण ही मन, बुद्धि इन्द्रियां आदि अपना कार्य करते हैं, ये प्रकृति हैं और आत्मा शिव तत्व है. वे चैतन्य हैं लेकिन जड़ के साथ एक होकर स्वयं को सुखी-दुखी मानते हैं. साक्षी भाव में आते ही सब बदल जाता है. पंच क्लेश मंद हो जाते हैं, पंच विकार भी कम होने लगते हैं, एक सन्नाटा छाने लगता है भीतर !

कल क्लब में उसने इतने वर्षों में पहली बार नृत्य किया, कई सारे अंग्रेजी गानों की धुनों पर, गीत तो समझ में नहीं आ रहे थे पर संगीत अच्छा था, भीतर नृत्य उमग आया है, ड्यूटी भी दिल लगाकर की, लोगों को भोजन परोसना एक अच्छा काम है, खाना बना भी अच्छा था, खाया भी और घर आके कुछ हुआ भी नहीं. मौसम यहाँ बहुत सुहावना है, उत्तर भारत में सर्दी ने रिकार्ड तोड़ दिए हैं. नन्हे के लिए जून ने ढेर सारी गजक व खजूर आदि भेजी है, चार-पांच दिनों में उसे मिल जाएगी. माँ ने आज फिर टीवी बंद किया और उसने उनसे कारण पूछा. आदत बदलना कितना मुश्किल है, जून को भी जोर से बोला, वह उसकी बात को यूँही उड़ा देते हैं, पर उसे अपनी वाणी पर जरा भी संयम नहीं है, जब बात मुँह से निकल जाती है, तब होश आता है, पर इतना होने पर भी क्योंकि भीतर कर्ताभाव नहीं है, परमात्मा की कृपा का अनुभव निरंतर होता रहता है. कभी-कभी तो आश्चर्य होता है, पर परमात्मा असीम है, उसकी करुणा भी असीम है, असीम है उसकी दयालुता, उनकी कमजोरियां कितनी भी हों उसकी कृपा से तो कम ही होंगी ! जीत उसी की होगी, ध्यान की समझ भी आने लगी है, भीतर जब समरसता हो, शांति का अनुभव हो तो मन ध्यानस्थ ही होता है, एकाग्रता उसका परिणाम है. जून भी अपने लिए एक डायरी लाये हैं, एक नन्हे को भेजी है. डायरी में लिखने के लिए कितना कुछ है, नये-नये शब्द, नये विचार तथा नये अनुभव ! बहर माली काम करता हुआ पिताजी से बातें कर रहा है, वह पानी डाल रहे हैं, फूलों को जरूर उन दोनों का स्नेह पसंद आता होगा !  

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